Meaning and Purpose of Marriage in Hindi

 

“Hindi में Marriage का Meaning समझिये, जब आप विवाह (मैरिज) करने जा रहें हों, तब अपने आप से यह सवाल पूछिये: क्या आपको विश्वास है कि आप इस व्यक्ति से अपनी वृद्धावस्था में अच्छी तरह से वार्तालाप करने में सक्षम होंगे? क्योंकि विवाह में दूसरी सभी चीज़ें अस्थायी हैं।”
– फ्रेडरिक नीत्से

 

Meaning and Purpose of Marriage in Hindi
विवाह का अर्थ समझिये

Meaning of Marriage in Hindi क्या है मैरिज का अर्थ

Marriage Meaning in Hindi में आज हम आपको सिर्फ Marriage का Meaning ही नहीं बतायेंगे, बल्कि यह भी बतायेंगे कि आप किस तरह से अपने जीवनसाथी का सही-सही मूल्याँकन कर सकते हैं। हमारे Marriage Chart से आप कुछ सरल से प्रश्नों का उत्तर देकर यह अच्छी तरह से जान सकते हैं कि क्या आप दोनों वास्तव में एक-दूसरे के ही लिये बने हैं। तो चलिये पहले शुरुआत करते हैं Marriage के Meaning से –

Marriage अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है – विवाह, शादी, युति, निकाह, पति-पत्नी का संबंध और पाणिग्रहण। English में इसके पर्यायवाची शब्द हैं Matrimony, Wedlock, Wedding और Nuptials.

Marriage क्या है, इसे सही प्रकार से समझने के लिये हम इसकी एक छोटी सी परिभाषा यहाँ पर दे रहे हैं –

“Marriage is the legal relationship or a ceremony by which a man and woman become husband and wife and their association gets the social acceptance.”

“विवाह वह वैध रिश्ता या समारोह है जिसके द्वारा एक पुरुष और स्त्री, पति और पत्नी बनते हैं और उनका साहचर्य सामाजिक स्वीकृति पाता है।”

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Definition of Marriage in Hindi विवाह की परिभाषा

हमारे वह पाठक जो Marriage की एक सारगर्भित और पूर्ण परिभाषा जानना चाहते हैं, उनके लिये हम पवन प्रताप सिंह के अनुसार दी गयी विवाह की परिभाषा दे रहे हैं –

“विवाह (Marriage) एक पुरुष और स्त्री का वह वैध और स्वीकृत सामाजिक सम्बन्ध है, जिसमे वह दोनों एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान रहकर, परस्पर प्रेम, विश्वास, और दायित्वबोध की भावना से एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। सच्चे विवाह में एक-दूसरे को मन से अपनाने का भाव अनिवार्य रूप से समाहित है और जब तक यह इसमें नहीं है, तब तक कोई भी विवाह, विवाह नहीं है।”

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True Meaning of Marriage in Hindi

विवाह के पूर्व वर-वधु न जाने क्या-क्या आशाएं सजाते हैं? अपने जीवनसाथी के प्रति न जाने कितने सुनहरे सपने देखते हैं और एक-दूसरे को लेकर न जाने किस-किस प्रकार की मधुर कल्पनाएँ करते हैं? बहुत सी आशाओं, आकाँक्षाओं और अपेक्षाओं के साथ युवक-युवतियाँ दांपत्य-जीवन के बंधन में बँधते हैं। समाज के सामने दोनों अनेकों तरह के रस्मो-रिवाज संपन्न कर एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी घोषित करते हैं।

विवाह के रूप में बड़ा समारोह मनाया जाता है और बैंड-बाजे, रौशनी, दावतें, लेन-देन, बारात, भोज, जुलूस और जलसों के साथ उस नयी जिंदगी के शुरू होने का जश्न मनाया जाता है, जिसकी कल्पना हर कोई करता है। विवाह के बाद कुछ दिन तक तो दोनों की जिंदगी एक-दूसरे के आकर्षण में बंधे रहने से बड़ी सुखद बीतती है।

लेकिन यह स्थिति ज्यादा दिन तक नहीं रहती और ज्यादातर Couples की Married Life कलह-क्लेश और अशांति-असंतोष की आग में जलने लगती है। ऐसा क्यों होता है? परिपाटी के तौर पर पुरोहित जिन प्रतिज्ञाओं का उच्चारण वर-वधु से करवाते हैं, उन्हें शीघ्र ही क्यों भुला दिया जाता है? व्यवहारिक जीवन में उन्हें चरित्रार्थ होते क्यों नहीं देखा जाता और क्यों दांपत्य जीवन एक-दूसरे के लिये बोझ बन जाता है?

