Lord Ganesha and Kuber Story in Hindi

 

“अहंकार मनुष्य का सबसे घातक शत्रु है। इसकी गोद में ही बाकी सभी बुराइयाँ पनपती है। जहाँ मनुष्य का मिथ्या अहंकार समाप्त हो जाता है, वहाँ उसकी गरिमा आरम्भ होती है।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

Pride and Ego Quotes and Story in Hindi
अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है, क्योंकि यह छिपकर मारता है

यक्षराज कुबेर अपार धन-संपत्ति के स्वामी थे, यहाँ तक कि देवता भी उनके जैसा ऐश्वर्य पाने को लालायित रहते थे। पर यह संपत्ति कुबेर की स्वयं की अर्जित की हुई नहीं थी, बल्कि ब्रह्माजी ने उन्हें पुण्य-परमार्थ में लगाने के लिये प्रदान की थी। इतना धन और ऐश्वर्य पाकर धीरे-धीरे कुबेर के मन में इस बात का अभिमान पैदा हो गया कि यह समस्त धन-सम्पदा उनकी ही है।

और वे इसे जैसे चाहे वैसे खर्च कर सकते हैं। इसी क्रम में वे इस संपत्ति को अपने स्वार्थ में उपयोग करने लगे। उनका अहंकार यहाँ तक बढ़ गया कि धन के मद में आकर उन्होंने देवराज इंद्र तक का अपमान कर दिया। ब्रह्माजी से यह सब छुप न सका। उन्होंने कुबेर को पतन से बचाने का निश्चय किया। एक दिन वे अकस्मात कुबेर के यहाँ जा पहुँचे।

स्वयं विधाता को आया देखकर कुबेर ने उनका बहुत सम्मान किया। कुशल-क्षेम के पश्चात ब्रह्माजी ने उन्हें एक महाभोज करने का आदेश दिया जिसमे सभी देवताओं और गन्धर्वों के साथ-साथ अन्य सभी उच्स्तरीय आत्माओं को भी निमंत्रित किया जाना था। सबको निमंत्रण देने के पश्चात कुबेर भगवान शिव के पास भी पहुँचे।

उनसे प्रार्थना करते हुए कुबेर ने कहा – “भगवन! मैंने एक महाभोज का आयोजन किया है जिसमे देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, नाग और सभी ऋषि-मुनि भी सम्मिलित होंगे। इस भोज में कोई भी जीव अतृप्त होकर नहीं लौटेगा। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप भी महाभोज में माता पार्वती और पुत्रों सहित पधारें, जिससे इस महाभोज की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल जाय।

भगवान शिव कुबेर की विनम्र वाणी में छुपे अहंकार को ताड गये। उन्होंने कुबेर को रूखा जवाब देते हुए कहा, “देखो मै और पार्वती तो एक महत्वपूर्ण कार्य से स्वर्ग जा रहे हैं, इसलिये तुम्हारे भोज में सम्मिलित न हो सकेंगे। परन्तु गणेश को निश्चित रूप से भेज दूँगा। यदि उन्हें तृप्त कर सकोगे तो समझना कि तुमने हमें भी तृप्त कर दिया है।

कुबेर शिवजी को प्रणाम कर चले गये। इधर कुबेर ने जैसे ही महाभोज आरंभ किया, वैसे ही गणेशजी वहाँ पहुँच गये। जब कुबेर ने उनका पूजन-सत्कार करना चाहा तो गणेश जी ने यह कहकर उन्हें मना कर दिया कि पूजन-वंदन सब बाद में करना, पहले मुझे भोजन कराओ। इस समय मुझे बहुत तेज भूख लगी है।

विघ्नेश्वर गणेशजी के स्वभाव से परिचित कुबेर ने सर्वप्रथम उन्हें ही भोजन कराया। पर यह क्या? खाना परोसने भर की देर थी, गणेशजी ने उसे तुरंत चट कर लिया। गणेशजी को पुनः भोजन परोसा गया, पर वे फिर उसे तुरंत ही उदरस्थ कर गये। सबके देखते-देखते गणेशजी ने भोजनशाला में बना समस्त भोजन समाप्त कर डाला।

संपूर्ण आयोजन में खलबली मच गयी। लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कुबेर यह देखकर बहुत घबरा गये। इधर तो गणेश जी का ही पेट ही नहीं भर सका, और उधर बाकी अतिथि क्या खायेंगे? यह सोच-सोचकर कुबेर लज्जा के मारे मुंह लटकाये खड़े थे। उधर गणेशजी भोजन की प्रतीक्षा में अतृप्त बैठे थे।

जब उन्हें सब हाल मालूम हुआ तो उन्होंने क्रोध में कुबेर का तिरस्कार करते हुए कहा, “क्यों जी! तुम तो कह रहे थे कि सभी को तृप्त करूँगा और यहाँ मेरे अकेले का ही पेट नहीं भर पाये। अब कहाँ गई तुम्हारी वह अकड जिसके बल पर तुमने सभी का पेट भरने की डींग मारी थी। गणेशजी उठकर कैलाश को चल दिये।

वहाँ जाकर उन्होंने शिवजी से कहा, “पिताजी, आपने मुझे किस भिखारी के यहाँ भेज दिया जो मुझ अकेले को भी न तृप्त कर सका?” यज्ञभंग की आशंका से भयभीत कुबेर भी सीधे कैलाश की ओर भागे और वहाँ जाकर भगवान शिव के चरणों में लोटकर यज्ञ की रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान रूद्र ने उन्हें अभयदान देते हुए कहा, “कुबेर! यह संपत्ति तुम्हारी स्वयं की नहीं है, बल्कि तुम इसके संरक्षक मात्र हो।”

“आज अपने अहंकार के कारण ही तुम्हे इस प्रकार सम्मानित लोगों के बीच लज्जित होना पड़ा है। अब जाओ अपना महाभोज पूरा करो। आगे से फिर कभी अभिमान मत करना। उदारता से इस धन का उपयोग दूसरों की सेवा के लिये ही करना, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये नहीं।” कुबेर ने फिर कभी अहंकार न करने का वचन दिया और चुपचाप शिवजी को प्रणामकर चले गये।

“घमंडी के लिये कहीं कोई ईश्वर नहीं, ईर्ष्यालु का कोई पडोसी नहीं, और कायर का कोई मित्र नहीं।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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