Pandit Madan Mohan Malaviya Story in Hindi

 

“छोटे कार्यों के लिये अपना सर्वश्रेष्ठ देने से मत डरिये। हर बार जब आप उनमे से एक को जीतते हैं तो यह आपको और मजबूत बना देते है। यदि आप छोटे कामों को अच्छी तरह से करेंगे, तो बड़े काम अपना ध्यान स्वयं ही रख लेंगे और आपके महान बनने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

Pandit Madan Mohan Malviya Story in Hindi

बीमारी से परेशान एक आवारा कुत्ता काशी की एक गली में रास्ते पर बीचों-बीच बैठा था। श्वानों की आपसी लड़ाई के कारण उसके शरीर में जगह-जगह जख्म हो गये थे, जिनमे सडन के कारण कीड़े पड़ चुके थे। उन कीड़ों के काटने के कारण वह बेचैन हुआ चिल्ला रहा था। उसकी वीभत्स दशा देखकर सभी राहगीर और आस-पड़ोस के लोग उससे बचकर निकल रहे थे, फिर उसकी मदद करने की बात तो दूर ही ठहरी। तभी उधर से 10-12 वर्ष की आयु का एक लड़का गुजरा।

जहाँ दूसरे लोग उस कुत्ते से डर रहे थे और उसकी हालत देखकर नाक-भौं सिकोड़ रहे थे, वहीँ वह लड़का बड़ी ही सहजता से उस कुत्ते के समीप चला गया और उसके शरीर पर हाथ फेरने लगा। कुत्ते ने उसे काटा तो नहीं, पर लड़के के ऐसा करने पर वह भौंकने और बडबडाने जरुर लगा था। हालाँकि उसके ऐसा करने की वजह वह लड़का नहीं, बल्कि उसकी बीमारी से होने वाला कष्ट था। वह बालक उस श्वान की हालत देखकर समझ गया कि उसे चिकित्सा की आवश्यकता है।

वह तुरंत वहां से उठा और थोड़ी ही दूर पर स्थित एक वैद्य की दुकान पर गया। वहाँ से वह आवश्यक दवाइयाँ लेकर लौटा और उसे कुत्ते के शरीर पर लगाने लगा। दवाई लगाने से कीड़े कुलबुलाने लगे जिससे कुत्ता चीखने-चिल्लाने लगा, लेकिन लड़के ने कुत्ते को नहीं छोड़ा। उसे ऐसा करते देख लोग जमा हो गये और उससे कहने लगे – “अरे बच्चे! कुत्ते को छोड़ दो, नहीं तो यह तुम्हे काट लेगा। यह तो एक दिन मर ही जायेगा फिर इसके लिये खुद को खतरे में डालने की क्या जरुरत है?”

उस बालक ने उन लोगों की बात को अनसुना कर दिया और अपने काम में लगा रहा। इस दौरान वह कुत्ता भी उस पर भौंकता रहा, लेकिन उस बालक ने श्वान को तभी छोड़ा जब उसके घावों पर अच्छी तरह से दवाई लग गयी। इसी तरह वह बालक हर रोज आता और उस कुत्ते के घावों पर दवाई लगा जाता। यह क्रम तीन-चार दिन तक चला। थोड़े दिन पश्चात ही उस श्वान के घाव भरने शुरू हो गये और वह अच्छा हो गया।

कौन जाने उस कुत्ते के अच्छे होने के पीछे केवल दवाईयों का हाथ था या फिर उस निर्भीक बालक के स्नेहिल व्यवहार और आत्मीयता की भावना का योगदान। हम तो केवल इतना ही कहना चाहते हैं कि महान व्यक्तियों का बचपन भी उनके समूचे जीवन की तरह असाधारण ही होता है, अन्यथा कौन क्षुद्र जीवों के लिये इतना बड़प्पन और सहृदयता दिखाता है। दया, साहस और निर्भीकता की मूर्ति यह बालक और कोई नहीं, बल्कि स्वयं महान मदनमोहन मालवीय ही थे।

जो एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, धार्मिक आचार्य और प्रतिष्ठित वकील के रूप में पूरे भारत में विख्यात थे। जिन्हें स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने, उनकी करुणा, प्रतिबद्धता, विनम्रता और पर-दुःख कातरता की भावना से प्रभावित होकर “महामना” की उपाधि से अलंकृत किया था। “सुप्रसिद्ध बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी” के संस्थापक मालवीय जी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सर्वमान्य पुरोधा थे जिनके विचारों का महात्मा गाँधी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

“साहस सभी सद्गुणों में सबसे बढ़कर है, क्योंकि यदि आपमें साहस नहीं है, तो आपको दूसरे किसी भी सद्गुण का उपयोग करने का अवसर नहीं मिल सकेगा।”
– सैमउल जॉनसन

 

Comments: आशा है यह कहानी आपको पसंद आयी होगी। कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव देकर हमें यह बताने का कष्ट करें कि जीवनसूत्र को और भी ज्यादा बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? आपके सुझाव इस वेबसाईट को और भी अधिक उद्देश्यपूर्ण और सफल बनाने में सहायक होंगे। एक उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की शुभकामनाओं के साथ!

प्रिय मित्र, उम्मीद है आपको आर्टिकल काफी अच्छा लगा होगा। हमने इस लेख को लिखने में अपना काफी वक्त लगाया है। कितना अच्छा हो अगर आप भी अपना थोडा सा सहयोग हमें दें और इस लेख को सोशल मिडिया पर शेयर करें। हमें बस आपके दो मिनट चाहियें। उम्मीद है आप इंकार नहीं करेंगे।