Marriage is A Responsibility विवाह एक जिम्मेदारी है

अगर गंभीरता से विचार किया जाय तो इन समस्याओं का कोई बाहरी कारण नजर नहीं आता। दरअसल ऐसा होने के पीछे असली वजह यह है कि पति-पत्नी में से किसी ने भी, कभी भी विवाह के वास्तविक अर्थ (True Meaning of Marriage) को समझने का कोई प्रयास ही नहीं किया। अगर उन्होंने विवाह का सच्चा अर्थ समझा होता, तो उनकी Married Life एक स्वर्गीय जीवन का प्रतीक बन जाती।

विवाह कोई खिलवाड़ नहीं है, बल्कि एक भारी जिम्मेदारी है जिसे सिर्फ सुयोग्य पुरुषों और स्त्रियों को ही उठाना चाहिये। लेकिन हमारे सड़े-गले विचारों वाले और दकियानूसी समाज में यह अपेक्षा की जाती है कि व्यक्ति का विवाह जरुर होना चाहिये और विवाह के पश्चात संतान भी जितनी जल्दी हो जाय उतना ज्यादा अच्छा है।

योग्य, आत्म-निर्भर और उच्चतर जीवन मूल्यों में विश्वास करने वाले लोगों का विवाह बंधन में बंधना कुछ हद तक उचित जान पड़ता है, लेकिन जिस तरह से अयोग्य लड़के-लड़कियों को भी विवाह बंधन में बंधने को मजबूर किया जाता है, वह समझ से परे है। न सिर्फ वह युवक और युवतियाँ, बल्कि उनके परिवारीजन भी एक पल के लिये यह नहीं सोचते कि इस तरह के विवाह से आखिर उन्हें हासिल ही क्या होगा।

Understand Meaning of Marriage विवाह का सही अर्थ समझें

देखा जाय तो इस तरह के विवाह का एकमात्र अर्थ है – यौनाचार की खुली छूट देना और अनगढ़ जीवों को उत्पन्न करना। विदवान कहते हैं जिस तरह अच्छा माता-पिता बनना एक बड़ा उत्तरदायित्व है, उसी तरह से एक अच्छा पति या पत्नी बनना भी एक भारी जिम्मेदारी है, लेकिन ज्यादातर लोग संबंधों को सही प्रकार से समझे बिना ही उनमे बंधने की भूल कर बैठते हैं।

और इसका परिणाम होता है निरंतर दुःख और असंतोष की आग में जलता जीवन, जो इन्सान का जल्दी से पीछा नहीं छोड़ता। इसीलिये विवाह करने से पहले ही Marriage के Meaning को सही प्रकार से समझ लेना चाहिये, क्योंकि जब तक आप Marriage का Meaning ही नहीं समझेंगे तब तक कैसे अपनी जिम्मेदारियों को निभायेंगे और कैसे अपने इस सम्बन्ध में बंधने के फैसले को उचित ठहरायेंगे।

याद रखिये आपने विवाह के समय जीवनसाथी के साथ Marriage के जो 7 Promises किये हैं, उन्हें हर हाल में पूरा करना आपकी जिम्मेदारी है और आप उससे पीछे नहीं हट सकते हैं।

 

5 Purpose of The Marriage in Hindi

क्या है विवाह का सच्चा उद्देश्य

लगभग हर धर्म में विवाह को एक पवित्र सम्बन्ध माना जाता है। जब तक कोई स्त्री-पुरुष विवाह के बंधन (Bond of Marriage) में नहीं बंधता, तब तक उनका संबंध, चाहे वह कितना ही गहरा क्यों न हो, सामाजिक दृष्टि से कभी स्वीकार नहीं किया जाता। विवाह के पीछे पवन प्रताप सिंह ने पाँच उद्देश्य बतायें हैं –

1. एक योग्य संतान उत्पन्न करके, वंश-परंपरा की सुरक्षा करना और संसार को गतिशील बनाये रखना।

2. जिंदगी को सुख-शांति से बिताने के लिये एक सच्चा, सुयोग्य और विश्वसनीय साथी पाना।

3. नयी जिम्मेदारियों का वहन करते हुए अपने व्यक्तित्व को एक-दूसरे के सहारे विकसित करना।

4. वासना को तुष्ट करके अपने अस्तित्व के मूल उद्देश्य की ओर द्रढ़ता से कदम बढ़ाना।

