Famous Hazrat Musa Story in Hindi

 

“तुम भला कैसे जान पाओगे कि मुझमे मेरा हमसाया बनकर कौन शहंशाह है? मेरे सुनहरे चेहरे पर मत जाओ, क्योंकि मेरे पैर लोहे के हैं।”
– जलालुद्दीन रूमी

 

Emotions and Feelings Quotes and Story in Hindi
इंसान के दिल में कुछ ऐसी तान होती हैं जिन्हें अगर न ही छुआ जाय तो ज्यादा बेहतर है

यहूदी धर्म के प्रवर्तक हजरत मूसा एक बार एक पर्वतीय प्रदेश से होकर गुजर रहे थे। थोड़ी ही दूर जाने पर उन्हें खुदा की इबादत करता एक व्यक्ति मिला, जो अपने दोनों हाथों को उठाकर, आँखे बंद किये हुए, कुछ इस तरह प्रार्थना कर रहा था – “ऐ मेरे प्यारे खुदा! मै तुझसे बहुत प्यार करता हूँ। मेरी यह दिली तमन्ना है कि जब तू इस धरती पर आये तो मै तेरे लम्बे हो चुके बालों को करीने से काट कर अपने हाथों से सवांरू!

वहाँ जन्नत में रहते-रहते तुझे बहुत दिन हो गये, तेरी सफ़ेद दाढ़ी भी बढ़कर बहुत घनी हो गयी होगी। जब तू यहाँ आयेगा, तो मै खुद अपने हाथों से तेरी दाढ़ी बनाऊंगा। तेरे बालों में इत्रवाला तेल लगाऊंगा। तुझे पीने को बकरी का मीठा दूध दूँगा और लजीज मक्खन की रोटियाँ खिलाऊंगा। इन सब बातों को कहते-कहते, उस व्यक्ति का, जो पेशे से एक नाई था, गला रूँध गया और उसकी आँखे नम हो गई।

हजरत मूसा ने जब उसकी इस अटपटी और विचित्र प्रार्थना को सुना, तो पहले तो उन्हें बहुत हँसी आयी, फिर गुस्से से लाल-पीले होकर उस व्यक्ति के पास आये और फटकारते हुए उससे कहने लगे, “अरे मूर्ख! क्या खुदा की इबादत ऐसे ही की जाती है? जिसने सूरज-चाँद बनाये हैं, जो सितारों को रौशनी देता है, क्या उसके पास किसी चीज़ की कमी है जो वह तेरे पास बाल कटाने और दाढ़ी बनवाने आयेगा?

जो सबके रोटी-पानी का इंतजाम करता है, उसे तू बकरी का दूध पिलायेगा? अरे क्या जन्नत में जायकेदार पकवानों की कमी है, जो तू उसे यहाँ रोटी खाने को बुला रहा है? वह वृद्ध नाई बेचारा बिलकुल पवित्र और निश्चल ह्रदय का स्वामी था। उसे खुदा के ऐश्वर्य के बारे में कहाँ कुछ पता था? वह तो उसे भी अपने जैसा ही मानता था।

जब हजरत मूसा ने उससे यह बातें कहीं, तो वह बेचारा डर गया कि कहीं उसने खुदा की शान में कोई गुस्ताखी तो नहीं कर दी है? वह हजरत मूसा से माफ़ी मांगने लगा और उनसे प्रार्थना की कि वही उसे कोई अच्छी सी प्रार्थना सिखा दें। मूसा ने उसे एक विस्तृत, शानदार, परन्तु जटिल प्रार्थना सिखाई, जिसका वे उस समय प्रचार कर रहे थे।

नाई को प्रार्थना सिखाकर वे अपनी मंजिल पर आगे बढ़ गये, बिना इस बात पर विचार किये कि वह अनपढ़ नाई कैसे उस कठिन प्रार्थना को याद रख सकेगा। उसी दिन रात्रि के समय जब मूसा गहरी निद्रा में सोये हुए थे, स्वयं खुदाबन्द करीम एक फ़रिश्ते के रूप में उनके स्वप्न में प्रकट हुए और कहने लगे, “क्यों रे मूसा! मैंने तुझे किस कार्य के लिये धरती पर भेजा था?

क्या तेरे लिये यह उचित था कि उस निर्दोष और निश्चल व्यक्ति की श्रद्धा और विश्वास पर कुठाराघात करे, जो विशुद्ध ह्रदय से केवल मुझे ही चाहता था? क्या तुम नहीं जानते कि इस सृष्टि में जो कुछ भी है, वह मै ही हूँ? क्या मेरे स्वरुप को व्यक्तित्व की किसी सीमा में आबद्ध किया जा सकता है, जो तुमने उसकी मान्यता का खंडन किया?

क्या मै उसकी इच्छा के अनुरूप रूप धारण कर वहाँ नहीं जा सकता था, जो तुमने उसके भावभरे ह्रदय को पलभर में तोड़कर रख दिया? स्वप्न में फ़रिश्ते की यथार्थ और बोधपूर्ण बात सुनकर मूसा का अहंकार मिट गया और उनके प्रज्ञाचक्षु खुल गये। उस वृद्ध नाई के प्रति किये गये अपने दुर्व्यवहार पर मूसा को बड़ी शर्म आयी।

प्रातः होते ही वे उस नाई के पास पहुँचे और उनसे यह कहकर क्षमायाचना की कि जो प्रार्थना आप कल कर रहे थे, उसे ही करते रहिये। अल्लाह आपसे बड़े खुश हैं। इस घटना के बाद उन्होंने फिर कभी किसी श्रद्धालु व्यक्ति की भावनाओं को चोट पहुँचाने का प्रयास नहीं किया।हजरत मूसा को तो समय रहते इसका तत्वबोध हो गया कि ईश्वर मनुष्य की भ्रामक धारणाओं से कितना परे है?

पर हममे से अधिकांश लोग आज भी ईश्वर को अपने-अपने मत की संकीर्ण परिधि में ही देखते हैं। हम उसकी व्यापकता, उसके स्वरुप और व्यक्तित्व को अपने-अपने संकुचित मानसिक द्रष्टिकोण की सीमाओं से जोड़ कर ही देखते हैं। यही सभी धर्मो और सम्प्रदायों के बीच फैली कटुता और विरोधाभास का मूल कारण है।

यदि हम अपने विवेक रुपी पंछी को ज्ञान के महासागर में उन्मुक्त होकर विचरने की स्वतंत्रता देने को तैयार हो जाय, तो उस अनंत परमेश्वर की दिव्य ज्योति हम सभी में प्रसारित हो जाय जो दुखों और अज्ञान की अँधेरी छटा को हमसे सदा के लिये दूर कर देगी।

“हमारे धुल और गन्दगी से सने हाथ-पैर तो पानी से धोने पर साफ हो जाते हैं, लेकिन मन की मलिनता प्रेम भाव से ही स्वच्छ हो सकती है। केवल कह देने से आदमी न तो पुण्यात्मा बनता है और न पापी सिर्फ। सत्कर्म और प्रभु का सुमिरन ही उसे पवित्र और निष्पाप बनाता है।”
– गुरु नानकदेव

 

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