Meaning and Poojan of Akshaya Tritiya in Hindi

 

“अक्षय तृतीया, हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है और लगभग पूरे भारत में इस दिन कई शुभ और माँगलिक कार्य संपन्न किये जाते हैं। धर्मप्रिय लोग इस दिन दान-पुण्य में अपने परिश्रम से उपार्जित धन को व्यय करना सौभाग्य और पुण्य का सूचक मानते हैं।”

 

Akshaya Tritiya Poojan in Hindi

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन किये जाने वाले प्रत्येक शुभ कार्य का फल अक्षय होता है, इसी कारण से इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। इसे आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। यूँ तो सभी बारह मासों के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली तृतीया तिथि शुभ मानी गयी हैं, लेकिन वैशाख मास की तृतीया तिथि उनमे सर्वोत्तम है, क्योंकि यह स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में से एक मानी गयी है।

यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु के आरंभ का दिन भी है। अक्षय तृतीया के विषय में माना जाता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य आँख मूँदकर किया जा सकता है और ऐसा करने के लिए किसी पंचांग को देखने की कोई जरूरत नहीं है। नीचे हम ऐसे ही कुछ शुभ और मांगलिक कार्यों के विषय में बता रहे हैं जिन्हें इस दिन संपन्न करने से हर प्रकार से लाभ ही होता है –

Akshaya Tritiya अक्षय तृतीया किन कार्यों के लिये श्रेष्ठ है

1. गृह प्रवेश करने के लिये अक्षय तृतीया तिथि बहुत ही शुभ मानी गयी है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विधिपूर्वक अपने नये घर में प्रवेश करने से व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखपूर्वक बीतता है, और उसकी हर प्रकार से उन्नति होती है।

2. विवाह जैसे माँगलिक कार्यों के लिये भी अक्षय तृतीया, अत्यंत ही श्रेष्ठ मानी गयी है। कुछ ज्योतिर्विदों के अनुसार इस दिन उन जातकों के विवाह भी संपन्न किये जा सकते हैं जिनके लिये जल्दी से विवाह का कोई शुभ मुहूर्त नहीं निकल पाता है। इसके अतिरिक्त वक्त बीतने के साथ-साथ वर-वधु का स्नेहभाव भी एक दूसरे के प्रति प्रगाढ़ होता है और उनका संबंध स्थायी होता है।

3. अक्षय तृतीया, नया वाहन, भूमि, नया मकान और ऑफिस आदि खरीदने के लिये भी उत्तम है। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य का उदय होता है और उसके कार्यक्षेत्र में भी उसकी उन्नति होती है।

4. नवीन वस्त्र, स्वर्ण, आभूषण और दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुएँ खरीदना भी इस दिन बहुत शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन, लोग सोने चाँदी और आभूषणों की खरीदारी विशेष रूप से करते हैं। आँकड़ों के अनुसार भारत में सोना दो ही दिन सबसे अधिक मात्रा में खरीदा जाता है – एक दीपावली का त्यौहार आने पर धनतेरस के दिन और दूसरा अक्षय तृतीया पर।

5. अक्षय तृतीया का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि यह चार युगादि तिथियों में से एक है। भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ इसी तिथि से माना जाता है।

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Akshaya Tritiya Poojan at Home

अक्षय तृतीया की पूजन विधि

पूजन करने वाले व्यक्ति को चाहिये कि वह ब्रहा-मुहुर्त (सूर्योदय से एक घंटा पहले) में ही उठ जाय और सर्वप्रथम दंत धावन करने के पश्चात अक्षतयुक्त जल (चावल युक्त पानी) से स्नान करे। इसके पश्चात भगवान् विष्णु की मूर्ति पर अक्षत चढावे और अक्षत के साथ ही ब्राह्मणों, महात्माओं और याचकों को शुद्ध सत्तू का दान करे; उसके पश्चात स्वयं भी उसी अन्न का भोजन करे। ऐसा करने से वह अक्षय फल का भागी होता है।

इस दिन नये या शुद्ध वस्त्र पहनने चाहियें स्त्रियों के लिये आभूषण धारण करना सौभाग्यदायक है जो मनुष्य इस तृतीया तिथि को उपवास करके भगवान् जनार्दन की भली-भांति पूजा करता है, वह राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है और अंत में श्रेष्ठ गति को प्राप्त होता है। इस दिन निर्धनों, याचकों और असहायों को अन्न-वस्त्र आदि देने का भी विधान है।

लोक में मान्यता है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी।

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What to do on Akshaya Tritya

1. अक्षय तृतीया से एक दिन पहले ही अपने घर और कार्य-स्थान की अच्छी तरह से सफाई कर लें। धूप-दीप आदि के प्रयोग से वातावरण की शुद्धि कर लें।

2. अगर उपवास करने की क्षमता हो तो इस दिन उपवास अवश्य करें। उपवास अपनी सामर्थ्यानुसार एक समय अन्न या एक समय फलाहार लेकर करें।

3. इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा, कमल या सफेद-पीले गुलाब से करनी चाहिये। कुछ समय मौन रहकर ईश्वर आराधना में समय बितायें।

4. किसी योग्य ब्राह्मण या पुजारी से यज्ञ आदि करवायें।

5. ब्राहमण, गौ, कुत्तों, और कन्याओं को जिमायें। एक व्यक्ति का भोजन बहते हुए जल में दें।

6. सभी तरह के गलत कर्म से बचे और अपनी न्यायोचित कमाई का एक अंश पुण्य-परमार्थ में लगायें।