5. पंचयज्ञों के द्वारा इस जीव-जगत (प्राणियों के समुदाय) का पोषण करते हुए आत्मीयता का विस्तार करना।

इन पाँच बिन्दुओं को संक्षिप्त करते हुए अब हम इनका कुछ विस्तार से वर्णन करेंगे, ताकि आप Marriage का सही Meaning समझ सकें –

Marriage Purpose 1. विश्वसनीय सच्चे मित्र का आजीवन साथ पाना

जीवन बहुत लंबा है और अनिश्चित भी, संतों और योगियों को छोड़ दिया जाय तो अकेले रहना साधारण आदमी के बस की बात नहीं है और स्त्रियों के लिये तो अकेले रहना और भी ज्यादा मुश्किल है। मनुष्य एक सामाजिक जीव है उसे स्वाभाविक रूप से दूसरे इंसानों की संगति में रहना पसंद होता है। इसीलिये हम दोस्त बनाते हैं ताकि न केवल सुख में, बल्कि दुःख में भी ऐसे इन्सान का साथ पा सकें जो हमें भावनात्मक रूप से सहारा दें।

हमारे जीवन में आनंद और उल्लास लायें। सुख में हमारे साथ हँसे-खेले और दुःख में धैर्य और ढाढस बंधाएं और एक सच्चे और विश्वसनीय मित्र (Friendship) के रूप में जीवनसाथी का कोई सानी नहीं है। क्योंकि उससे हम उस गौरवशाली बंधन के द्वारा जुड़े होते हैं जिसकी महिमा सनातन काल से गई जाती रही है।

सुख हो या दुःख, जीवनसाथी हर पल एक साये की तरह हमारे साथ मौजूद होता है। जिसके साथ हम अपनी खुशी का हर पल हर वक्त बाँट सकते हैं, जिसका कंधा हर वक्त हमारे दुखों का बोझ ढोने को तैयार मिलेगा। जो हमारी मदद और सेवा करने के लिये, हमें स्नेह बाँटने के लिये हर वक्त तैयार होगा। इस धरती पर चाहे हमारे कितने ही मित्र हों, पर सच्चे जीवनसाथी जैसा उनमे से कोई नहीं हो सकता है।

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Marriage Purpose 2. अपनी वासनाओं पर नियंत्रण पाना

विवाह का एक उद्देश्य अपनी वासनाओं पर नियंत्रण पाना भी है। कामवासना हर जीव के अन्दर उसके चित्त की गहराइयों में बीज के रूप में विद्यमान है और विवाह उसके स्वस्थ निकास में अहम् भूमिका निभाता है। स्त्री को पुरुष की और पुरुष को स्त्री के संसर्ग की नैसर्गिक चाहत होती है और उनकी यह चाहत विवाह के द्वारा ही पूरी हो पाती है।

यूँ तो समाज का नैतिक पतन होने के चलते आज अनैतिक संबंधों की बाढ़ आ गयी है, लेकिन फिर भी लोग अपने कुकर्मों को खुलेआम स्वीकारने की हिम्मत नहीं करते। क्योंकि वह भी जानते हैं कि वे जो कर रहे हैं गलत कर रहे हैं। लेकिन विवाह के बंधन में बंधने के पश्चात स्त्री-पुरुष के बीच बनने वाले शारीरिक संबंधों को समाज न सिर्फ उचित ठहराता है, बल्कि उन्हें सम्मान भी हासिल होता है।

विवाह न केवल स्त्री-पुरुष की आंतरिक कामवासना को तृप्त करने का साधन उपलब्ध कराता है, बल्कि वह उनकी संतुष्टि का साधन बनते हुए उन्हें अपनी वासनाओं को नियंत्रित करने और उन्हें नष्ट करने का अवसर भी मुहैया कराता है।

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What is The Purpose of Marriage

Marriage Purpose 3. वंश-परंपरा चलाना

संसार को गतिशील बनाये रखने के लिये नये जीवों की उत्पत्ति अनिवार्य है और इसका प्रमुख साधन है काम, जो सभी प्राणियों के मन में स्वाभाविक रूप से विद्यमान है। इसके अलावा इस दुनिया में हर प्राणी की यह इच्छा होती है कि उसके आनंद को बढ़ाने वाला कोई ऐसा हो जो उसके नीरस जीवन को आनंद से भर दे और उसे जीने की वजह प्रदान करे। ऐसा कोई जो उसकी वंश बेल को आगे बढ़ाये।

