Best Short Stories For Kids In Hindi: बच्चों की सर्वोत्तम कहानियाँ

 

“आपकी महानता आपकी विनम्रता और दयालुता से आँकी जाती है। एक अच्छे व्यक्ति के जीवन का सबसे शानदार हिस्सा है: प्यार और दयालुता के छोटे, अनाम और गुमनामी के गर्त में खोये हुए कार्य।”
– विलियम वर्ड्सवर्थ

 

Hindi Stories For Kids
नजरिया हमारी जिंदगी में सबसे जरुरी चीज़ है

Hindi Stories For Kids – बच्चों की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ: कहानियाँ बालकों और किशोरों को नैतिक शिक्षा देने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं। जो उन्हें शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उनकी आदतों और आचरण को परिष्कृत करके उनके व्यक्तित्व में निखार लाती हैं, उन्हें सभ्य और सुसंस्कृत बनाती है और जीवन में उन्नति के नए द्वार खोलती हैं। बच्चों के मानसिक विकास में कहानियों की भूमिका को किसी भी प्रकार से नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।

चाहे घर हो या फिर स्कूल, बच्चों की शिक्षा किसी स्थान विशेष तक सीमित नहीं है, वह हर किसी से और हर समय कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं तो फिर क्यों ना उन्हें उन सद्गुणों की शिक्षा दी जाय जो उनके सम्पूर्ण जीवन को आनंदमय बना सके। आशा है यह शानदार हिंदी कहानियाँ उन्हें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करने में सफल होंगी।

1. Animal Story In Hindi For Kids: एक कुत्ते की अनोखी दयालुता

यह घटना बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री चंद्रशेखर सेन के जीवन से सम्बंधित है। उनके पास स्पैनियल जाति का एक जापानी कुत्ता था, जिसका नाम मिका था। सन 1899 में उन्हें एक महत्वपूर्ण कार्य से बिहार के मुंगेर जिले जाना पड़ा। अपने साथ-साथ वे मिका को भी ले गए। मिका देखने में जितना सुन्दर था उतना ही कोमल उसका स्वभाव भी था। उसका मुख्य भोजन रोटी और माँस था।

एक दिन सभी लोगों ने देखा कि जो भोजन मिका को खाने के लिए दिया गया था, उसमे से वह कुछ भोजन मुंह में लेकर कई बार थोडा-थोडा करके कहीं पर रख आया, और बचा हुआ भोजन खुद खाने लगा। दूसरे दिन भी उसने ऐसा ही किया। पता लगाने पर मालूम हुआ कि पास ही एक देशी नस्ल का कुत्ता टांग टूट जाने के कारण लंगड़ा हुआ पड़ा है। भोजन के लिए इधर-उधर घूमने की हिम्मत उसमे न थी।

इसके अलावा उस कुत्ते की आयु भी मिका की अपेक्षा ज्यादा थी। मिका इस बूढ़े और लंगड़े कुत्ते पर दया करके प्रतिदिन अपने भोजन में से कुछ भाग ले जाकर उसे दे आता था और उसके पेट की भूख शांत करता था तथा अपने आप आधे भोजन में ही संतुष्ट रहता था। दस-बारह दिन बाद टांग सही प्रकार से ठीक हो जाने पर जब वह कुत्ता कहीं चला गया, तो मिका ने भी उसे रोटी-मांस पहुँचाना बंद कर दिया।

सेन महाशय कुछ समय बाद फैजाबाद चले गए। मिका वहां दो वर्ष तक जीवित रहा। वे कहते थे, किसी व्यक्ति ने एक दिन उसे न जाने क्या खिला दिया, उसी दिन से वह बीमार रहने लगा और सन 1903 में मर गया। उस देशी कुत्ते ने मिका के उपकार को याद करके किस प्रकार उसके प्रति कृतज्ञता जताई थी, यह हम लोग नहीं जान सकते।

