Factors Affecting Value of Currency in Hindi

 

“मुद्रा (करेंसी) की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी माँग से तय होती है, ठीक वैसे ही जैसे सामानों और सेवाओं की तय होती है।”

 

कुछ दिन पहले हमारे एक पाठक ने हमसे Currency की Value कैसे तय होती है, यह सवाल पूछा था। Currency Value in Hindi में आज हम आपको बतायेंगे कि किसी देश की करेंसी अर्थात उसकी मुद्रा की कीमत कैसे तय होती है। दरअसल इस विषय पर हिंदी में सरल भाषा में कोई विस्तृत लेख उपलब्ध नहीं है, इसीलिये हम यहाँ अपनी सामर्थ्यनुसार कुछ कहने की चेष्टा करेंगे।

जिससे आपको इस विषय का कुछ अंदाजा हो सके कि किसी देश की Currency की Value को तय करने में किन चीजों का सबसे बड़ा योगदान रहता है। किसी देश की करेंसी की मजबूती न सिर्फ उस देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती की सूचक होती है, बल्कि यह उस देश के निवासियों के जीवन स्तर को आँकने में भी बहुत मददगार होती है।

सशक्त अर्थव्यवस्था की सूचक है मजबूत मुद्रा

आपको याद होगा कि कुछ साल पहले जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्था बहुत बुरी तरह चरमरा गयी थी, क्योंकि उसकी मुद्रा (Currency) का अत्यंत खतरनाक स्तर तक अवमूल्यन हो गया था। स्थिति इतनी बुरी हो गयी थी कि 100 अरब जिम्बाब्वे डॉलर, एक अमेरिकी डॉलर जितनी भी क्रय शक्ति नहीं रखते थे।

गली-मुहल्लों में स्टाल लगाकर बेची जा रही देशी मुद्रा (Native Currency) के बण्डलों के दृश्य उस समय जिम्बाब्वे में हर जगह आम थे। आज भी अगर किसी देश की करेंसी की क्रय शक्ति में अचानक गिरावट आती है, तो उस देश की सरकार और वित्तीय संस्थान अपनी Currency को उपर उठाने के प्रयासों में तेजी से लग जाते हैं। तो आइये जाने वह पाँच प्रमुख कारण जो किसी देश की Currency की ताकत को निर्धारित करते हैं –

संसार के देश और उनकी मुद्राएँ – Country and Currency in Hindi

 

How Value of A Currency is Determined

1. GDP of Country देश का सकल घरेलू उत्पाद

मुद्राओं की कीमत या उनके विनिमय की दर Exchange Rate मुख्य रूप से किसी मुद्रा (करेंसी) और अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति पर निर्भर करती है। मुद्रा आपूर्ति का अर्थ है कुल मुद्रा जो इस समय (Total Currency in Circulation) चलन में है। इस तरह देखा जाय तो मुद्रा का अपना कोई वस्तु मूल्य (Material Value) नहीं है। इसका मूल्य उन वस्तुओं और सेवाओं से तय होता है जिन्हें यह मुद्रा का विनिमय होने पर खरीद सकती है।

और वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य और कुछ नहीं, बल्कि किसी भी देश का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) यानि GDP है। इसलिये जब किसी देश की GDP में बढ़ोत्तरी होती है, तो उसकी मुद्रा की कीमत भी बढती है और यदि GDP में कोई विशेष वृद्धि हुए बिना अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति या धन का चलन बढ़ता है, तो मुद्रा का अवमूल्यन (Depreciation of Currency) होता है।

क्योंकि तब कम वस्तुओं और सस्ती सेवाओं के लिये भी भारी मुद्रा चुकानी पड़ती है। इसे ही हम मुद्रास्फीति (Inflation) कहते हैं जब मुद्रास्फीति की दर ज्यादा होती है, तब करेंसी की कीमत (Value of Currency) अपने आप नीचे गिरने लगती है और जब मुद्रास्फीति की दर कम होती है, तब करेंसी का मूल्य (Worth of Currency) बढ़ जाता है।

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2. Demand of Currency & Import-Export Balance मुद्रा की माँग