विवाह वंश-परंपरा को चलाये रखने का एक सरल साधन है जिसके जरिये प्रत्येक जीव अपने गुण स्वभाव के अनुरूप एक ऐसी संतान को जन्म देता है जो उसके इस धरती से जाने के बाद भी उसके कुल और परिवार के नाम को जिन्दा रखेगी। यूँ तो संतान बिना Marriage के सिर्फ स्त्री और पुरुष के संयोग मात्र से पैदा हो सकती है, लेकिन इस तरह की नाजायज संतान को न तो सामाजिक स्वीकृति मिलती है और न ही उसका आत्म गौरव रह पाता है।

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Marriage Purpose 4. अपने व्यक्तित्व को सुधारना

विवाह का एक उद्देश्य अपनी Personality को Develop करना भी है। आम तौर पर स्वार्थी प्रकृति होने के कारण इन्सान में अनेकों कमजोरियाँ और बुराइयाँ होती हैं, लेकिन Marriage के पश्चात अपने परिवार के लिये उसे जीवन में समर्पण और त्याग को स्थान देना पड़ता है, जिससे उसकी कुछ स्वार्थी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगता है।

विवाहित जीवन के दायित्व को सँभालने के लिये उसे अपने आचरण में करुणा, क्षमा, धैर्य, उदारता जैसे सदगुणों को उतारना पड़ता है जिससे उसके व्यक्तित्व का विकास होता है। Personality क्या है, इसका विस्तार से वर्णन हमने Personality Meaning in Hindi में किया है।

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Marriage Purpose 5. आत्मीयता का विस्तार करना

कुछ विद्वान कहते हैं कि मनुष्य जन्मजात स्वार्थी होता है, इसीलिये वह व्यवहार में भी सर्वप्रथम खुद को सबसे उपर रखता है। खुद को दूसरों से आगे देखना, अपने लिये सर्वश्रेष्ठ चीज चुनना, जैसी बातें मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति की ही पहचान हैं। लेकिन Marriage के बाद परिवार का विस्तार होने पर उसकी आत्मीयता का विस्तार होता है, क्योंकि तब उसका ध्यान अपने जीवनसाथी और संतान पर भी केन्द्रित होने लगता है।

उन्हें आगे बढ़ाने के लिये फिर वह न सिर्फ अपने अरमानों को भूल जाने को तैयार हो जाता है, बल्कि अपने प्रियजनों की उन्नति के लिये दुःख-दर्द भी सहने को तैयार हो जाता है। दूसरों के लिये त्याग की इस प्रक्रिया में उसकी चेतना विस्तार पाती है जिससे उसमे पुण्य-परमार्थ और परोपकार की भावना का उदय होता है और यदि वह मोह के राक्षस से बचने में सफल हो जाय, तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता भी खुल जाता है।

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Marriage Purpose 6. जीवन को सुख-शांति से बिताना

इस दुनिया में ऐसा कोई इन्सान नहीं है जो सुख-शांति से न जीना चाहता हो। सच्चाई तो यही है कि हर इन्सान शाश्वत सुख के पीछे पागल है, यह अलग बात है कि वह हर किसी को नहीं मिलता। विवाह (Marriage) ज्यादातर लोगों के जीवन में सुख-शांति लाने वाला माध्यम है, क्योंकि परिवार रुपी जिस बगिया में इन्सान हँसते-खेलते अपनी जिंदगी के ज्यादातर खुशी के पल हासिल करता है, वह विवाह से ही विस्तार पाती है।

जीवनसाथी और संतान से जैसा स्नेह-सहयोग कोई इन्सान निःस्वार्थ भाव से हासिल कर सकता है, वैसा वह संसार में जल्दी से किसी दूसरे आदमी से हासिल नहीं कर सकता। अमेरिका के महान राष्ट्रपति थॉमस जेफ़र्सन ने भी सुख-शांतिमय जीवन के लिये परिवार की महत्ता इन शब्दों में स्वीकार की थी –

“मेरे जीवन के सर्वाधिक सुखमय क्षण कम ही रहे हैं जिन्हें मैंने अपने परिवार की गोद में घर पर रहकर बिताया है।”

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Purpose & Meaning of Marriage in Hindi

Marriage Purpose 7. एक-दूसरे को उन्नत करना

वैसे तो यह माना जाता है कि परिवार, जीवनसाथी और संतान की जिम्मेदारी बढ़ने के कारण इन्सान की प्रगति के सारे दरवाजे हमेशा के लिये बंद हो जाते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। विवाह हर इन्सान के लिये प्रगति के लिये नये द्वार खोलता है, बशर्ते कोई समझदारी दिखाते हुए इस अवसर का इस्तेमाल कर सके। हमने ऐसे कई लोगों को देखा है जिन्होंने Marriage के बाद न सिर्फ उच्च शिक्षा पायी, बल्कि अपने करियर में भी बहुत आगे पहुँचे।

