HIV AIDS Information in Hindi: जानिये कैसे होता है इंसानों को एड्स

 

“एडस, एक जानलेवा और बहुत ही खतरनाक रोग है, जो इंसान की प्रतिरोधक क्षमता को धीरे-धीरे ख़त्म करके, उसे सुनिश्चित मृत्यु की ओर धकेल देता है। यह एक लाईलाज बीमारी है और मुख्य रूप से असुरक्षित यौन संबंधों से फैलती है। सिर्फ संयम ही इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय है।”

HIV AIDS Information in Hindi
लाईलाज रोग है एड्स इससे बचकर रहें

Aids Information in Hindi: आज विश्व एड्स दिवस (World Aids Day) है, जिसे सबसे पहली बार, 1 दिसंबर सन 1988 के दिन मनाया गया था। इसका अंतरराष्ट्रीय प्रतीक लाल रिबन है जिसे सन 1991 में अपनाया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने, एड्स जैसी बीमारी के प्रति वैश्विक जागरूकता फैलाने के लिये ही, इस दिन को एड्स दिवस के रूप में चुना था। क्योंकि एडस, मानव इतिहास की सबसे खतरनाक बीमारी है।

यह एक ऐसा घातक रोग है जिसका नाम सुनकर ही आदमी को पसीने छूटने लगते हैं। इस बीमारी के डर का आलम यह है कि लोग एडस के रोगी को देखते ही बच निकलना चाहते हैं। यहाँ तक कि परिवारीजन और रिश्तेदार तक एडस के रोगी से मुँह चुराने लगते हैं। हालाँकि उनका यह व्यवहार उचित नहीं है, क्योंकि दुखी व्यक्तियों के साथ ऐसा करना, उन पर अत्याचार करने के बराबर है।

लेकिन यदि इस रोग से समाज इतना भयभीत है, तो उसके ऐसा करने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होना चाहिये। HIV AIDS Information in Hindi में आज हम आपको इस बेहद ही खतरनाक रोग के बारे में विस्तार से बतायेंगे, क्योंकि एड्स की जानकारी ही इससे बचने का एकमात्र रास्ता है।

What is Aids in Hindi आखिर क्या है एडस

एडस (AIDS) का पूरा नाम है – एक्वायर्ड इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम (Acquired Immune Deficiency Syndrome) यानि उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण। एडस, एच.आई.वी का संक्रमण होने के बाद की वह स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण (Natural Immunity) की सहज शारीरिक क्षमता को खो बैठता है। एडस की सबसे पहले पहचान, सन 1981 में संयुक्त राज्य अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) ने की थी।

कुछ ही समय बाद 1983 में, इस रोग को फैलाने वाले वायरस HIV की भी पहचान हो गयी थी। ध्यान दें, एडस स्वयं में कोई रोग नहीं है। बल्कि यह शरीर की उस स्वाभाविक प्रतिरक्षा शक्ति की कमजोर स्थिति को प्रकट करता है, जिसके बिना मनुष्य का जीवन हमेशा सूक्ष्म पैथोजेन के अदृश्य खतरों से घिरा रहता है। AIDS से पीड़ित मानव शरीर, जीवाणुओं और विषाणुओं से फैलने वाली दूसरी संक्रामक बीमारियों का बहुत जल्दी शिकार बन जाता है।

क्योंकि उसका Immune System (प्रतिरक्षा प्रणाली) दिन-ब-दिन कमजोर होता चला जाता है। सरल शब्दों में कहें तो एड्स उन बीमारियों के पैदा होने का कारण बनता है, जिन्हें सामान्य स्थिति में, हमारा शरीर दूर ही रखता है, लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) के कमजोर होने पर वह एकदम से उठ खड़ी होती हैं।

Aids in Hindi प्रतिरक्षा प्रणाली का दुश्मन है एडस

एड्स से पीड़ित व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने से, वह आम सर्दी-जुकाम से लेकर कैंसर, निमोनिया और क्षय रोग जैसी बीमारियों का बड़ी आसानी से शिकार बन जाता है और उनका इलाज करना बहुत मुश्किल हो जाता हैं। इन्ही संक्रमणों से आगे चलकर बीमार व्यक्ति की मौत हो जाती है। लेकिन ध्यान दें, एच.आई.वी. संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में, 8 से 10 वर्ष या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है।

सिर्फ HIV पॉजिटिव होने का अर्थ यह नहीं है कि कोई रोगी एड्स से भी पीड़ित है क्योंकि जब तक इम्युनिटी इतनी निर्बल नहीं हो जाती कि वह शरीर को आम संक्रमणों से भी न बचा सके तब तक इसे एड्स नहीं माना जाता अब आप सोचेंगे कि आखिर एड्स जैसी जानलेवा स्थिति आती ही क्यों है?

दरअसल इस बीमारी का कारण है, आँखों से दिखायी न देने वाला एक बेहद छोटा पैथोजेन, एक अत्यंत सूक्ष्म विषाणु, जो चुपके से शरीर में घुसकर, उसे संक्रमित कर देता है। फिर चाहे वह शरीर किसी का भी और कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो। लेकिन एड्स के कारणों और लक्षणों के बारे में जानने से पहले हम यह जानेंगे कि आखिर एड्स की बीमारी होती किससे है? इसके होने की मुख्य वजह क्या है?