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Why Akshaya Tritiya is so Auspicious

हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत महत्व है। पुराणों के अनुसार इस दिन पितरों के निमित्त किया गया तर्पण, पिन्डदान और किसी भी प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। अक्षय फल प्रदान करनी की अपनी अद्भुत क्षमता के कारण ही इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से तथा ईश्वर आराधना करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

चूँकि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान सभी कुछ अक्षय होता है, इसीलिये ज्यादातर हिन्दू, इस दिन कोई न कोई श्रेष्ठ धार्मिक कार्य अवश्य करते हैं। जिस दिन अक्षय तृतीया हो, अगर उस दिन सोमवार का दिन हो तथा रोहिणी नक्षत्र भी चल रहा हो, तो यह उस सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण करती है, जिसमे किये गये दान, जप और तप का फल बहुत ज्यादा बढ़ जाता हैं।

अगर तृतीया तिथि, मध्याह्न (दोपहर) से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे, तो तब वह और भी श्रेष्ठ मानी जाती है। अक्षय तृतीया वर्तमान या पूर्व जीवन में किये गये पाप कर्मों के प्रायश्चित के लिये भी बहुत अच्छी है। माना जाता है कि जो मनुष्य आज के दिन, जाने-अनजाने में किये गये पापों के लिये, सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा मांगता है, तो भगवान उसके पापों को क्षमा कर देते हैं।

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भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है अक्षय तृतीया

1. अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। हिन्दुओं में इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है, क्योंकि यह मांगलिक कार्यों के लिये अत्यंत श्रेष्ठ मानी गयी है। कई स्थानों पर तो छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं, जिनमे उनके परिवारीजन और बड़े-बुजुर्ग भी सम्मिलित होते हैं। क्षत्रिय जाति में, आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिये इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा भी है।

2. राजस्थान में भी अक्षय तृतीया के दिन वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है तथा वर्षा की कामना की जाती है। लड़कियाँ झुंड बनाकर, घर-घर जाकर शगुन के गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है।

3. जबकि मालवा में नए घड़े के ऊपर ख़रबूज़ा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन खेती के काम की शुरुरात करने से किसानों को समृद्धि हासिल होती है।

4. बुंदेलखंड क्षेत्र में, अक्षय तृतीया से लेकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। जिसमें कुँवारी कन्याएँ, अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुंब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं।

अक्षय तृतीया का महत्व

अक्षय तृतीया का इतना भारी महत्व क्यों है इसका वर्णन मत्स्य पुराण और भविष्य पुराण में भी किया गया है मत्स्य पुराण में भगवान शिव, नारद मुनि से कहते हैं –

अथान्यामपि वक्ष्यामि तृतीयां सर्वकामदाम्।
यस्यां दत्तं हुतं जप्तं सर्वं भवति चाक्षयम्।।

“मै सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाली तृतीया तिथि का वर्णन कर रहा हूँ, जिसमे दान देना, यज्ञ करना और जप करना सभी अक्षय हो जाता है।

वैशाखशुक्लपक्षे तु तृतीया यैरुपोषिता।
अक्षयं फलमाप्नोति सर्वस्य सुकृतस्य च।।

जो लोग वैशाखमास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन व्रतोपवास करते हैं, वे अपने समस्त कर्मों का अक्षयफल प्राप्त करते हैं।

अक्षय तृतीया का माहात्म्य

सा तथा कृत्तिकोपेता विशेषेण सुपूजिता।
तत्र दत्तं हुतं जप्तं सर्वमक्षयमुच्यते।।

वह तृतीया यदि कृतिका नक्षत्र से युक्त हो तो विशेष रूप से पूज्य मानी गयी है, उस दिन दिया गया दान, किया गया हवन, और जप सभी अक्षय बतलाये गये हैं।

अक्षया संततिस्तस्य तस्यां सुकृत मक्षयम्।
अक्षतै: पूज्यते विष्णुस्तेन साक्षया स्मृता।
अक्षतैस्तु नराः स्नाता विष्णोर्दत्त्वा तथाक्षताम्।।

इस व्रत का अनुष्ठान करने वाले की संतान अक्षय हो जाती है और उस दिन का किया हुआ पुण्य अक्षय हो जाता है। इस दिन अक्षत, पुष्प के द्वारा भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, इसीलिये इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।

हिन्दुओं के धार्मिक जीवन से जुडी है अक्षय तृतीया

भगवान विष्णु के अवतार जैसे नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। भारत के चार धामों में से एक श्री बद्रीनाथ मंदिर के कपाट भी इसी तिथि से खुलते हैं और वृंदावन स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री बांके-बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

और तो और इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन माना जाता है। अब तो आप समझ ही गये होंगे कि हिन्दुओं के धार्मिक जीवन में इस तिथि का कितना भारी महत्व है। और सिर्फ हिन्दू धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया का भारी महत्व है, पर इसके बारे में हम अगले लेख में बतायेंगे।

विशेष – जिस प्रकार से पर्वों पर पुण्य कार्यों का महत्व सामान्य से कई गुणा अधिक बताया गया है, उसी प्रकार से यह भी स्मरण रखना चाहिये कि दुष्कर्म करने पर पाप का दंड भी उसी परिमाण में कई गुणा बढ़ जाता है। इसीलिये इन अवसरों पर स्वयं को संयत और अनुशासित रखते हुए जीव अपराध और अमर्यादित आचरण से बचना चाहिये।

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