Famous Story of Guru Nanak Dev Ji in Hindi

 

“हम क्या सोचते हैं वह निर्धारित करता है कि हमारे साथ क्या होगा, इसलिये यदि हम अपने जीवन को बदलना चाहते हैं, तो हमें अपनी बुद्धियों को विस्तार देने की आवश्यकता है।”
– वेन डायर

 

Story of Guru Nanak Dev Ji in Hindi
सिक्खों के प्रथम गुरु श्री नानकदेवजी महाराज न केवल ईश्वर के अनन्य भक्त थे, बल्कि एक प्रखर समाज सुधारक भी थे। सामाजिक सुधार के इसी क्रम में वे एक बार मुल्तान शहर में पहुँचे जो आजकल पाकिस्तान में पड़ता है। जैसे फूल की सुगंध हवा के साथ बहती है, उसी तरह उनके वहाँ आने की बात भी किसी से छिपी न रह सकी।

मुलतान में पहले से ही दुनिया भर के पीर-फकीरों का जमघट लगा हुआ था। जब उन्हें गुरुनानक के आने का पता चला तो उन्होंने यह जानने के लिये उनकी परीक्षा लेने का विचार किया कि कहीं यह आदमी दूसरे लोगों की तरह कोई ढोंगी तो नहीं है। उन्होंने एक आदमी को गुरु नानकदेव के पास एक दूध से लबालब भरा बर्तन देकर भेजा।

जिसक तात्पर्य था कि जिस तरह इस कटोरे में एक और बूँद के लिये कोई जगह नहीं है, इसी तरह मुल्तान शहर में भी इतने पीर-फकीर हैं कि यहाँ तुम्हारे लिये कोई जगह नहीं है। लेकिन गुरुनानक तो सच्चे ईश्वरभक्त थे, वे उनका मंतव्य समझ गये। उन्होंने उस बर्तन में दो बताशे डालकर उस पर ऊपर से एक गुलाब का फूल रख दिया।

जिसका अर्थ था जैसे बताशों की मिठास से दूध मीठा हो गया है और फूल के रहने से दूध का कुछ बिगड़ तो नहीं रहा है, बल्कि उलटे उससे सुगंध ही निकल रही है। ठीक उसी तरह मेरे यहाँ आने से आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा, बल्कि सत्संग और ज्ञान का ही लाभ होगा। जब उन पीरों-फकीरों ने यह देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि वास्तव में यह कोई सामान्य इन्सान नहीं, बल्कि एक पहुँचा हुआ औलिया है।

गुरुनानकदेव की वास्तविकता जानकर वह सब उनसे मिलने आये और उनका तहे दिल से स्वागत और सत्कार किया। संत श्री नानकजी महाराज ने भी कुछ समय तक मुल्तान में ही रूककर पाखंड और अन्धविश्वास को समर्थन देने वाली उस विचारधारा को फैलने से रोका जो वहाँ के ढोंगी बाबाओं के कारण दिन-प्रतिदिन बढती चली जा रही थी।

ऊपर से देखने पर यह कहानी कई लोगों को अन्य सामान्य कहानियों की तरह ही प्रतीत हो सकती है, पर वस्तुतः ऐसा है नहीं। इस कहानी के माध्यम से हमने एक ऐसी महत्वपूर्ण बात के विषय में बताने का प्रयास किया है जो लगभग हर इंसान के जीवन से जुडी हुई है और वह है “एक पूर्व-निर्धारित धारणा पर निर्णय निश्चित करने की आदत।”

उन पीरों-फकीरों की तरह हम भी अपने जीवन में होने वाली घटनाओ और संपर्क में आने वाले लोगों के बारे में अपनी राय बहुत जल्दी ही निश्चित कर लेते हैं। जिनके कारण लोगों को कई बार भारी परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है। इनके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे – अफवाह, कोरा अनुमान, चित्त की विभ्रांति, मानसिक अस्थिरता, ईर्ष्या आदि।

लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि यदि हम अपने और दूसरों के जीवन को कुछ परेशानियों और मुसीबतों से मुक्त होते हुए देखना चाहते हैं तो हमें लोगों से व्यवहार करते समय, तुरंत ही कोई धारणा बना लेने की अपनी आदत पर नियंत्रण अवश्य करना चाहिये।

“हर कोई दुनिया बदलने की सोचता है, लेकिन कोई भी खुद को बदलने की नहीं सोचता।”
– लियो टॉलस्टॉय

 

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