Human Immunodeficiency Virus (HIV) in Hindi

HIV in Hindi एच.आई.वी वायरस के संक्रमण से होता है एडस

AIDS का जानलेवा रोग, जिस वायरस (विषाणु) से फैलता है, उसका नाम है – ह्यूमन इम्मुनोडेफिशियेंसी वायरस (Human Immunodeficiency Virus) अर्थात मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु। HIV (एच.आई.वी) वह अतिसूक्ष्म वायरस है, जो रक्त में उपस्थित उन लिम्फोसाइट्स कोशिकाओं पर आक्रमण करता है, जो शरीर के अन्दर रहकर, बाहर से आने वाले दुश्मन जीवाणुओं से इसकी सुरक्षा करती है तथा मानव प्रतिरक्षा प्रणाली का सबसे मजबूत आधार होती हैं।

मुख्य रूप से यौन संबंधों और रक्त के माध्यम से फैलने वाला यह वायरस, शरीर की सुरक्षा प्रहरी बनी, श्वेत रक्त कोशिकाओं को मार डालता है। HIV एक लेंटिवायरस (रेट्रोवायरस का उपप्रकार) है, जो एच.आई.वी संक्रमण और एड्स का कारण बनता है। यह दो प्रकार का होता है – HIV-1 और HIV-2। ऐसा माना जाता है कि AIDS का विषाणु यानि HIV, सबसे पहले अफ्रीका में पाये जाने वाले दो खास प्रजाति के बंदरों (चिम्पैंजी और सूटी मैंगेबी) में पाया गया था।

यहीं से यह इंसानों के माध्यम से पूरी दुनिया में फैला। HIV एक ओर तो कई साल तक मानव शरीर में चुपचाप पड़ा रहता है और अपनी संख्या बढाता रहता है, वहीँ दूसरी ओर यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को धीरे-धीरे खत्म करता जाता है। एक बार जब प्रतिरोधक शक्ति खत्म हो जाती है तो फिर यह पूरी शक्ति के साथ सक्रिय हो जाता है और अपना आक्रमण शुरू कर देता है।

HIV संक्रमण के शुरूआती लक्षण, इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारी के और थोड़ी अवधि तक रहने वाले होते हैं। इसके बाद बहुत लम्बे समय तक इसके लक्षण लुप्त ही रहते हैं। किसी इन्सान के एक बार HIV से संक्रमित होने के बाद, बिना उपचार के उसकी औसत जीवन प्रत्याशा 6 से 11 साल तक की मानी जाती है। हालाँकि HIV के उपप्रकार और व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली की सामर्थ्य के आधार पर, यह अवधि कम या ज्यादा भी हो सकती है।

HIV in Hindi इम्यून सिस्टम पर हमला करता है यह विषाणु

शरीर का इम्यून सिस्टम इसका अभेद्य सुरक्षा कवच है, जिसके कमजोर होने पर एड्स से पीड़ित लोग भयानक छूत के रोगों और कैंसर आदि से पीड़ित हो जाते हैं। HIV शरीर के इसी प्रतिरक्षा तंत्र पर प्रहार करके, उसे गंभीर नुकसान पहुँचाता है और संक्रमणों के प्रति उसकी प्रतिरोधक क्षमता को धीरे-धीरे कम करता जाता है।

HIV, मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (Human Immune System) की अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाओं जैसे कि हेल्पर T-सेल्स (विशेषकर CD4+ T सेल्स), मैक्रोफेज और ड़ेंड्रेटिक कोशिकाओं को संक्रमित करता है। यह सभी कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाओं का ही विशेष प्रकार हैं। HIV के संक्रमण से सीडी4+ टी सेल्स का स्तर लगातार गिरने लगता है और ऐसा तीन प्रक्रियाओं के जरिये होता है –

पहली संक्रमित कोशिकाओं का सीधे वायरस द्वारा मारा जाना, दूसरी संक्रमणरहित बायस्टैंडर कोशिकाओं में एपोप्टॉसिस की बढ़ी हुई दर और तीसरी संक्रमित कोशिका की पहचान करने वाली सीडी8 साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट कोशिकाओं (CD8 Cells) द्वारा संक्रमित सीडी4+ टी कोशिकाओं की समाप्ति।

T-सेल्स के कम होते ही बेहद खतरनाक हो जाता है HIV

जब सीडी4+ टी (CD4+ T) कोशिकाओं की संख्या एक खतरनाक स्तर से नीचे गिर जाती है, तो कोशिका की मध्यस्थता से होने वाली प्रतिरक्षा (Cell-mediated Immunity) समाप्त हो जाती है और शरीर के भविष्य में प्रकट होने वाले संक्रमणों से ग्रस्त होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।

यही कारण है कि HIV के कुछ साल तक ही शरीर में रहने पर शरीर अन्दर से इतना कमजोर हो जाता है कि अंत में एड्स के रोगी की एक सामान्य से संक्रमण से भी मौत हो जाती है। इस तरह से देखा जाय तो एड्स का यह वायरस न सिर्फ खुद T-सेल्स का शिकार करता है, बल्कि यह इन्हें इनके अपने ही साथियों द्वारा मौत के घाट उतरवा देता है।

पर आकार में इतना छोटा होने के बावजूद, यह वायरस, आखिर कैसे बेहद शक्तिशाली सम्पूर्ण इम्यून सिस्टम को घुटनों पर ला देता है, इस पहेली का विशेष वर्णन, हमने ‘बेहद खतरनाक और चालाक है एड्स का वायरस’ नामक लेख में किया है।

