New Story in Hindi on Cruel King

 

“जो राजा अपनी प्रजा का संतान की तरह पालन नहीं करता, जो उनकी संपत्ति को उन्हें न देकर स्वयं के उपभोग में खर्च करता है, वह राजा निश्चय ही नरक का अधिकारी होता है। जिसके राज्य में प्यारी प्रजा दुखी रहती है और अपराध करने को विवश होती है, वह राजा प्रजा के किये हुए पाप के चतुर्थांश का भागी होता है।”
– महाभारत

 

New Story in Hindi on Cruel King
मानव जीवन और खुशियों की देखभाल ही अच्छी सरकार का प्रथम व एकमात्र उद्देश्य है

मशहूर खलीफा हारून-अल-रशीद पहले बग़दाद के बादशाह थे। उस समय उनकी पहचान एक जुल्मी बादशाह के रूप में थी, जो अपनी रियाया पर जुल्मोसितम ढाने के लिये बदनाम था। पीछे उन्हें अपनी करनी पर बड़ा पश्चाताप हुआ और उन्होंने सारा राजपाट त्यागकर, खुदा की बंदगी करना मंजूर किया। बादशाही रौब के दिनों में एक बार उन्होंने अपनी प्रजा पर नमक कर लगाया था।

और फिर सारे शहर में मुनादी करवा दी कि हर आदमी को अपनी कमाई का चौथा हिस्सा, नमक कर के रूप में बादशाह के खजाने में जमा करना होगा। पहले से ही गरीबी और भुखमरी की मार झेल रही जनता को जब इसके बारे में मालूम हुआ तो सारे राज्य में हाहाकार मच गया। पर चूँकि वे बादशाह के जुल्मोसितम से वाकिफ थे, इसीलिए किसी की हिम्मत बादशाह का विरोध करने की नहीं हुई।

पर एक गरीब मजदूर इतना बेबस था कि वह थोडा सा भी धन कर के रूप में नहीं दे सकता था, इसीलिए उसने बादशाह के सामने गुहार लगाने का फैसला किया। अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ और बड़ी नरमी से बादशाह के सामने अपनी फ़रियाद अर्ज की, “जहाँपनाह, गुस्ताखी माफ़ हो। मै एक बेबस, तंगहाल गरीब हूँ, जो दो जून की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल से कर पाता है।

और आपके राज्य में तो मुझ जैसे हजारों गरीब लोग हैं ,जो बेचारे दिन-रात पेट की आग बुझाने में ही लगे रहते हैं।” “फिर ऐसी हालत में हम नमक कर के रूप में इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कहाँ से करें।” “ये सब मै नहीं जानता, मैंने यह कर तुम्हारी ही भलाई के लिये लगाया है, इसीलिए यह तो तुम्हे देना ही पड़ेगा।” – बादशाह ने रूखे मुँह जवाब दिया।

गरीब मजदूर लाचारी से बोला, “हुजूर, भला इतना ज्यादा कर देने से हम गरीबों का भला किस तरह हो सकता है? अगर आप इसके बारे में समझा सकें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी” बादशाह ने जवाब दिया, “सुनो! मेरी रियाया (प्रजा) मेरी औलादों जैसी है। मै तुम्हारी देखभाल एक बाप की तरह करता हूँ। तुम पर जब भी कोई मुसीबत आती है तो मै बैचैन हो जाता हूँ।

तुम्हारे खाने-पीने का, सुरक्षा-व्यवस्था का मै बराबर ख्याल रखता हूँ। तुम्हे किसी चीज़ की कोई दिक्कत न हो, इसका मुझे हमेशा ध्यान रहता है और इन सब चीज़ों के लिये पैसों की भी जरुरत होती है कि नहीं? बस, इसीलिए मैंने यह थोडा सा नमक कर तुम पर लगाया है, ताकि तुम्हारी देखभाल और अच्छी तरह से कर सकूँ।”

