Hindi Story of Two Friends and A Bear

 

भालू और दो दोस्तों की कहानी में आज हम आपको एक ऐसे मतलबी दोस्त के बारे में बतायेंगे, जो अपने दोस्त को मुसीबत में छोड़कर भाग खड़ा हुआ था। बचपन से ही रमेश और सुरेश साथ-साथ पले-बढे थे, दोनों का घर भी ज्यादा दूर नहीं था और उनकी पढाई-लिखाई भी एक ही विद्यालय में हुई थी। इन सब बातों की वजह से वक्त के साथ-साथ उनकी दोस्ती भी परवान चढ़ती गयी। पर दोनों की रुचियों और भावनाओं में काफी अंतर था।

जहाँ रमेश को पढना-लिखना ज्यादा पसंद था, वहीँ सुरेश को खेल-कूद ज्यादा रास आता था। रमेश साफ़ दिल, मददगार, और गंभीर प्रवृत्ति वाला था, जरुरत पड़ने पर वह अक्सर ही अपने सहपाठियों और दोस्तों की हर तरह से मदद करता था। लेकिन सुरेश दूसरों की मदद से अपना काम निकालने वाला और कुछ स्वार्थी इन्सान था। दोस्ती में समर्पण और भरोसे जैसी चीजें उसके लिये ज्यादा मायने नहीं रखती थी।

पर फिर भी दोनों के सम्बन्ध अच्छे ही बने रहे, क्योंकि अभी तक उनकी दोस्ती को कसौटी पर कसने का समय नहीं आया था। एक बार दोनों दोस्तों को जरुरी काम से शहर जाना पड़ा, जो उनके गाँव से काफी दूरी पर था। चूँकि उन दिनों आज की तरह यातायात के साधन नहीं थे, इसीलिये लोग पैदल या बैलगाड़ी से ही अपना सफ़र तय करते थे।

Two Friends and A Bear Story in Hindi

रमेश और सुरेश भी गाँव से पैदल ही शहर की तरफ चल दिये। चूँकि शहर की तरफ जाने वाला मुख्य रास्ता काफी लम्बा था, इसलिये सुरेश ने जंगल के छोटे रास्ते से गुजरकर जाने का निश्चय किया, ताकि अपनी मंजिल तक जल्दी पहुँच जाये। रमेश जंगल के खतरों से वाकिफ था, इसलिये उसने ऐसा करने से मना किया, पर सुरेश नहीं माना।

हारकर रमेश को भी उसकी बात मानकर जंगल का रास्ता पकड़ना पड़ा। अभी दोनों आधे रास्ते में ही पहुँचे थे कि दूर से एक भालू उन्हें अपनी ओर आता दिखायी दिया। भालू को देखकर तो जैसे दोनों के हलक ही सूख गये, क्योंकि न तो उनके पास कोई हथियार था और न ही दूर-दूर तक कोई इन्सान नजर आ रहा था, जिससे वह मदद माँगते।

तभी सुरेश, रमेश से बोला कि चलो दौड़कर पेड़ पर चढ़ जाते हैं, क्योंकि भालू ने अभी तक हमें देखा नहीं है। यह कहकर वह पास ही खड़े पेड़ पर तेजी से ऊपर चढ़ गया और पत्तों में छिप गया। पर रमेश को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था, इसलिये वह डर के मारे काँप उठा। उसे सुरेश से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी कि वह उसे इस तरह से असहाय छोड़कर चला जायेगा।

अब तक भालू बहुत नजदीक आ गया था और रमेश को अपनी मौत निकट नजर आ रही थी कि तभी उसके दिमाग में एक तरकीब आयी। उसने कहीं किताब में पढ़ रखा था कि भालू मरे हुए इन्सान को नहीं खाता है। वह तुरंत ही जमीन पर लेट गया और अपनी साँस बंद कर ली, ताकि भालू को लगे कि वह मर चुका है।

भालू और दो दोस्तों की कहानी

धीरे-धीरे भालू चलता हुआ रमेश के नजदीक आया और उसके मुँह को सूँघने लगा। चूँकि रमेश ने अपनी साँसे रोक रखी थी, इसीलिये भालू उसे मरा हुआ समझकर छोड़कर चला गया। जब भालू नजरों से ओझल हो गया तो सुरेश पेड़ से नीचे उतरा और रमेश के पास आया। अभी तक रमेश डर के कारण मुर्दे की तरह लेटा हुआ था।

सुरेश ने झिंझोड़कर उसे जगाया और पूछा – “भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था?” रमेश समझ गया कि सुरेश को असलियत का पता नहीं है, पर उसे सीख देने के इरादे से वह बोला – “भालू मुझसे कह रहा था कि कभी भी मतलबी दोस्त से दोस्ती नहीं करनी चाहिये, वरना पछताना पड़ता है।” उसकी बात सुनकर सुरेश बुरी तरह से झेंप गया और फिर दोनों अपने रास्ते पर चल पड़े।

सुरेश का मुँह इसलिये लटक गया, क्योंकि वह जान गया था कि रमेश उसके धोखे को समझ चुका था। हमें भी ऐसे दोस्तों से हमेशा बचकर रहना चाहिये जो हर समय अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं और दोस्त को धोखा देकर उससे फायदा उठाते हैं। ऐसे कपटी दोस्तों से दूर रहने में ही सबकी भलाई है, वरना जीवन भी संकट में पड़ सकता है।

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