और प्रगति का यह क्षेत्र सिर्फ सांसारिक या भौतिक उन्नति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक क्षेत्र में भी ऐसे कई लोगों के बारे में सुना गया है, जिन्होंने विवाह के बाद बहुत उन्नति की। हालाँकि ऐसे लोग होते विरले ही हैं, लेकिन इससे यह तथ्य पूरी तरह से झूठा सिद्ध होता है कि विवाह के बाद लोगों को जीवन में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता। सच्चाई तो यह है कि Marriage के बाद पति या पत्नी दोनों ही के पास आगे बढ़ने के बेशुमार मौके रहते हैं।

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Marriage Purpose 8. खुद को जिम्मेदार बनाना

आज भी गाँव-देहात में उन लोगों के लिये जो आम तौर पर जिंदगी को लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना ढंग से जीते हैं, यह कहावत प्रचलित है – “गधे को रास्ते पर लाने के लिये उस पर बोझ टांग दो।” इस कहवत का अर्थ है कि अगर बच्चा माता-पिता के प्यार-दुलार के कारण स्वच्छंद हो गया है, तो उस पर कोई जिम्मेदारी डाल दो, अर्थात उसका विवाह करवा दो।

और व्यवहार में देखा भी जाता है कि Marriage होने से पहले बेलौसी के आलम में जीने वाले लोग, विवाह के कुछ समय बाद ही बेहद जिम्मेदार और परिपक्व इन्सान के रूप में व्यवहार करने लगते हैं। क्योंकि विवाह के पश्चात जीवनसाथी और संतान का उत्तरदायित्व, व्यक्ति के बिगडैल और निरंकुश हो चुके मन पर लगाम लगा देता है।

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Marriage Purpose 9. अपनी योग्यता बढ़ाना

जिस तरह विवाह का एक उद्देश्य एक-दूसरे को उन्नत करना भी है, उसी तरह यह अपनी योग्यता को बढ़ाने का भी एक सुअवसर है और इसमें हमारा सबसे बड़ा मददगार होता है – हमारा जीवनसाथी। जिसके ज्ञान, अनुभव और समर्पण की वजह से हम तेजी से अपनी योग्यता बढ़ा सकते हैं और उन्नति की ओर कदम बढ़ा सकते हैं, फिर चाहे वह क्षेत्र कितना ही कठिन और नया क्यों न मालूम होता हो!

हमने ऐसे कई लोगों के बारे में पढ़ा सुना तो है ही, देखा भी है, जिन्होंने विवाह (Marriage) के पश्चात अपनी योग्यता को इतना बढ़ा लिया कि दूसरे लोग इस बात पर आश्चर्य ही करते रह गये कि विवाह के पश्चात कोई इतना आगे भी बढ़ सकता है।

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Marriage Purpose 10. सरलता से जीवन का उद्देश्य हासिल करना

इस धरती पर हर इन्सान के जीवन की मियाद तय है और जीवन देने वाले उस विधाता ने यह जीवन, जीवन के उस उद्देश्य को हासिल करने के लिये ही दिया है जिसे पाने में असफल रहने के कारन ही इन्सान को बार-बार जीवन और मृत्यु के चक्र में चक्कर काटना पड़ता है। विवाह (Marriage) जीवन के उस मूल उद्देश्य को हासिल करने में हर इन्सान की बहुत मदद कर सकता है, बशर्ते जीवन को मोह और वासना के पिंजरे में फँसने से बचाया जा सके।

जीवन का वह सर्वोच्च उद्देश्य है – स्वरूपास्थिति जिसे हम मोक्ष और मुक्ति के नाम से भी जानते हैं। यदि कोई इन्सान खुद को परिवार के मोहजाल में उलझने से बचा सके, तो कर्मयोग का सुगम साधन उसे अपने दिव्य लक्ष्य तक पहुँचने में बड़ी भारी मदद दे सकता है। संत कबीर, रैदास, रामकृष्ण परमहंस, श्यामाचरण लाहिड़ी और पंडित श्रीराम शर्मा कुछ ऐसे ही उज्जवल नाम हैं जिन्होंने गृहस्थ जीवन में ही जीवन का परम उद्देश्य पा लिया था।

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“इस धरती पर विवाह के जैसा सुखप्रदायक और दुखदायक सम्बन्ध दूसरा कोई नहीं है।”
– पवन प्रताप सिंह

 

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