Attitude of Two Frogs Story in Hindi

 

“सकारात्मक रहने की क्षमता और एक कृतज्ञतापूर्ण द्रष्टिकोण ही, इस बात का निर्णय करेंगे कि आप अपना जीवन कैसे जीने जा रहे हैं।”
– जोएल आस्टीन

 

Attitude of Two Frogs Story in Hindi
नजरिया हमारी जिंदगी में सबसे जरुरी चीज़ है

स्वामी रामकृष्ण परमहंस अक्सर अपने शिष्यों के बीच इस प्रसंग को सुनाया करते थे, जो मनुष्य के सीमित दृष्टिकोण को उजागर करता है। एक दिन एक शिष्य खिन्न मुद्रा में दक्षिणेश्वर के काली मंदिर मे श्रीरामकृष्ण के पास पहुँचा। उसके हाथ में एक पत्र था जिसमे दावा किया गया था कि केवल उनका ही धर्म सच्चा है और बाकी दूसरे सभी धर्म झूठे हैं।

उस शिष्य ने स्वामीजी से पूछा, “गुरूदेव कैसे निर्णय किया जाय कि कौन सा धर्म ठीक है? परमहंसजी ने कहा, देखो एक कुँए मे एक मेंढक रहता था। एक बार ज्यादा बरसात होने पर उसमें कहीं से एक समुंदर मे रहने वाला मेंढक आ गया। जब कुँए मे रहने वाले मेंढक की मुलाकात सागर मे रहने वाले मेंढक से हुई, तो उसने पूछा – “कहो भाई, तुम कहॉ से आये हो?” उसने जवाब दिया – समुंदर से।

यह सुनकर कॅुए का मेंढक शेखी बघारता हुआ बोला – “तुम नही जानते होंगे कि यह कुँआ कितना बडा है, पर मै इसकी लंबाई, चौडाई और गहराई सबको जानता हूँ।” यह सुनकर समुंदर का मेंढक मन ही मन हॅसा। उसने पूछा – “क्या तुम सागर की लंबाई, चौडाई से परिचित हो?” कुँए के मेंढक का जवाब था – “क्यों नही, यह समुंदर होता ही कितना बडा है?

कुँए की लंबाई और चौडाई मेरी दो छलॉगों के बराबर है, तो सागर की ज्यादा से ज्यादा पॉच छलॉगों के बराबर होगी।” यह कहकर कुँए के मेंढक ने कई छलॉगे लगाई और बोला – “क्या इतना बडा होता है तुम्हारा समुंदर?” समुंदर का मेंढक बोला- नही और ज्यादा बडा। फिर इस तरह सागर का मेंढक बताता गया और कुँए का मेंढक छलॉगें मारता हुआ उसे समझने की कोशिश करता रहा।

जब वह थक गया तब समुंदर वाले मेंढक ने कहा – “भैया! तुम्हारी दुनिया इस छोटे से कुँए तक ही सीमित रही है, इसलिए अथाह सागर की लंबाई, चौडाई और गहराई की कल्पना करना भी तुम्हारे लिए असंभव ही है। इस कुँए जैसे अनगिनत कुँए भी सागर के आकार की बराबरी नही कर सकते। मै अनेकों वर्षो तक सागर मे रहने के बावजूद उसका आकार नही बता सकता।”

स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ने कथा सुनाते हुए कहा, “सामान्य मनुष्य का दृष्टिकोण भी इसी स्तर का होता है। वह अपनी ही परिधि मे सिमटा रहता है और अपने सीमित दृष्टिकोण को सबसे विस्तृत समझकर, ज्ञान के अनन्त और अगाध समंदर को छोटी सी अहमयुक्त बुद्धि से नापना चाहता है।” आज अलग-अलग मतों व विचारधाराओं के लोग, अपने अपने मत व विचार को ही श्रेष्ठ बताने के दुराग्रह मे जी रहे हैं।

जो यह दावा करता है कि उसका ही मत श्रेष्ठ है और बाकी सब निम्न, वह कॅुए का मेंढक ही है। याद रखिये आपकी कामयाबी आपके Attitude पर निर्भर करती है और एक संकुचित द्रष्टिकोण उन्नति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। स्वयं को ही श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति, किसी भी क्षेत्र की गहनता का अनुभव नहीं कर सकता, न ही वह धर्म और ज्ञान की सागर जैसी गहराई को नाप सकता है।

अधिकांश मनुष्यों की हालत उसी कुँए के मेंढक जैसी होती है, जो न तो वास्तविकता को स्वीकार करना चाहते हैं और न ही अपने अस्तित्व को विस्तार देना चाहते हैं। किसी ने सच ही कहा है जिंदगी बदलनी हो तो अपना नजरिया बदलिये।

“द्रष्टिकोण की कमजोरी, चरित्र की कमजोरी बन जाती है।”
– अल्बर्ट आइंस्टीन
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