What are The Causes of The AIDS in Hindi

कैसे फैलता है एड्स जैसा जानलेवा और घातक रोग

अभी तक हमने आपको AIDS और उसे उत्पन्न करने वाले वायरस HIV के बारे में बताया है। अब हम आपको यह बतायेंगे कि आखिर एड्स होने का मुख्य कारण क्या हैं? अर्थात HIV का संक्रमण इंसानों में किस तरह से फैलता है। क्योंकि जब तक AIDS के कारणों के बारे में अच्छी तरह से नहीं पता होगा, तब तक न तो इस जानलेवा बीमारी से बचाव हो पायेगा और न ही इसका इलाज।

HIV का संक्रमण, रक्त, वीर्य, योनि द्रव्य और स्खलन-पूर्व द्रव (प्री-एजाकुलेट) के स्थानांतरण और स्तनों के दूध (ब्रेस्ट मिल्क) से फैलता है। एडस का यह वायरस शरीर के इन द्रव्यों (बॉडी फ्लूइडस) के अन्दर मुक्त विषाणु कणों (Free Virus Particles) और संक्रमित प्रतिरक्षा कोशिकाओं के भीतर उपस्थित विषाणु (Virus within Infected Immune Cells), दोनों ही रूपों में मौजूद रहता है।

एड्स एक संक्रामक रोग है, अर्थात यह एक इन्सान से दूसरे को और दूसरे से तीसरे इन्सान को होने वाली एक गंभीर बीमारी है। विशेषज्ञों के अनुसार, किसी इन्सान से एड्स से पीड़ित होने के पीछे चार कारण हैं, जिनमे से तीन मुख्य हैं। यही वह कारण हैं जिनके माध्यम से HIV इंसानों के शरीर के अन्दर दाखिल होता है।

1. दो लोगों के बीच असुरक्षित यौन संबंध से होता है HIV संक्रमण

असुरक्षित यौन संबंध (Unprotected Sexual Intercourse) एड्स होने का मुख्य कारण है, क्योंकि असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स का वायरस, आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाता हैं। इस दुनिया में एड्स के जितने भी रोगी हैं, उनमे से 85 प्रतिशत रोगियों को यह रोग, इसी एक कारण से हुआ है। कुछ लोग मानते हैं कि AIDS केवल योनि संभोग (Vaginal Intercourse) करने पर ही होता है, पर ऐसा नहीं है। यह गुदा मैथुन (Anal Sex) और मुख मैथुन (Oral Sex) से भी आसानी से फ़ैल सकता है।

वास्तव में योनि मैथुन की तुलना में, गुदा मैथुन, एड्स को फैलाने में ज्यादा सहायक होता है। इसकी वजह यह है कि गुदा की म्यूकस मेम्ब्रेन यानी म्यूकस झिल्ली, योनि की आन्तरिक परत की तुलना में अत्यंत नाजुक होती है और इसके क्षतिग्रस्त होने पर वायरस खून में जल्दी पहुंच जाते हैं। अमेरिका और दूसरे विकसित देशों में यह बीमारी समलैंगिकता के कारण ही ज्यादा तेजी से फैली है।

लेकिन भारत और दूसरे विकासशील देशों में HIV संक्रमण का मुख्य कारण, विषमलिंगीयों (स्त्री व पुरुष) के बीच बनने वाला यौन संबंध है और इसकी दर भी काफी ज्यादा 80 से 85 प्रतिशत है। मुख मैथुन भी एड्स का कारण बन सकता है, क्योंकि मुँह के अन्दर की खाल भी अत्यंत कोमल होती है और अगर मुँह में कोई छाल या खरोंच लगी हो तो खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।

2. दूषित रक्त का आदान-प्रदान करने से होता है HIV संक्रमण

अगर किसी स्वस्थ व्यक्ति को HIV से संक्रमित रक्त चढ़ा दिया जाय, तो आगे चलकर उसे भी एड्स हो जाता है। क्योंकि एड्स का वायरस, रोगी के रक्त के माध्यम से, सीधे स्वस्थ व्यक्ति के खून में पहुँच जाता है। इस प्रकार से होने वाला संक्रमण भी आम तौर पर ज्यादा तेज होता है। क्योंकि रोगी के रक्त में, HIV सक्रिय और बड़ी संख्या में उपस्थित हो सकता है, जिससे लक्षणों का विकास कम समय में और जल्दी होता है।

इसीलिये कभी भी किसी व्यक्ति को बिना जांच कराये न तो रक्तदान करना चाहिये और न ही लेना चाहिये। चूँकि एड्स की गंभीरता से भारत में हर कोई वाकिफ है और सरकार भी इस पर काफी ध्यान दे रही है, इसीलिये जगह-जगह स्थापित, सरकारी ब्लड बैंक में एड्स की जरुरी जांच की व्यवस्था होने से, इस प्रकार से एड्स फैलने का खतरा बहुत ज्यादा कम (50,000 लोगों में से 1) हो गया है, पर फिर भी एहतियात बरतना जरुरी है।

3. संक्रमित सुई का साझा प्रयोग करने से होता है HIV संक्रमण

रक्त और रक्त उत्पाद, HIV का संक्रमण फैलने का दूसरा सबसे बड़ा कारण हैं। लेकिन इस खतरे की सबसे बड़ी वजह सिर्फ एक ही चीज है और वह है संक्रमित सुई का साझा प्रयोग। आम तौर पर एड्स प्रोग्राम की बढ़ी हुई जागरूकता के कारण स्वास्थ्य कर्मी एक से ज्यादा मरीजों का प्रायः एक ही सुई से उपचार नहीं करते हैं। लेकिन नशे का सेवन करने वाले लोग इसके अपवाद हैं। दुनिया भर में करोड़ों ड्रग एडिक्ट हैं जो इंजेक्शन के द्वारा नशीली दवाइयों का सेवन करते हैं।