किन्तु मिका उसे दूसरी जाति का समझ घृणा न करके, जो उसकी विपत्ति का सहारा हुआ था, अपने भोजन का एक अंश देकर जो उस निःसहाय को मौत के मुंह से बचाया था, भूख से मरते हुए को दिन पर दिन आहार देकर और आप थोडा ही खाकर संतुष्ट रहता था, इससे वह अनेक स्वार्थी मनुष्यों को शिक्षा दे सकेगा, इसमें संदेह नहीं। कुत्ता होने से ही क्या कुछ बिगड़ जाता है? उसकी उदारता और दयालुता के आगे मनुष्यों को भी मस्तक झुकाना पड़ेगा।

(साभार: हिंदी पुस्तक एजेंसी)

 

2. Hindi Story on Attitude For Kids: नजरिये पर हिंदी कहानी

कुँए के मेंढक मत बनिये

स्वामी रामकृष्ण परमहंस अक्सर अपने शिष्यों के बीच इस प्रसंग को सुनाया करते थे, जो मनुष्य के सीमित दृष्टिकोण को उजागर करता है। एक दिन एक शिष्य खिन्न मुद्रा में दक्षिणेश्वर के काली मंदिर मे श्रीरामकृष्ण के पास पहुँचा। उसके हाथ में एक पत्र था जिसमे दावा किया गया था कि केवल उनका ही धर्म सच्चा है और बाकी दूसरे सभी धर्म झूठे हैं। उस शिष्य ने स्वामीजी से पूछा, “गुरूदेव कैसे निर्णय किया जाय कि कौन सा धर्म ठीक है?

परमहंसजी ने कहा, देखो एक कुँए मे एक मेंढक रहता था। एक बार ज्यादा बरसात होने पर उसमें कहीं से एक समुंदर मे रहने वाला मेंढक आ गया। जब कुँए मे रहने वाले मेंढक की मुलाकात सागर मे रहने वाले मेंढक से हुई, तो उसने पूछा – “कहो भाई, तुम कहॉ से आये हो?” उसने जवाब दिया – समुंदर से। यह सुनकर कॅुए का मेंढक शेखी बघारता हुआ बोला – “तुम नही जानते होंगे कि यह कुँआ कितना बडा है, पर मै इसकी लंबाई, चौडाई और गहराई सबको जानता हूँ।”

यह सुनकर समुंदर का मेंढक मन ही मन हॅसा। उसने पूछा – “क्या तुम सागर की लंबाई, चौडाई से परिचित हो?” कुँए के मेंढक का जवाब था – “क्यों नही, यह समुंदर होता ही कितना बडा है? कुँए की लंबाई और चौडाई मेरी दो छलॉगों के बराबर है, तो सागर की ज्यादा से ज्यादा पॉच छलॉगों के बराबर होगी।” यह कहकर कुँए के मेंढक ने कई छलॉगे लगाई और बोला – “क्या इतना बडा होता है तुम्हारा समुंदर?”

समुंदर का मेंढक बोला- नही और ज्यादा बडा। फिर इस तरह सागर का मेंढक बताता गया और कुँए का मेंढक छलॉगें मारता हुआ उसे समझने की कोशिश करता रहा। जब वह थक गया तब समुंदर वाले मेंढक ने कहा –

“भैया! तुम्हारी दुनिया इस छोटे से कुँए तक ही सीमित रही है, इसलिए अथाह सागर की लंबाई, चौडाई और गहराई की कल्पना करना भी तुम्हारे लिए असंभव ही है। इस कुँए जैसे अनगिनत कुँए भी सागर के आकार की बराबरी नही कर सकते। मै अनेकों वर्षो तक सागर मे रहने के बावजूद उसका आकार नही बता सकता।”

स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ने कथा सुनाते हुए कहा, “सामान्य मनुष्य का दृष्टिकोण भी इसी स्तर का होता है। वह अपनी ही परिधि मे सिमटा रहता है और अपने सीमित दृष्टिकोण को सबसे विस्तृत समझकर, ज्ञान के अनन्त और अगाध समंदर को छोटी सी अहमयुक्त बुद्धि से नापना चाहता है।”

