Mercy and Kindness Story in Hindi

 

“विनम्रता मनुष्य को महान बनाती है। उदारता मनुष्य को यश दिलाती है। लेकिन दया तो मनुष्य को देवता बना देती है।”
– अरविन्द सिंह

 

Mercy and Kindness Story in Hindi
सच्चा धर्म और कुछ नहीं बल्कि दया का दर्शन है

मध्यकाल में भारत पर सत्रह बार आक्रमण करने वाले क्रूर आक्रमणकारी महमूद गजनवी का पिता सुबुक्तगीन पहले बादशाह अलप्त्गीन का एक मामूली गुलाम था, पर उसकी लम्बे वक्त तक की गयी खिदमत से खुश होकर बाद में उसे अपना सरदार बना लिया। उस ज़माने में जानवरों का शिकार करना बादशाहों और सामंतों का दिल बहलाने का पसंदीदा जरिया था।

इसी आरजू में एक बार सुबुक्तगीन भी जंगल में शिकार खेलने गया था। वहाँ शिकार का पीछा करते-करते उसे शाम हो गयी, पर शिकार हाथ नहीं आया। वह निराश जंगल से लौट ही रहा था कि अचानक उसे झाड़ी में छिपे हुए एक हिरण का शावक और हिरणी दिखाई दी। सुबुक्तगीन ने छिपकर हिरणी के बच्चे को पकड़ लिया और उसे अपने घोड़े की पीठ पर लादकर चल दिया।

चलते-चलते अचानक उसे ऐसा लगा जैसे कोई सधे क़दमों से उसके पीछे-पीछे चल रहा है। जब उसने पीछे पलटकर देखा, तो वह आश्चर्य में पड गया। उस हरिण शावक की माँ उसके पीछे-पीछे आ रही थी।अपनी संतान को विपत्ति में पड़ा देख उस बेचारी की आँखे आँसुओं से नम थी। अपने प्राणों की परवाह किये बिना वह घुड़सवार के पीछे-पीछे चली आ रही थी।

इस आशा में कि शायद अब भी घुड़सवार को उस पर दया आ जाय और उसका बच्चा मुक्त हो जाय। उसके नेत्र अपलक उसे ही निहार रहे थे।  सुबुक्तगीन के ह्रदय में उस हरिण शावक की माता का अकृत्रिम स्नेह देखकर करुणा उमड़ आयी। उसने घोड़े को रोककर उस हरिण शावक को नीचे उतारा और मुक्त कर दिया।

हिरण का बच्चा दौड़कर अपनी माँ से लिपट गया, हिरणी भी प्यार से उसे चाटने लगी। जिस समय सुबुक्तगीन घोड़े पर चढ़कर जा रहा था, उस समय भी हिरणी उसे एकटक देखे जा रही थी। शायद वह डर रही थी कि घुड़सवार कहीं दोबारा आकर उसके बच्चे को छीनकर न ले जाय या फिर शायद वह सुबुक्तगीन के प्रति अपनी मूक कृतज्ञता प्रकट कर रही थी।

खैर चाहे जो भी हो, पर सुबुक्तगीन के दिल में आज असीम तृप्ति का भाव था, जैसे उसने कोई अत्यंत श्रेष्ठ कार्य किया हो। उसी दिन रात्रि के समय जब सुबुक्तगीन प्रगाढ़ निद्रा में सोया हुआ था, तो उसने एक सपना देखा। जिसमे एक फ़रिश्ता उससे कह रहा था , “सुबुक्तगीन! आज तूने हिरण के बच्चे को छोड़कर, दो प्राणियों का जीवन बचाया है।

अल्लाह! तुम्हारे इस नेक काम से बहुत खुश हैं और इसी नेकनीयती की बदौलत अब तुम जल्दी ही एक रियासत के बादशाह बन जाओगे। अपनी आगे की जिंदगी भी ऐसे ही नेक कामों में लगाना। इतना कहकर वह फ़रिश्ता गायब हो गया। आगे चलकर सुबुक्तगीन एक बड़ी रियासत का बादशाह बना।

यह सत्य कथा यही सिद्ध करती है कि सत्कर्म का फल सदैव सुखदायक ही होता है और दुष्कर्म हमेशा दुःख ही देता है। प्राणियों को अभयदान देना, उनकी जीवनरक्षा, सबसे बड़ा यज्ञ है और किसी भी प्राणी के जीवन का अंत करना अधमतम पाप है। क्योंकि अहिंसा ही धर्म का सार है।कहा गया है कि हिंसा का पूर्ण त्याग करने वाले को संसार में किसी से भी भय नहीं होता।

कर्मों के जटिल नियमों के अतिरिक्त भी अहिंसा और दया का प्रत्यक्ष लाभ यह है कि ऐसे व्यक्ति को लोगों का प्रेम और सामाजिक सम्मान अनायास ही प्राप्त हो जाता है। उनका जीवन निर्भार होता है। आंतरिक उल्लास और प्रखर विवेक से उनका अंतर्मन सदा प्रकाशित रहता है।

“बेशक अहिंसा अच्छी चीज़ है, लेकिन शत्रुहीन होना और भी बड़ी बात है।”
– विमल मित्र

 

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