आम तौर पर यह नशेडी लापरवाही के कारण, आपस में एक ही सुई का इस्तेमाल करते हैं। इन ड्रग एडिक्टस में से कई लोग एड्स पीड़ित होते हैं जो दूसरों को यह बीमारी मुफ्त में बाँटते हैं। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा इस्तेमाल की हुई सुई के माध्यम से एचआईवी होने का जोखिम 0.3% प्रतिशत होता है, जबकि श्लेष्मा झिल्ली के खून से संक्रमित होने का जोखिम 0.09% होता है।

सन 2009 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एड्स के 12% मामले ऐसे लोगों के आये थे जो नसों के जरिये नशीली दवायें लेते थे। कुछ क्षेत्रों में नशीली दवाओं का सेवन करने वालों में से 80% से ज्यादा लोग एचआईवी पोजिटिव मिले। हर साल एड्स के 8 से 10 प्रतिशत रोगी, इसी कारण से HIV का शिकार बनते हैं और अपने ही हाथों से अपना जीवन चौपट करते हैं।

4. माँ से शिशु को भी हो सकता है HIV संक्रमण

अगर कोई स्त्री HIV से संक्रमित है और वह गर्भवती है, तो उसका होने वाला शिशु भी एड्स से संक्रमित ही पैदा होता है। एचआईवी, गर्भावस्था, प्रसव और स्तनपान के दौरान माँ से बच्चे के शरीर में ट्रांसफर हो सकता है। दुनिया भर में HIV फैलने का यह तीसरा सबसे प्रमुख कारण है। इलाज के अभाव में जन्म से पहले या जन्म के समय, HIV के संक्रमण का जोखिम 20% तक होता है।

लेकिन स्तनपान के द्वारा यही जोखिम बढ़कर 35% तक हो जाता है। सन 2008 तक दुनिया भर में जिन बच्चों को HIV का संक्रमण हुआ था, उनमे से 90% में यह उनकी माँ के द्वारा हुआ था। अगर सही उपचार किया जाय, तो माँ से बच्चे को होने वाले संक्रमण को कम करके 90% से 1% तक लाया जा सकता है। इसके लिये माँ को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एंटीरेट्रोवाइरल दवा दी जाती हैं।

नार्मल डिलीवरी के बजाय शल्यक्रिया (आपरेशन) द्वारा माँ का प्रसव कराया जाता है और नवजात शिशु को स्तनपान के बजाय उपरी दूध पिलाया जाता है। साथ ही नवजात शिशु को भी एंटीरिट्रोवाइरल दवाइयों की खुराक देकर माँ से बच्चे में होने वाला एच. आई. वी. संक्रमण रोका जाता है। हालांकि इनमें से कुछ उपाय अभी भी कई विकासशील देशों में प्रचलित नहीं हैं।

इनके अलावा टैटू बनाने या बनवाने और खुरचने से भी सैद्धांतिक रूप से HIV संक्रमण का जोखिम बना रहता है, लेकिन अभी तक ऐसे किसी भी मामले की पुष्टि नहीं हुई है। अगर भोजन चबाने के दौरान संक्रमित रक्त भोजन को दूषित कर देता है, तो यह भोजन भी एच. आई. वी. के फैलने का जोखिम पैदा कर सकता है।

HIV AIDS in Hindi इनसे नहीं फैलता है एड्स

उपर हमने उन चार कारणों के बारे में बताया है जिनसे एड्स फैलता है। लेकिन इस बीमारी के प्रति लोगों में खौफ इस हद तक घर कर गया है कि वह एड्स के रोगियों को बिल्कुल ही अछूत समझते हैं। इसीलिये आपको उन बातों के बारे में भी जानना चाहिये जिनसे एड्स नहीं फैलता, ताकि आप दूसरों को भी सचेत कर सकें।

1. मल-मूत्र, उल्टी, लार, थूक और नाक की श्लेष्मा से HIV से संक्रमित होने का खतरा तब तक नहीं होता है, जब तक कि यह एच. आई. वी संक्रमित रक्त के साथ दूषित न हो।

2. इनके अलावा संक्रमित व्यक्ति के आँसू और पसीने के संपर्क में आने से भी एड्स नहीं फैलता है।

3. मच्छरों के काटने से एड्स नहीं होता है, क्योंकि इनके शरीर में वायरस ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह पाता है।

4. हवा, पानी और भोजन के माध्यम से भी HIV नहीं फैलता है।

Symptoms of The HIV AIDS in Hindi

जानिये क्या हैं एड्स के सामान्य लक्षण

एड्स के कोई विशिष्ट लक्षण नहीं होते हैं और आम तौर पर यह दूसरी बीमारियों के लक्षणों जैसे ही होते हैं। एक बार जब कोई व्यक्ति HIV से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में 2 से 6 सप्ताह बाद हलके फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। जो 1-2 सप्ताह तक प्रकट रहकर फिर से लुप्त हो जाते हैं और फिर लम्बे समय तक शरीर में एड्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते।