आज अलग-अलग मतों व विचारधाराओं के लोग, अपने अपने मत व विचार को ही श्रेष्ठ बताने के दुराग्रह मे जी रहे हैं। जो यह दावा करता है कि उसका ही मत श्रेष्ठ है और बाकी सब निम्न, वह कॅुए का मेंढक ही है। याद रखिये आपकी कामयाबी आपके नजरिये पर निर्भर करती है और एक संकुचित द्रष्टिकोण उन्नति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।

स्वयं को ही श्रेष्ठ मानने वाला व्यक्ति, किसी भी क्षेत्र की गहनता का अनुभव नहीं कर सकता, न ही वह धर्म और ज्ञान की सागर जैसी गहराई को नाप सकता है। अधिकांश मनुष्यों की हालत उसी कुँए के मेंढक जैसी होती है, जो न तो वास्तविकता को स्वीकार करना चाहते हैं और न ही अपने अस्तित्व को विस्तार देना चाहते हैं। किसी ने सच ही कहा है जिंदगी बदलनी हो तो अपना नजरिया बदलिये।

Moral of Hindi Story: द्रष्टिकोण की कमजोरी, चरित्र की कमजोरी बन जाती है।

 

3. Hindi Story on Bad Company For Kids: संगति पर हिंदी कहानी

बुरी संगति का फल

कुछ दिनों से रामनगर में रोज एक विचित्र घटना घट रही थी। न जाने कहाँ से रात में कोई चोर आता और खेत में खड़ी फसलों को चौपट कर जाता। इस बार गेहूँ की अच्छी पैदावार हुई थी। सबने सोचा था कि इस बार तो उनके जीवन में खुशहाली और सम्पन्नता अवश्य आ जायेगी, पर जब सुबह उठकर अपने खेतों पर जाते तो देखते कि खेत में खड़ी फसल का एक बड़ा हिस्सा ख़त्म हो चुका होता था। इस अदभुत चोर का पता लगाने के लिये सबने मिलकर एक युक्ति निकाली।

बारी-बारी से दो लोगों को खेतों की चौकसी करने पर लगा दिया गया। दिन छिपते ही अचानक कबूतरों का एक बड़ा झुण्ड आया और गेंहूँ की बालियाँ तोड़-तोड़कर अनाज खाने लगा। थोड़ी ही देर में उन्होंने खेतों में खड़ी फसल का एक बड़ा हिस्सा खा डाला और फिर उड़कर चले गये। पहरे पर डटे लोगों ने इसकी सूचना दूसरे किसानों को भी दी।

काफी विचार-विमर्श करने के बाद निश्चय किया गया कि खेतों में पुतले खड़े कर दिये जाँय, जिससे कबूतर खेत में घुसने की हिम्मत ही न कर सकें। अगले ही दिन सभी किसानों ने अपने-अपने खेतों में पुतले खड़े कर दिये। पर यह क्या? अगले दिन खेत पर जाकर देखा तो पता चला कि पुतले खड़े करने से कोई फर्क नहीं पड़ा था। कबूतरों ने निःशंक होकर खेत में खड़ी फसल उजाड़ डाली थी।

सभी दुखी थे और परेशान भी कि आखिर अब क्या उपाय किया जाय? अकस्मात उनमे से एक व्यक्ति को एक अनोखी युक्ति सूझी। उसी दिन सभी लोगों ने मिलकर एक खाली खेत में जाल डाल दिया और उस पर अनाज के दाने बिखेर दिये। सभी लोग पेड़ों की झुरमुट में छिपकर कबूतरों के आने का इंतजार करने लगे।

