Lord Kartikeya & Ganesha Marriage Story In Hindi

 

“लार्ड कार्तिकेय और गणेशजी के विवाह की यह कहानी हमें बताती है कि जीवन में आदर्शों का कितना ज्यादा महत्व है। इस प्रेरक कहानी से हमें यह भी पता चलता है कि माता-पिता का स्थान कितना ऊँचा है।”

 

Kartikeya & Ganesha Story In Hindi

जब कुमार कार्तिकेय और गणेशजी बड़े हो गये, तब उनके माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती ने उनका विवाह करने की सोची। चूँकि कुमार कार्तिकेय बड़े थे, इसीलिये नियमानुसार उनका ही विवाह (Marriage) पहले होना निश्चित था। लेकिन गणेशजी को भी विवाह करने की बहुत इच्छा थी, इसीलिये वे भी हठ ठानकर बैठ गये कि पहले उन्ही का विवाह होगा। माता-पिता ने उन्हें यह कहते हुए समझाने की बहुत कोशिश की कि कार्तिकेय तुमसे बड़े हैं और पहले बड़े भाई का ही विवाह होता है।

लेकिन गणेशजी कुछ समझने को राजी नहीं हुए, इसलिये उन्होंने पहले गणेशजी का ही विवाह करने का निश्चय किया। पर जब इस बात का पता कुमार कार्तिकेय को चला तो वह भी रूठ गये और पहले अपना विवाह करने की जिद करने लगे। जब बहुत लानत-मलानत करने पर भी दोनों भाइयों में से कोई भी राजी नहीं हुआ, तो भगवान शिव और माता पार्वती ने एक युक्ति निकाली।

उन्होंने दोनों भाइयों के सामने शर्त रखी कि जो भी धरती की पहले परिक्रमा करके आयेगा उसी का विवाह (Marriage) सबसे पहले होगा। दोनों भाइयों ने शर्त स्वीकार कर ली और शर्त पूरी करने चल दिये। कुमार कार्तिकेय अपने तेज रफ्तार वाहन मोर पर तुरंत उड़कर चल दिये, लेकिन गणेशजी चुपचाप बैठकर सोचने लगे कि मेरा वाहन तो एक चूहा है जो बहुत छोटा तो है ही, कमजोर और सुस्त भी है।

इसकी सवारी करके तो मै कई दिन में भी धरती का चक्कर नहीं लगा पाउँगा, फिर मेरा विवाह भैया से पहले कैसे होगा। वह इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने लगे और जब उन्हें इसका उत्तर मिल गया तो वह खुशी से नाचने लगे। वह शांत मन से उठे और कैलाश पर्वत पर बैठे हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा करने लगे।

Lord Kartikeya Marriage Story In Hindi

कुछ समय बाद जब भगवान कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करके लौटे, तो उन्होंने गणेशजी को माता-पिता के पास खेलते हुए पाया। वह यह सोचकर खुश होने लगे कि गणेश तो डर के मारे परिक्रमा करने गया ही नहीं, तो फिर अब उनका विवाह Marriage ही पहले होगा। उन्होंने माता-पिता के पैर छुए और भगवान शिव से बोले – पिताजी मै शर्त के अनुसार धरती की परिक्रमा करके लौट आया हूँ, अब आप पहले मेरा विवाह कराइये।”

लेकिन जब भगवान ने उन्हें यह बताया कि गणेश ने तुमसे पहले परिक्रमा पूरी कर ली है, तो वह अचंभित रह गये। वह बोले – “पिताजी मेरा वाहन बहुत तेज गति से चलता है और मैंने पूरे रास्ते अपने आगे या पीछे गणेश को कहीं भी आते-जाते नहीं देखा है, फिर इसने परिक्रमा मुझसे पहले कैसे पूरी कर ली?” भगवान शिव बोले – “निश्चित रूप से तुम्हारा वाहन बहुत तेज चलता है और गणेश भी सारे समय यहीं हमारे पास ही रहा है।

लेकिन फिर भी इसने तुमसे पहले ही परिक्रमा पूरी कर ली है, क्योंकि इसने हमारी परिक्रमा की है। शास्त्रों के अनुसार माता-पिता का दर्जा पृथ्वी और आकाश से भी ऊँचा है, इसीलिये जब इसने हमारी परिक्रमा की तो इसने पृथ्वी की भी परिक्रमा कर ली। चूँकि गणेश तुमसे इस शर्त में जीत गया है, इसीलिये नियमानुसार उसका ही विवाह पहले होगा।

भगवान शिव की यह बात सुनकर कार्तिकेय बहुत दुखी हुए और उसी वक्त कैलाश छोड़कर क्रौंच पर्वत पर चले गये। भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें रोकने और मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने और चले गये। इस तरह कार्तिकेय कुमार ही रह गये जबकि गणेश जी का विवाह सिद्धि और बुद्धि नाम की दो देवियों से हुआ।

कहा जाता है कि आज भी भगवान शिव और माता पार्वती विशेष तिथि पर अपने पुत्र कार्तिकेय को मनाने क्रौंच पर्वत पर जाते हैं। लेकिन उनके आने से पहले ही कुमार कार्तिकेय क्रौंच पर्वत को छोड़कर एक दूसरे पर्वत पर चले जाते हैं। आंध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग माता-पिता और पुत्र के इसी स्नेह और विषाद का प्रतीक है।

“पिता आकाश से भी ऊँचा है और माँ धरती से भी भारी है।”
– महर्षि वेद व्यास

 

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