Motivational Moral Hindi Story for Class 4

 

“दूसरों के दुर्भाग्य से बुद्धिमान बनना, अपने स्वयं के दुर्भाग्य से बुद्धिमान होने की तुलना में ज्यादा अच्छा है।”
– ईसप

 

Moral Hindi Story for Class 4

पुराने समय की बात है, एक बार उज्जयिनी में चार चोर एक गृहस्थ के घर से चोरी करते पकडे गये। उस समय के कानून के अनुसार चोरी करने वालों को प्राण-दंड दिया जाता था। राजाज्ञा के अनुसार उन्हें भी बीच चौराहे सूली पर लटकाने का आदेश पारित कर दिया गया। नियत दिन फांसी पर लटकाने से पहले चारों चोरों से उनकी अंतिम ख्वाहिश पूछी गयी। तीन चोरों को उनकी इच्छा पूरी करने के बाद फाँसी पर लटका दिया गया, पर चौथा चोर अभी भी अपना जीवन बचाने का प्रयास कर रहा था।

उसने अंतिम इच्छा के रूप में एक दिन की मोहलत मांगी। राजा के आदेश पर उसे एक दिन बाद फाँसी देना निश्चित हुआ। वह चोर रात भर काल कोठरी में बैठा हुआ अपनी आसन्न मृत्यु को टालने का उपाय सोचने लगा। अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा और उसने पहरेदारों से यह कहते हुए राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की कि उसके पास राजा के लिये एक अत्यंत महत्वपूर्ण सूचना है, जिसके बल पर वह संसार के सबसे शक्तिशाली शासक बन सकते हैं।

जब पहरेदारों ने उससे उस बात के विषय में पूछा तो उसने स्पष्ट कह दिया कि वह राजा के अलावा किसी व्यक्ति को कुछ नहीं बतायेगा। हार मानकर पहरेदारों ने सेनापति को यह बात बताई। सेनापति के मन में भी राजा बनने की इच्छा थी, उसने चोर को प्रलोभन देकर उस रहस्य के बारे में पूछा, लेकिन चोर ने फिर इंकार कर दिया। मजबूरीवश सेनापति को राजा को इसकी सूचना देनी पडी।

जब राजा को यह पता लगा कि चोर के पास कोई ऐसी सूचना है जो उसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली शासक बना सकती है तो वह दौड़ा-दौड़ा चोर के पास गया। राजा को देखते ही चोर को अपनी योजना सफल दिखने लगी, पर उसने अपने मन का भाव व्यक्त नहीं होने दिया। उसने राजा से एकांत में बात करने की प्रार्थना की। राजा के पूछने पर उसने इस बात का रहस्योद्घाटन किया – “महाराज!मै एक ऐसी विद्या जानता हूँ जिससे सोने के बीज बोने पर सोने की फसल पैदा होती है।

आप इस सोने से एक शक्तिशाली सेना का निर्माण करके संपूर्ण पृथ्वी पर राज कर सकते हैं। यदि मै बिना बताये मर जाता हूँ तो यह विद्या बेकार चली जायेगी। इसीलिये मैंने आपको यहाँ बुलाकर कष्ट दिया है।” पहले तो राजा को चोर की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर उसने सोचा कि चोर का कमाल देखने में हर्ज ही क्या है? उसने चोर की सलाह के अनुसार एक विस्तृत खेत तैयार कराया और उसकी जुताई आदि कराकर उसे फसल बोने के योग्य बनवा दिया गया।

इतने दिन तक चोर को जेल में ही रखा गया ताकि वह भाग न सके। सारे राज्य में मुनादी करवा दी गयी कि एक शुभ मुहूर्त में इस अनोखी फसल को बोने का कार्य आरंभ किया जायेगा। एक निश्चित दिन राजा और मंत्री समेत सभी दरबारीगण और शहर भर के नागरिक इकठ्ठा हुए, ताकि वे भी उस अद्भुत क्षण के गवाह बन सकें। उस चोर को भी आदरपूर्वक बुलाया गया जिसके हाथों से वह कार्य संपन्न होना था।

एक राजकर्मचारी चोर की सलाह पर निर्मित हुए उन सोने के बीजों को लेकर खेत की ओर चला जो आकार में सरसों के दानों के बराबर थे। राजा ने चोर को भी खेत में जाने के लिये कहा, पर तभी चोर ने राजा से विनयपूर्वक हाथ जोड़ते हुए कहा – “दुहाई है महाराज! अगर मै अपने हाथों से सोने की फसल उगा पाता तो फिर मै चोरी ही क्यों करता? इन बीजों को सिर्फ वही इन्सान बो सकता है जिसने अपने पूरे जीवन में कभी भी चोरी नहीं की हो, अन्यथा कोई फसल पैदा नहीं होगी।