मुद्रा की कीमत (Price of Currency) को एक दूसरा कारक भी प्रभावित करता है जिसे हम मुद्रा की माँग (Demand of Currency) कहते हैं। ऐसे कई कारण हैं जो मुद्रा विशेष की माँग को प्रभावित करते हैं, लेकिन इनमे सबसे मुख्य है किसी देश से वस्तुओं और सेवाओं का होने वाला आयात और निर्यात। इसे एक उदाहरण से इस प्रकार समझा जा सकता है –

“मान लीजिये कोई देश अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है और वह इनका निर्यात करता है, तो दूसरे देशों के आयातकों को घरेलू निर्यातकों को उनकी घरेलू मुद्रा में मूल्य चुकाना पड़ता है। इससे प्रत्यक्ष तौर पर घरेलू मुद्रा (निर्यातक देश की मुद्रा) की माँग बढती है, परिणामस्वरुप मुद्रा की कीमत भी बढती है।”

वहीँ अगर कोई देश आयात अधिक करता है, तो घरेलू आयातकों को विदेशी निर्यातकों को विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) में भुगतान करना पड़ता है। इससे विदेशी मुद्रा का मूल्य बढ़ता है, जबकि घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन होता है। संक्षेप में कहा जाय, तो अगर कोई देश आयात की तुलना में निर्यात अधिक करता है, तो उस देश की मुद्रा का मूल्य बढ़ता है और अगर वह निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसकी मुद्रा का अवमूल्यन होता है।

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5 Factors Affecting Currency in Hindi

3. Interest Rates in Country देश में ब्याज दर

मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने वाला एक तीसरा कारक है – ब्याज दर। यदि किसी देश में घरेलू ब्याज दर अधिक है, तो आकर्षक ब्याज दर होने के चलते उस देश में विदेशों से आने वाले धन का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे उस देश की मुद्रा का मूल्य (Worth of Currency) बढ़ता है और जब देशी मुद्रा का दाम बढ़ता है, तो विदेशी निवेशक उस देश में निवेश करना पसंद करते हैं।

क्योंकि जमा राशि की अवधि पूरी होने पर जब वह देशी मुद्रा को विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) में बदलते हैं तो उन्हें कम धन व्यय करना पड़ता है और आकर्षक घरेलू ब्याज दर के कारण होने वाला धन का यह निवेश तब तक चलता रहता है जब तक कि ब्याज दर में परिवर्तन के कारण विदेशी जमा पर विदेशी मुनाफा विदेशी जमा पर घरेलू लाभ के बराबर नहीं हो जाता। इसे ही ब्याज दर समानता (Interest Rate Parity) कहते हैं।

4. Price of Identical Goods एकसमान वस्तुओं की कीमत

मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने वाला चौथा कारक है – Price of Identical Goods (एकसमान वस्तुओं की कीमत)। यदि किसी एक जैसी वस्तु की कीमत दो देशों की मुद्रा के विनिमय दर को ठीक करने पर भी अलग ही रहती है, तो उस देश से जिसमें वह सामान सस्ता होता है, उसी सामान के निर्यात की माँग बढ़ जाती है। इससे उस देश की करेंसी की कीमत बढ जाती है। इसे क्रय क्षमता समानता (Purhasing Power Parity) कहते हैं।

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5. Foreign Exchange Reserve Operations विदेशी विनिमय भंडार

इसके अलावा कम अवधि के दौरान मुद्रा के मूल्य के प्रभावित होने का प्रधान कारण Foreign Exchange Reserve भी होते हैं। प्रत्येक देश का अपना-अपना केंद्रीय बैंक होता हैं जो मुक्त बाजार में अपनी क्रियाविधि संचालित करते हैं। यह बैंक Foreign Exchange Reserve के रूप में काम करते हुए विदेशी मुद्रा का भंडार रखते हैं।

सभी केंद्रीय बैंक अपनी-अपनी मुद्रा के मूल्य की एक विशेष सीमा (Comfort Zone) रखते हैं जिसमे उस मुद्रा का क्रय-विक्रय (Currency Exchange) होता है। मुद्रा के इस कम्फर्ट जोन के बाहर जाते ही बाजार के दबाव के कारण केंद्रीय बैंकों को परिस्थितियों के आधार पर विदेशी मुद्रा को खरीदना और बेचना पड़ता है। इससे भी उस देश की मुद्रा का मूल्य (Price of Currency) घटता-बढ़ता है।

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“सच्चरित्र और निःस्वार्थ लोकसेवी ही किसी राष्ट्र को ऊँचा उठा सकता है।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

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