Last Updated on November 8, 2019 by Jivansutra

 

Moral Story in Hindi for Class 9 Students

 

“सुख आत्मानुशासन के ऊपर निर्भर है। अपने सुखमय जीवन के रास्ते में हम ही सबसे बड़ी बाधा हैं। समाज और दूसरे लोगों के साथ लड़ना, अपनी स्वयं की प्रकृति से लड़ने की तुलना में बहुत आसान है।”
– डेनिस प्रगेर

 

Moral Story in Hindi for Class 9
लोग उतने ही सुखी होते हैं जितना वे अपने मनों को तैयार कर लेते हैं

बहुत समय पहले जापान में यामातो नाम के एक सम्राट हुए हैं, जिनका एक मंत्री था – ओ-चो-सान। उस मंत्री का परिवार अपनी सौहार्द्रता और विनम्रता के लिए बहुत प्रसिद्ध था। हालाँकि उस परिवार में सैंकड़ों सदस्य थे, पर फिर भी उनके बीच आत्मीयता का अटूट सम्बन्ध था। सभी सदस्य साथ-साथ रहते थे और भोजन तथा दूसरे आवश्यक कार्य भी साथ-साथ मिलकर ही करते थे। लेकिन फिर भी किसी प्रकार के लड़ाई-झगडे और मनमुटाव की बात उस परिवार में कभी नहीं सुनी गयी।

ओ-चो-सान के परिवार के आपसी सौहार्द्र की बात सम्राट यामातो के कानो तक भी पहुँची और इस बात की सच्चाई जानने के लिए, एक दिन वे चुपचाप बिना बुलाये स्वयं ही, बूढ़े मंत्री के घर पर पहुँच गए। राजा के अचानक वहाँ पहुँचने पर मंत्री को बड़ा आश्चर्य हुआ। उनका अच्छी तरह से स्वागत-सत्कार कर लेने के बाद मंत्री ने राजा से उनके आने का कारण पुछा?

सम्राट ने कहा – “महाशय! मैंने आपके परिवार की एकता और मिलनसारिता की अनेक कहानियाँ सुनी हैं। क्या आप मुझे वह रहस्य बताने की कृपा करेंगे, जिसके कारण आपका इतना बड़ा परिवार सुखमय और प्रेमपूर्वक जीवन जी रहा है? क्या कारण है कि आप लोगों में कभी कोई मनमुटाव नहीं हुआ? मुझे बड़ा आश्चर्य है कि इतने बड़े कुटुंब के होने के बावजूद अभी तक कोई विवाद सुनने में नहीं आया।

अपनी अधिक आयु के कारण ओ-चो-सान ज्यादा देर तक बातें नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने पास ही खड़े अपने पौत्र से कोई चीज़ लाने का इशारा किया। कुछ ही देर में उनका पौत्र कलम और कागज़ ले आया। उन चीज़ों के आ जाने पर बूढ़े मंत्री ने अपने कांपते हाथों से कागज पर कुछ लिखने का प्रयास किया, लेकिन कलम हाथ से छुटकर नीचे गिर गयी।

उन्होंने झुककर कलम उठाई और कोई दस शब्द लिखकर वह कागज सम्राट की ओर बढ़ा दिया। सम्राट ने उत्सुकता से उस कागज को ध्यान से पढ़ा, तो वह आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने सोचा था कि उन्हें कुछ महत्वपूर्ण बातें जानने को मिलेंगी, पर कागज में सिर्फ इस एक ही शब्द को दस बार लिखा गया था – सहनशीलता, सहनशीलता, सहनशीलता……..

सम्राट को आश्चर्य में डूबे देखकर, ओ-चो-सान ने अपनी काँपती और धीमी आवाज़ में कहा, “महाराज! मेरे परिवार के सुखमय जीवन, आपसी सौहार्द्र और स्नेह का रहस्य बस इसी एक शब्द में समाया हुआ है। ‘सहनशीलता’ का यह महामंत्र ही हमारे बीच एकता और अखंडता का धागा अब तक पिरोये हुए है। वास्तव में सहनशीलता या धैर्य ही जीवन में सभी सुख, शान्ति और स्नेहपूर्ण संबंधों का आधार है।

कलह-क्लेश का बीज तभी जड़ जमा पाता है, जब उसे फलने-फूलने के लिए वैसा ही वातावरण मिले। एक पक्ष चाहे वह कितना भी उत्तेजित और क्रुद्ध क्यों न हो, आपकी सहनशीलता के सामने निश्चय ही शांत पड जायेगा। सहनशीलता के इस महामंत्र को जितनी भी बार दुहराया जाय, उतना ही कम है।

“किसी मनुष्य के जीवन में खुशी, भावनाओं के आवेगों की अनुपस्थिति में नहीं, बल्कि उन पर पूर्ण नियंत्रण करने में है और यह क्षमता ही सहनशीलता है।”
– लार्ड टेनिसन

 

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