बहुत से लोगों में तो वायरस के संक्रमण के लक्षण, एक बार दिखने के बाद दोबारा 10 से 15 साल बाद ही उभरते देखे गये हैं, पर तब तक बहुत देर हो जाती है। एचआईवी से संक्रमित 85 प्रतिशत रोगियों में, सामान्य फ्लू जैसे लक्षण दिखायी देते हैं, जबकि 5 प्रतिशत लोगों में कोई विशेष लक्षण दिखायी नहीं देता। दरअसल ऐसे ही रोगियों को एड्स का ज्यादा खतरा रहता है।

क्योंकि वायरस, उनके शरीर में चुपचाप पड़ा हुआ अपनी संख्या बढाता रहता है और शरीर के इम्यून सिस्टम को कमजोर करता रहता है। शुरूआती और बाद में तीव्रता से होने वाले संक्रमण के लक्षण इस प्रकार है –

एड्स के रोगियों में दिखायी देते हैं यह लक्षण

1. एक सप्ताह से ज्यादा समय तक पतले दस्त होना।
2. रात के समय अक्सर और ज्यादा पसीना आना।
3. अकारण वजन का काफी हद तक कम हो जाना।
4. बार-बार बुखार आना और फिर ठीक हो जाना।
5. खांसी और जुकाम का लगातार बने रहना।

6. चेहरे पर या त्वचा के नीचे गुलाबी/बैंगनी रंग के धब्बे होना।
7. सिरदर्द, थकान और अनिद्रा की शिकायत।
8. गले या कांख में गिल्टियाँ होना।
9. नाड़ियों (लसीकाओं) में सूजन आना।
10. मुँह में घाव या छाले होना।

11. त्वचा पर दाद-खुजली का फंगल इन्फेक्शन।
12. भूख न लगना और हैजे की शिकायत।
13. फेफड़ों में जलन की शिकायत।
14. शरीर में अक्सर दर्द बने रहना, टूटन।
15. याददाश्त कमजोर होना और मतिभ्रम।

कृपया ध्यान दें इन लक्षणों के दिखायी देने का यह अर्थ नहीं है कि आपके शरीर में एचआईवी वायरस उपस्थित है या फिर आप एड्स का शिकार बन गये हैं। क्योंकि यह सभी लक्षण दूसरे रोगों के भी हो सकते हैं, इसीलिये रोग के बारे में निश्चित होने के लिये ब्लड टेस्ट जरुरी है।

Stages of The HIV Infection (AIDS) in Hindi

HIV (एचआईवी ) संक्रमण के तीन मुख्य चरण हैं – तीव्र संक्रमण, नैदानिक ​​विलंबता और एड्स। एक बार वायरस से संक्रमित होने के बाद, इन तीनों चरणों का ध्यान रखना, उपचार की दृष्टि से जरुरी है। क्योंकि अगर समय रहते उपचार न कराया जाय, तो एचआईवी का संक्रमण बढ़ता जाता है और यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बुरी तरह से नुकसान पहुँचा सकता है।

1. Acute Infection एचआईवी का तीव्र संक्रमण

एचआईवी से संक्रमित होने के बाद की प्रारंभिक अवधि को तीव्र HIV या प्राथमिक एच.आई.वी या तीव्र रेट्रोवायरल सिंड्रोम कहते हैं। इस दौरान बहुत से लोगों में 2-4 सप्ताह तक इन्फ्लूएंजा या मोनोंयुक्लिओसिस जैसी बीमारी के लक्षण दिखायी देते हैं, लेकिन कुछ लोगों में ऐसे कोई विशेष लक्षण दिखायी नहीं देते। आम तौर पर 70 से 90 प्रतिशत लोगों में यह लक्षण दिखायी देते हैं –

बुखार, लिम्फ नोड्स की सूजन, गले और काँख में गिल्टियाँ, सिर दर्द, मुँह और जननांगों के घाव, शरीर पर लाल-लाल चकत्ते आदि। चकत्ते 20 से 50 प्रतिशत मामलों में दिखायी देते हैं। कुछ लोगों में इस स्टेज में अवसरवादी संक्रमण (Opportunistic Infection) की शुरुआत भी हो जाती है, जबकि कुछ लोगों में पेट और आँतों की समस्या जैसे कि उल्टी, दस्त और मिचली शुरू हो जाती है।

कुछ लोगों में पेरीफेरल न्यूरोपैथी के स्नायविक लक्षण और जुल्लैन बर्रे सिंड्रोम जैसी बीमारियों के लक्षण दिखते हैं। यह लक्षण आम तौर पर 1 से 2 सप्ताह ही दिखायी देते हैं। पर कोई विशिष्ट लक्षण नहीं दिखने पर ज्यादातर लोग, इन्हें अक्सर एचआईवी का संक्रमण नहीं मानते हैं। यहाँ तक कि कई बार चिकित्सक और अस्पताल भी HIV के लक्षणों को पहचानने में भूल कर जाते हैं और बीमारी का गलत निदान कर देते हैं।

इसीलिये अगर किसी रोगी को बार बार बुखार आ रहा हो, या उसका वजन गिर रहा हो, या उसे खाँसी और दस्तों की समस्या हो, तो उसे अपना HIV टेस्ट करा लेना चाहिये। क्योंकि यह एच.आई.वी. संक्रमण का एक लक्षण हो सकता है।

