Chanakya Story in Hindi on Knowledge
– महात्मा बुद्ध
एक बार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य आचार्य चाणक्य से एक महत्वपूर्ण बात पर चर्चा कर रहे थे। बातों ही बातों में चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से कहा, “आचार्य आप बहुत बड़े विद्वान हैं। इसके अतिरिक्त समझदारी, चतुराई और ज्ञान में भी आपके समान कोई नहीं है, पर कितना अच्छा होता, यदि इन सबके साथ-साथ भगवान ने आपको सुन्दर रूप भी दिया होता।”
आचार्य चाणक्य तुरंत समझ गये कि राजा को अपने बल और सौंदर्य का घमंड हो गया है और वह इनके सामने ज्ञान और विद्या को तुच्छ समझ रहे हैं। उन्होंने राजा की ग़लतफ़हमी को दूर करने का निश्चय किया। वहीँ पास खड़े एक सेवक को भेजकर उन्होंने मिट्टी और सोने के एक-एक घड़े में जल भरकर लाने को कहा।
जब जल आ गया तो आचार्य ने चन्द्रगुप्त से पहले सोने के घड़े में भरे जल को पीने को कहा और फिर बाद में मिट्टी के घड़े में भरे जल को। जब चन्द्रगुप्त ने जल पी लिया तो फिर आचार्य ने पुछा, “सम्राट अब बताइये किस बर्तन का जल पीने में अच्छा लगा? सम्राट ने उत्तर दिया, “मिट्टी के घड़े का, क्योंकि वह शीतल और शुद्ध था।”
इस पर आचार्य चाणक्य ने कहा, “महाराज वैसे तो दोनों पात्रों में एक ही तरह का जल था, लेकिन बाहर से सुन्दर दिखाई देने वाले सोने के घड़े में रखा जल ज्यादा देर तक शीतल और सुरुचिपूर्ण नहीं रह सका, जबकि मिट्टी के घड़े में भरा जल वैसा का वैसा ही रहा। यही बात बल-सौंदर्य और विद्या के संबंध में भी है। सुंदरता या कुरूपता की विद्या से कोई तुलना संभव नहीं है।
क्योंकि सौंदर्य केवल देह में प्राण और लावण्य के बने रहने तक है और यह सिर्फ आत्ममुग्धता ही पैदा कर सकता है। जबकि ज्ञान अविनाशी और स्थायी महत्व की वस्तु है जो प्रत्येक प्राणी का जीवन परिवर्तित करने में पूर्ण रूप से समर्थ है। आचार्य चाणक्य के इस उत्तर से राजा का झूठा अभिमान टूट गया और उन्हें भी यह अच्छी तरह से समझ में आ गया कि वास्तव में विद्या ही सौंदर्य से अधिक श्रेष्ठ है।
– अरविन्द सिंह
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