Last Updated on June 25, 2019 by Jivansutra
Rabbit (Hare) and Tortoise Story in Hindi
– पवन प्रताप सिंह
श्यामपुर के जंगलों में छोटे बडे सभी जानवर मिल-जुलकर रहते थे, लेकिन न जाने क्यों खरगोशों और कछुओं में क्षेत्राधिकार और श्रेष्ठता को लेकर एक अघोषित जंग सी छिड़ी रहती थी। उनमे भी अनुपम खरगोश तो हर समय खुद को दूसरों से बेहतर दिखाने की कोशिश में लगा रहता था। एक बार तो हद ही हो गयी, जब उसने जानवरों की सभा में कछुओं की धीमी चाल के लिये उनका मजाक उड़ाया।
कई जानवरों को अनुपम खरगोश की वह बात नागवार गुजरी। उन्होंने जंगल के नियम-कायदे समझाते हुए उसे दूसरे जानवरों की इज्जत करने की सलाह दी। पर उस पर कोई असर नहीं हुआ, उल्टे सभी खरगोश उसके समर्थन में आ गये। मामला बिगड़ता देख सभी जानवरों ने निश्चय किया कि खरगोशों और कछुओं के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित करायी जाय जिससे इस विवाद का सदा के लिये अंत हो सके।
उन्होंने खरगोशों और कछुओं से अपना एक-एक प्रतिनिधि चुनने को कहा। जिसमे खरगोशों ने अभिमानी अनुपम खरगोश को और कछुओं ने सीधे-सादे रतन कछुए को अपना नेता चुन लिया। सभा में तय किया गया कि दोनों में से जो भी पहाड़ी पर स्थित पीपल के पेड़ पर सबसे पहले पहुँच जायेगा, उसे ही विजेता समझा जायेगा। सबने यह शर्त मान ली।
Story of Rabbit and Tortoise in Hindi
सीधे-सादे कछुओं के इस शर्त को स्वीकार करने पर सभी खरगोश खिलखिलाकर हँसने लगे। क्योंकि उन सबको अपनी तेज रफ़्तार का बड़ा घमंड था और वह प्रतियोगिता को एकतरफा समझ रहे थे। अगले दिन तय स्थान से दौड़ की शुरुआत हुई। सारे जानवर इस अद्भुत प्रतियोगिता को देखने के लिये जमा हो गये थे।
देखते ही देखते अनुपम खरगोश अपनी तेज रफ़्तार के बल पर रतन कछुए से बहुत आगे निकल गया और फिर घने जंगल में गायब हो गया। वहीँ रतन कछुआ बेहद धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसे देखकर सारे खरगोश फिर से कछुओं का मजाक उड़ाने लगे। पर वे बेचारे कर भी क्या सकते थे, इसलिये सिर्फ मन मनोसकर रह गये।
उधर अनुपम खरगोश जब आधे रास्ते में आ गया तो उसने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन रतन कछुआ उसे दूर-दूर तक नहीं दिखायी दिया। उसने सोचा क्यों न थोड़ी देर आराम करके थकान मिटायी जाय, क्योंकि कछुए को यहाँ तक पहुँचने में बहुत देर लगेगी। इसी बीच मै फिर से तरोताजा होकर, तेजी से दौड़कर, दोबारा उससे आगे निकल जाउँगा।
Story of Hare and Rabbit in Hindi
यह सोचकर वह सूरज की रौशनी से बचते हुए एक पेड़ की छाँव में जाकर लेट गया। जंगल में ठंडी हवा चल रही थी और ज्यादा तेजी से दौड़ने के कारण वह कुछ थक भी गया था, इसीलिये जल्दी ही उसे नींद ने घेर लिया। एक बार बीच में उसकी नींद भी खुली, पर आलस्य और रफ़्तार के अभिमान के कारण फिर से सो गया।
इधर रतन कछुआ बेहद धीमी चाल से चलते हुए भी अपनी मंजिल की तरफ लगातार आगे बढ़ रहा था। उसने रास्ते में अनुपम को सोते देखा, लेकिन फिर भी उसने चलना जारी रखा और पहाड़ी पर स्थित पीपल के पेड़ के बहुत नजदीक पहुँच गया। उधर जब सूरज ढलना शुरू हुआ, तब खरगोश की नींद खुली। देर हुई जानकर वह बहुत तेजी से दौड़ा।
पर जब वह पहाड़ी पर पहुंचा, तब उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि कछुआ तो उससे पहले ही पीपल के पेड़ के पास पहुँच गया था। नियमानुसार रतन कछुए को विजेता घोषित कर दिया गया और अनुपम खरगोश अपना सा मुँह लेकर रह गया। तो देखा आपने, आलस्य और प्रमाद के कारण न सिर्फ उस खरगोश की हार हुई, बल्कि अपने अभिमान के कारण दूसरों की नजरों में भी नीचा गिर गया।
यह प्रेरक कहनी हमें बताती हैं कि अगर मंजिल की तरफ द्रढ़ता से कदम बढायें जांय, तो इन्सान धीमे-धीमे चलते हुए भी एक दिन उस तक जरुर पहुँच जायेगा। लेकिन अगर उस खरगोश की तरह आलस्य के वश में हो जायेंगे और अपने प्रतिद्वंद्वीयों को छोटा समझने की भूल करेंगे, तो हार बिल्कुल निश्चित ही रहेगी।
– पवन प्रताप सिंह