2. Clinical Latency क्रोनिक HIV

एचआईवी का तीव्र संक्रमण होने के कुछ दिन बाद, इसके लक्षण उभरकर फिर से लुप्त होने लगते हैं और यह अगले 3 से लेकर 20 वर्षों तक शरीर में ही चुपचाप पड़ा रहता है। इन्फेक्शन की इस स्टेज को क्लिनिकल लेटेंसी (नैदानिक विलंबता), स्पर्शोन्मुख एचआईवी या पुरानी एचआईवी कहते हैं। प्रायः इस स्टेज में कोई विशेष लक्षण नहीं दीखते हैं, लेकिन इसका अंत होने तक कई लोगों में निम्न लक्षण प्रकट होने लगते हैं –

लगातार बुखार बने रहना, वजन घटना, पेट और आँतों की समस्याएँ, मांसपेशियों में दर्द, और स्मृतिनाश आदि। 40-50 प्रतिशत लोगों में 3 से 6 महीने के भीतर लसिका ग्रंथियों (जाँघ के समीप वाली के अतिरिक्त) में सूजन आने लगती है और वह बढ़ जाती हैं। हालाँकि HIV-1 से संक्रमित ज्यादातर लोगों में पर्याप्त वायरल लोड होता है, जिससे इन्फेक्शन का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

लेकिन अगर उपचार न कराया जाय तो वह और ज्यादा बढ़कर एड्स में बदल जाता है। जबकि 5 प्रतिशत केसों में एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी के बिना भी CD4+ T कोशिकाएं 5 साल से ज्यादा समय तक शरीर में बनी रहती हैं। ऐसे लोगों को HIV कंट्रोलर कहा जाता है, क्योंकि इनके शरीर में HIV लम्बे समय तक नियंत्रित अवस्था में रहता है।

3. Acquired Immunodeficiency Syndrome एड्स

HIV इन्फेक्शन की सबसे अंतिम और उग्र अवस्था का नाम ही एड्स है। एड्स को दो प्रकार से परिभाषित किया जाता है – एक तो जब शरीर में CD4+ T कोशिकाओं कि संख्या 200 कोशिकाएं/μL से कम हो जाती हैं या जब एचआईवी संक्रमण के कारण, रोगी के शरीर में कोई विशिष्ट रोग उत्पन्न हो जाता है।

अगर संक्रमण की शुरुआत से ही रोगी को विशिष्ट उपचार न मिले, तो एचआईवी से संक्रमित 70 प्रतिशत लोगों के अन्दर, दस साल में एड्स विकसित हो जाता है। एड्स की उपस्थिति का संकेत करने वाली सबसे आम प्रारंभिक स्थितियों में यह मुख्य हैं –

40 प्रतिशत लोगों में न्युमोसाईतिस निमोनिया (Pneumocystis Pneumonia) के रूप में जानलेवा निमोनिया की शिकायत, 20 प्रतिशत लोगों में HIV वास्टिंग सिंड्रोम  के रूप में वजन घटना, मांसपेशियों में खिंचाव, थकान, भूख में कमी और गले की नली में संक्रमण (सोफागेल कैंडिडिआसिस) आदि। दूसरे आम लक्षणों में श्वसन तंत्र से संबंधित इन्फेक्शन भी शामिल हैं।

इनके अलावा एड्स, बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी से फैलने वाले उन अवसरवादी संक्रमणों का भी कारण बनता है, जिन्हें आम तौर पर हमारा इम्यून सिस्टम रोककर रखता है। अक्सर यह संक्रमण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग प्रकार के होते हैं और व्यक्ति के आस-पास के वातावरण पर निर्भर करते हैं। यह संक्रमण, शरीर के प्रत्येक अंग प्रणाली (Organ System) को प्रभावित करते हैं।

Diagnosis Methods of The HIV AIDS in Hindi

जानिये कैसे होती हैं एड्स के वायरस HIV की जाँच

कोई व्यक्ति HIV के संक्रमण या AIDS से पीड़ित है या नहीं, इसका निश्चय सिर्फ उसे देखकर नहीं किया जा सकता है। बल्कि इसके लिये तो उसके रक्त की सूक्ष्मता से जाँच करनी पड़ती है, तभी जाकर उसके शरीर में HIV की उपस्थिति का पता चलता है। लेकिन ध्यान रखने योग्य बात यह कि रक्त में वायरस की उपस्थिति का पता भी कम से कम 2 से 3 महीने बाद ही चलता है।

क्योंकि वायरस की पहचान कराने वाले एंटीबाडी, संक्रमण के तुरंत बाद ही बनना शुरू नहीं होते हैं और जब तक एंटीबाडी प्रकट नहीं होते, तब तक निश्चित रूप से इस विषाणु की उपस्थिति के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। हालाँकि HIV RNA टेस्ट की मदद से संक्रमण की शुरुआत के सिर्फ 2 सप्ताह बाद भी शरीर में वायरस की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है

लेकिन यह टेस्ट बहुत महँगा है और हर जगह सुलभ नहीं है इसीलिये एंटीबाडी टेस्ट पर ही ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है एड्स की जाँच मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं – एंटीबाडी टेस्ट, न्यूक्लिक एसिड टेस्ट और एंटीजन-एंटीबाडी टेस्ट। शरीर में वायरस उपस्थित है या नहीं इसके लिये शारीरिक द्रव्यों विशेषकर रक्त की जाँच की जाती है