गरीब मजदूर लाचारी से बोला, “आपने सही फ़रमाया बादशाह सलामत, यक़ीनन आपने जो कर लगाया है वह हम लोगों की भलाई के लिये ही है। आज मुझे भी इससे बड़ा सबक मिला है। अब से मै भी इसका इस्तेमाल अपने घर-परिवार में करूँगा।” बादशाह ने हैरत से उसकी ओर देखा और पूछा, “अच्छा, वह कैसे?” गरीब मजदूर बोला, “हुजूर, मैंने एक कुत्ता और एक बकरी पाल रखी है।

मै उनकी देखभाल भी ऐसे ही करता हूँ जैसे अपने बच्चों की। जब उन्हें भूख लगती है, तो मै उन्हें रोटी और चारा देता हूँ। जब उन्हें चोट लगती है, तो मै उनकी चिकित्सा कराता हूँ। उनकी जी-जान से सेवा करता हूँ, पर कल से भूख लगने पर जब कुत्ता मेरे तलवे चाटेगा, पूँछ हिलायेगा और बकरी में-में करेगी, तो मै भी उन्हें ऐसे ही दिलासा दूँगा जैसा आपने मुझे दिया है।

एक तेज धार का चाकू लेकर उनकी पूँछ का एक टुकड़ा काटूँगा और उनके सामने रखकर कहूँगा – मेरे प्यारे कुत्ते, मेरी प्यारी बकरी, मै तुम्हे दिलोजान से चाहता हूँ और हरदम तुम्हारी बेहतरी की चिंता करता हूँ। इसलिये आज से मै तुम्हे तुम्हारे ही शरीर के टुकड़े खिलाकर पालूंगा। अब से इसी में खुश रहना।”

गरीब मजदूर की बात सुनकर बादशाह की आँखों पर पड़ा स्वार्थलिप्सा का पर्दा गिर गया। वह शर्म से पानी-पानी हो गया। अपनी गलती का अहसास होते ही उसने तुरंत ही प्रजा पर लगाया गया नमक कर वापस ले लिया और कुछ ही समय बाद बादशाही रौब में किये गलत कामों का प्रायश्चित करने हेतु फ़कीर बन कर वहाँ से निकल पड़ा।

देर से ही सही, पर बादशाह हारून-अल-रशीद को भी अपने जीवनकाल के उत्तरार्ध में इस बात का अहसास हो गया था कि वास्तव में उसने अपनी प्रजा पर कितना जुल्म ढाया था। पाप, अत्याचार और अधर्म को केवल शारीरिक उत्पीडन या दैहिक क्रूरता की सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है, इसकी परिभाषा और अधिक विस्तृत है।

शासकों द्वारा अपनी स्वार्थलिप्सा पूरी करने हेतु, स्वयं के जीवन को ऐशों-आराम की हर सुविधा से युक्त करने हेतु, प्रजा पर लगाये गये बेतहाशा और अमर्यादित कर, जो उनके जीवन को नारकीय मानसिक यंत्रणाओं से युक्त कर दे, उनके हक़ की रोटी को छीन ले, एक अत्यंत दारुण मानसिक क्रूरता है, जिसे कमोबेश आज हर सरकार बड़े गौरव के साथ अंजाम देती है।

जनता के उपयोग में आने वाला शायद ही ऐसा कोई उत्पाद हो जो कर की मार से अछूता हो। करोड़ों लोगों से कर के रूप में, उनकी ही जिंदगी बेहतर करने का सब्जबाग दिखाकर, असीमित धन उगाहने वाली इन सरकारों को भी क्या कभी हारून-अल-रशीद की तरह अपने जुल्मों सितम पर शर्म आएगी, इस बात पर शायद हर किसी को संदेह होगा। क्या कोई सरकार अब भी इस पर विचार करने को तैयार है?

“राजनीतिज्ञ हर जगह एक जैसे ही होते हैं, वे उन जगहों पर भी पुल बनाने का वादा करते हैं, जहाँ नदियाँ नहीं होती।”
– निकेता खुश्चेव

 

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