चोर की बात सुनकर सभी लोग सकते में आ गये। दरबारी आपस में खुसर-फुसर करते हुए कहने लगे – “अब मरे! इस चोर ने अच्छा मौका देखकर बडा घात लगाया है। आज सबकी इज्जत चली जायेगी।” फिर राजा ने यह सोचकर कि इतनी भीड़ में कोई न कोई व्यक्ति तो ऐसा निकल ही आयेगा जिसने अपने जीवन में कभी चोरी न की हो, उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा – “आप लोगों में से जो कोई भी ईमानदार व्यक्ति इस कार्य को संपन्न करेगा, उसे पुरस्कार स्वरुप 100 स्वर्ण मुद्राएँ दी जायेंगी।”

पुरस्कार का लोभी हर कोई था, लेकिन फिर भी कोई व्यक्ति बीज बोने के लिये सामने नहीं आया। आते भी कैसे? क्योंकि हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी चोरी कर ही चुका था, इसीलिये राजदंड के भय से सभी चुप ही रहे। जब काफी देर तक भी कोई व्यक्ति आगे नहीं आया तब राजा ने अपने दरबारियों से बीज बोने को कहा, लेकिन सबने लज्जा से अपने सिर झुका लिये। राजा सब समझ गया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके राज्य में लगभग हर व्यक्ति चोर है।

फिर राजा ने सेनापति की ओर दृष्टि डाली। सेनापति राजा का मंतव्य समझ गया और बोला – “क्षमा करें महाराज! मैंने भी एक बार अपने पिता की जेब से पैसे चुराये थे और इतना कहकर उसने भी अपनी नजरें नीची कर लीं। तब राजा मंत्री से बोला – “मंत्रीजी मुझे पूरा विश्वास है कि आपने अपने जीवन में कभी चोरी नहीं की होगी, क्योंकि आज तक राजकोष की एक पाई भी इधर से उधर नहीं हुई है।

बेचारा मंत्री निरुत्तर था, उसकी हालत काटो तो खून नहीं वाली हो रही थी, पर बेचारे को मुँह खोलना ही पड़ा। वह बोला – नहीं महाराज! मै भी यह निंदनीय कर्म कर चुका हूँ। एक बार बचपन में मैंने अपनी माँ की नजर बचाकर कुछ पैसे भिखारी को दे दिये थे। फिर सब लोगों ने राजा से ही कहा – “महाराज आपके जैसा पवित्र और शुद्ध व्यक्ति तो कोई हो ही नहीं सकता। सभी जानते हैं कि आप कितने सत्यनिष्ठ और निःस्पृही हैं, फिर आप ही क्यों इन स्वर्ण-बीजों को बोने का पवित्र कार्य नहीं करते।

लेकिन दबी जबान में राजा ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने भी बचपन में एक बार तब चोरी की थी जब उन्होंने देवताओं को समर्पित भोग में से एक लड्डू चुराकर खा लिया था। सभी लोग राजा का यह रहस्योद्घाटन सुनकर दंग रह गये। सबको चुप देखकर चोर एकाएक जोरों से बोल उठा – “जब तुम सब लोगों ने चोरी की है, तो मुझ अकेले को ही क्यों सूली पर चढाया जा रहा है। यदि इस राज्य में उचित दंड मिलता है तो वह पहले तुम सबको दिया जाना चाहिये।”

चोर के वचन सुनकर अकस्मात राजा को हँसी आ गयी, क्योंकि अब वह चोर की चाल को समझ चुका था। उसने उसकी बुद्धिमानी की प्रशंसा करते हुए उसकी सजा को स्थगित कर दिया। इतना ही नहीं, राजा ने चोर के बुद्धि-चातुर्य से प्रसन्न होकर उसे अपना दरबारी बना लिया। किसी विद्वान ने सही ही कहा है कि मुश्किल समय में भी व्यक्ति को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिये, बल्कि अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए उसे संकट से निपटने में लगाना चाहिये।

“बुद्धिमान बनने की कला वह जानने की कला है कि किसे नजरंदाज करना है।”
– विलियम जेम्स

 

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