डोनर के ब्लड और टिश्यू सैंपल से होती है HIV जाँच

लेकिन HIV का पता थूक, लार और पेशाब से भी लगाया जा सकता है लेकिन इन सभी माध्यमों में ब्लड टेस्टिंग ही सबसे ज्यादा विश्वसनीय है HIV टेस्टिंग में डोनर के ब्लड और टिश्यू सैंपल इतने विश्वसनीय होने चाहियें कि अगर वायरस उनमे उपस्थित हो तो उसका पता लग जाय अर्थात उनका उच्च संवेदनशील और विशिष्ट होना आवश्यक है

पश्चिमी देशों में ब्लड बैंकों द्वारा एंटीबॉडी, एंटीजन और न्यूक्लिक एसिड टेस्ट्स को संयुक्त रूप से प्रयोग किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार HIV की जाँच में सावधानी इसलिये भी जरुरी है क्योंकि गलत और अपर्याप्त रक्त जांच के कारण हर साल HIV इन्फेक्शन के लगभग 10 लाख नये मामले सामने आते हैं

सन 1985 से संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनेट किये गये सभी रक्त की एचआईवी (HIV-1 और HIV-2 दोनों की) जाँच, एलिसा (ELISA) टेस्ट और न्यूक्लिक एसिड टेस्ट के माध्यम से की जाती है। दुनिया भर की लेबोरेटरी में HIV AIDS की जाँच इन टेस्ट्स के माध्यम से की जाती है –

यह हैं HIV की जाँच के लिये इस्तेमाल होने वाले परीक्षण

1. ELISA Test एलिसा परीक्षण
2. Western Blot Test वेस्टर्न ब्लॉट परीक्षण
3. Viral Load Test वायरल लोड परीक्षण
4. Architect Combo Assay Test आर्किटेक्ट कॉम्बो ऐसे परीक्षण
5. Home Access Express Test होम एक्सेस एक्सप्रेस परीक्षण

HIV की पहचान के लिये किये जाने वाले दूसरे टेस्ट्स

6. OraQuick Test ओराक्विक परीक्षण
7. Orasure Test ओराश्योर परीक्षण
8. Uni-Gold Test यूनी-गोल्ड परीक्षण
9. Clearview HIVTest क्लियरव्यू कम्प्लीट एचआईवी-1/2 परीक्षण

10. Clearview HIV Stat-Pack Test क्लियरव्यू एचआईवी-1/2 स्टैट-पैक
11. ID Fast HIV Test आईडायग्नास्टिक्स द्रुत एचआईवी परीक्षण
12. Reveal HIV Test रिवील एचआईवी परीक्षण
13. Insti HIV Fast Antibody Test इन्स्टी एचआईवी-1/2 द्रुत एंटीबॉडी परीक्षण

जाँच में पुष्टि होने पर ही माना जाता है HIV संक्रमण

वैसे तो HIV की जाँच के लिये एक दर्जन से भी ज्यादा टेस्ट्स उपलब्ध हैं लेकिन दुनिया भर में HIV एड्स के जितने भी मामले सामने आते हैं उनमे से 99 प्रतिशत की जाँच सबसे उपर की दो जाँच एलिसा परीक्षण और वेस्टर्न ब्लॉट परीक्षण के माध्यम से की जाती हैं क्योंकि एक तो यह आसान होने के साथ-साथ कम खर्चीली हैं दूसरा इनकी एक्यूरेसी भी बहुत ज्यादा है

इन सभी टेस्ट्स से रिपोर्ट मिलने में 15 मिनट से लेकर 2 घंटों तक का समय लगता है एक बार जब इन टेस्ट्स के द्वारा व्यक्ति के रक्त में HIV की पुष्टि हो जाती है, तो उसे एच.आई.वी. पॉजिटिव कहते हैं। ध्यान दीजिये कि ऐसा कोई HIV टेस्ट नहीं है, जो संक्रमण के तुरंत बाद ही HIV की शिनाख्त कर दे।

संक्रमण से लेकर किसी भी परिवर्तन की जानकारी के लिये की गई परीक्षा तक की अवधि को विंडो अवधि (Window Period) कहते हैं। एंटीबॉडी परीक्षणों के लिये औसत विंडो अवधि 25 दिन होती है। लेकिन एंटीजन जांच, विंडो अवधि को 16 दिन और NAT (न्यूक्लिक एसिड जांच) 12 दिनों तक कम कर सकती है।

Treatment of The HIV AIDS in Hindi

कैसे होता है एड्स की बीमारी का इलाज

अब तक आप समझ ही गये होंगे कि एड्स एक लाइलाज बीमारी है। अर्थात इसका कोई इलाज नहीं है और इसकी अंतिम परिणति हमेशा मौत ही होती है, फिर चाहे वह 5 साल बाद हो या 20 साल बाद। लेकिन आपको दिल छोटा करने की भी कोई जरुरत नहीं है। क्योंकि पिछले 28 वर्षों में, जबसे इस बीमारी का पता चला है, वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के अथक परिश्रम और असीम धैर्य से कुछ प्रभावशाली दवाइयाँ खोज निकाली गयी हैं।

जो इस रोग की तीव्रता को बहुत हद तक घटाकर इतना कम कर देती हैं कि एड्स का रोगी अपने जीवन को कई वर्षों तक लम्बा खींच सकता है। यह दवाइयाँ न सिर्फ वायरस की वृद्धि को रोकती हैं, बल्कि इम्यून सिस्टम को भी ज्यादा कमजोर होने से बचाकर रखती हैं। HIV के उपचार में कई प्रकार की दवाइयाँ काम में आती हैं और आपका चिकित्सक ही सर्वश्रेष्ठ औषधियों का चयन कर सकता है।

