Short Moral Story in Hindi for Class 10: Social Responsibility

 

“हमें उसी उदारता से देना चाहिये जैसे हमें मिला है, प्रसन्नता से, शीघ्रता से और बिना किसी हिचकिचाहट के; क्योंकि उस लाभ में कोई अनुग्रह नहीं है, जो उँगलियों तक ही सीमित रह जाय।”
– सेनेका

Short Moral Story in Hindi for Class 10

यह कहानी अमेरिका के प्रख्यात व्यक्ति ला गार्डिया (La Gardia) के जीवन से संबंधित है। बात उन दिनों की है जब वह न्यूयार्क के मेयर थे, उस समय उनके पास न्यायाधीश का अतिरिक्त चार्ज भी था। एक दिन उनकी अदालत में एक विचित्र मामला आया। कुछ पुलिसवाले एक दीन-हीन दिखने वाले व्यक्ति को पकड़कर लाये जो एक स्टोर से डबलरोटी चुराने के अपराध में पकड़ा गया था।

जब ला गार्डिया ने उस मुजरिम से उसके अपराध की सत्यता के विषय में पूछा तो उसने उत्तर दिया, “हुजूर, मेरा परिवार कई दिनों से भूखा है, काम माँगने के बावजूद जब किसी ने भी मुझे काम नहीं दिया तो फिर मैंने लोगों से ही कुछ खाने को देने की याचना की, लेकिन सबने मुँह फेर लिया। आज अपने बच्चे की मरणासन्न स्थिति को देखकर मैंने रोटी चुराने का प्रयास किया था, लेकिन पकड़ा गया।”

इतना कहकर वह व्यक्ति चुप हो गया। ला गार्डिया को उस व्यक्ति की दयनीय हालत पर बड़ा अफ़सोस हुआ। पर चूँकि वह अपराध करते हुए पकड़ा गया था, इसलिये कानून के अनुसार उन्होंने उस पर दस डॉलर का जुर्माना लगाया। लेकिन जिसके पास रोटी खाने तक को पैसे न हों वह जुर्माना कहाँ से चुकायेगा।

इसलिये उन्होंने अदालत में उपस्थित हर व्यक्ति पर यह कहते हुए पचास-पचास सेंट का जुर्माना लगाया कि इस नगर में एक तंगहाल परिवार भूख से मर रहा है और लोग सिर्फ एक शानों-शौकत भरी जिंदगी जीने पर ही ध्यान दिये जा रहे हैं। लेकिन जुर्माना लगाने पर भी सिर्फ आठ ही डॉलर इकट्ठा हुए। तब ला गार्डिया ने उसमे दो डॉलर अपनी और से मिलाते हुए फैसले में लिखा –

“मेयर शहर का प्रथम नागरिक होता है, क्योंकि उस पर अन्य निवासियों की सुख-सुविधा का उत्तरदायित्व होता है और इस हद तक बेकारी और गरीबी के रहने से इस नगर का मेयर भी दण्डित होना चाहिये।” सामाजिक व्यवस्था की नींव ही इस बिंदु पर रखी गयी थी कि हर मनुष्य अपनी-अपनी रूचि के अनुसार कार्य करते हुए भी अन्य व्यक्तियों के सुख-दुःख पर दृष्टि रखेगा।

और जब आवश्यकता पड़ेगी तब वह उन्हें एक गरिमामय जीवन जीने में सहायता देगा। न्यायाधीश ला गार्डिया ने बिल्कुल उचित फैसला दिया क्योंकि जिस समाज के कुछ लोग सिर्फ अपने ही सुख-चैन के बारे में सोचें और बाकी लोगों को दुःख और कष्ट से भरा जीवन जीना पड़े, तो परोक्ष रूप से वह लोग दंड पाने योग्य ही हैं जिन्होंने केवल अपनी स्वार्थ-लिप्सा पर ध्यान दिया।

प्राचीन भारतीय वर्ण-व्यवस्था का आधार भी एक ऐसे समाज का निर्माण करना था जहाँ प्रत्येक व्यक्ति जीवन-निर्वाह के रूप में अपनी रूचि का कार्य चुनता था और दूसरा व्यक्ति एक मूल्य के आधार पर उससे सेवाएँ प्राप्त करता था। सामाजिक समरसता में कमी न आये, इसके लिये निःस्वार्थ सेवा भावना को भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था, लेकिन बाद में इस व्यवस्था का पूरा स्वरुप ही नष्ट कर दिया गया।

“केवल बाँटने से ही आप उससे और अधिक हासिल करने में समर्थ होते हैं जो पहले से ही आपके पास है।”
– जिम रॉन

 

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