एड्स के इलाज में रखा जाता है कई चीजों का ध्यान

दवाइयों के चुनाव में वायरल लोड, HIV स्ट्रेन और रोग की गंभीरता का ध्यान रखा जाता है। HIV से संक्रमित सभी लोगों को एक समय में एक से ज्यादा दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं, ताकि वायरस पर कई तरफ से प्रचंड हमला बोलकर, उसकी संख्या को बहुत तेजी से कम कर दिया जाय। इसके अलावा मल्टीड्रग थेरेपी, वायरस को दवाइयों का प्रतिरोधी (ड्रग रेसिस्टेंट) बनने से भी रोकती हैं, क्योंकि यह वायरस बहुत जल्दी खुद में बदलाव ले आता है।

ऐसा करने से न सिर्फ रोगी के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार आता है, बल्कि वायरस को बहुगुणित होने से भी रोका जाता है। यह दवाइयाँ FDA यानि अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (U.S. Food and Drug Administration) से भी प्रमाणित हैं। मल्टीड्रग थेरेपी में एक से ज्यादा दवाइयों (Combination Drugs) का इस्तेमाल किया जाता है और यह इस प्रकार हैं –

1. एबेकवीर/डोलुटग्रेवीर/लेमीवुडाइन (ट्रिउमेक)
2. डोलटेग्रेवीर/रिल्पीविरिन (जुलुका)
3. एल्विटग्रेवीर/कोबीसिसटैट/एमट्रीसिटाबिन/टेनोफोविर डिजोप्रोक्सिलफुमारेट (स्ट्रीबिल्ड)

एड्स के उपचार में मुख्य रूप से यह दवाइयाँ दी जाती हैं और अक्सर इन्हें दूसरी श्रेणी की दवाइयों के साथ मिलाकर लिया जाता है।

1. NRTI Drugs एनआरटीआई ड्रग्स

न्यूक्लियोसाइड रिवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज़ इनहिबिटर (Nucleoside Reverse Transcriptase Inhibitors) को शोर्ट फॉर्म में NRTI ड्रग्स कहा जाता है। यह दवाइयाँ वायरस को अपनी संख्या बढ़ाने से रोकती हैं, जिससे एचआईवी शरीर में ज्यादा तेजी से वायरल लोड नहीं बढ़ा पाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं –

1. एबेकवीर (Abacavir)
2. लेमीवुडाइन (Lamivudine)
3. एमट्रीसिटाबिन (Emtricitabine)
4. डिडेनोसिन (Didanosine)
5. स्टवुडिन (Stavudine)

2. NNRTIs Drugs एनएनआरटीआई ड्रग्स

नॉन न्यूक्लियोसाइड रिवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज़ इनहिबिटर (Non-nucleoside Reverse Transcriptase Inhibitors) या एनएनआरटीआई ड्रग्स भी एनआरटीआई ड्रग्स की ही तरह से काम करती हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं –

1. एफाविरेंज (Efavirenz)
2. एट्राविरिन (Etravirine)
3. नेवीरापाइन (Nevirapine)
4. रिल्पीविरिन (Rilpivirine)

3. Entry inhibitors एंट्री इनहिबिटर्स

यह दवाइयाँ वायरस को अपनी कॉपी बनाने से रोकती हैं। इन दवाइयों में Fusion Inhibitors (फ्यूजन इनहिबिटर्स) भी शामिल हैं। एन्फुविरटाइड (Enfuvirtide) ऐसी ही एक दवाई है। इसे फ्युजिओन (Fuzeon) भी कहते हैं। इसके अलावा इबलीजुमाब (Ibalizumab) भी एक प्रभावशाली औषधि है।

4. Integrase inhibitors इंटीग्रेज इनहिबिटर्स

यह दवाइयाँ उस इंटीग्रेज एंजाइम की क्रिया को रोकती हैं, जिसे HIV, T-सेल्स को इन्फेक्ट करने के लिये इस्तेमाल करता है। इनके नाम हैं –
1. डोलटेग्रेवीर (Dolutegravir)
2. एल्विटग्रेवीर (Elvitegravir)
3. राल्टेग्रेवीर (Raltegravir)
4. राल्टेग्रेवीर एक्सटेंडेड रिलीज (Raltegravir Extended-release)

5. Protease Inhibitors प्रोटेस इनहिबिटर्स

प्रोटेस इनहिबिटर्स, वायरस के प्रोटीन से बंधकर, HIV को बहुगुणित होने से रोकती हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं –

1. अटाजनाविर (Atazanavir)
2. डारुनाविर (Darunavir)
3. लोपिनाविर (Lopinavir)
4. रिटोनाविर (Ritonavir)

6. HAART हाइली एक्टिव एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी

WHO के सहयोग से विकसित की गयी ART थेरेपी की मदद से, एड्स के रोगी 8 से 10 साल और ज्यादा जी सकते हैं। भारत में सरकारी अस्पतालों में एड्स का इलाज, प्रायः एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी की मदद से ही किया जाता है, क्योंकि यह बहुत प्रभावशाली है। HAART या हाइली एक्टिव एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी या एचएएआरटी (Highly Active Antiretroviral Therapy or HAART) में, एक ही वक्त में, तीन-चार दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है।

एड्स की दवाइयों के बारे में विस्तार से जानने के लिये पढ़ें –

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