उड़ते हुए कबूतरों की नजर जब खुले खेतों में पड़े अनाज के दानों पर पड़ी तो वे अपना मोह न संवरण कर सके, और आव देखा न ताव तुरंत ही खेत में पड़े दानों पर टूट पड़े। जैसे ही उन्होंने अनाज के दाने चुगने शुरू किये वैसे ही सब के सब जाल में फँस गये। सभी किसान जाल में फंसे कबूतरों को देखकर बहुत खुश हुए।

और एक दुसरे से कहने लगे, “इन दुष्टों ने हमारी सारी फसल उजाड़ डाली, हमारा बहुत नुकसान कर दिया। अब हम भी इन्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे।” जब वे सब उन कबूतरों को मारने की योजना बना रहे थे तो तभी उन्हें कहीं से एक मधुर आवाज सुनाई दी। सभी का ध्यान उस आवाज पर खिंच गया। देखा तो एक तोता भी जाल में फँसा छटपटा रहा था।

शायद वह भी कबूतरों के साथ दाने चुगने के लोभ में आ गया था पर अब प्राण बचाने को चिल्ला रहा था। सभी किसान उसके लालच को देखकर हँसने लगे और कहने लगे, “अरे लोभी, आज तू भी इन कबूतरों के कारण मरेगा। अगर तू इन गलत कबूतरों की संगति में न पड़ता तो आज इस तरह न मरता।”

इतना कहकर उन्होंने अपने शिकारी कुत्तों को कबूतरों के झुण्ड के ऊपर छोड़ दिया। देखते ही देखते कुत्ते उन कबूतरों पर टूट पड़े और एक-एक को मारकर चट कर गए। वह तोता भी न बच सका। सयाने लोग सच ही कहते हैं, कुसंग का फल तो भोगना ही पड़ता है।

Moral of Hindi Story: बुरे लोगों की संगति में रहने के बजाय, बदनसीबी में दिन काटना ज्यादा अच्छा है। क्योंकि दुर्जनों का संग व्यक्ति के समूल नाश का कारण बनता है।

 

4. Hindi Story on Truth & Devil For Kids: सत्य पर हिंदी कहानी

सत्य, सुख और शैतान

एक बार एक व्यक्ति ने प्रसिद्द लेखक खलील जिब्रान से पूछा कि आज समाज में हिंसा, अनैतिकता और दुष्टता आखिर क्यों बढ़ते चले जा रहे हैं और अच्छाई लगातार कम होती जा रही है? जिब्रान ने बहुत ही शांत स्वर में जवाब देते हुए कहा, “देखों, जब भगवान ने इंसान को दुनिया में भेजा था तो उसने उसके दोनों हाथों में एक-एक घड़ा दिया था। जिसमे एक घड़े में सच भरा था और दूसरे में सुख भरा हुआ था।

जब इंसान स्वर्ग से धरती पर आने लगा तो भगवान ने इंसान को चेताते हुए कहा, “देखों यह बात हमेशा याद रखना कि तुम्हारे दायें हाथ में सत्य का घड़ा है और बायें हाथ में सुख का। सत्य को सदा सुरक्षित रखना और सुख को समझदारी से खर्च करना। सत्य और शील का पालन करना तुम्हारे लिये हमेशा सुखदायक रहेगा।”

“ध्यान रखना सुख से विषय-वासनाओं की आग और तेज होगी और जगत में माया (अविद्या) का राज्य है इसलिये सुख की इच्छा को सीमित रखना। तुमसे थोड़ी भी भूल होने पर शैतान तुम्हे अपने फंदे में जकड लेगा। वह कदम-कदम पर तुमसे सत्य का घड़ा छीनने की कोशिश करेगा, लेकिन तुम्हे हर हाल में अपनी जान देकर भी सत्य की रक्षा करनी है।”

ईश्वर से विदा लेकर मनुष्य अपने रास्ते पर बढ़ चला। चलते-चलते जब वह थक गया तो एक पेड़ की छाँव में बैठ गया। थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी। इधर जबसे इंसान भगवान के पास से चला तो वहीँ से शैतान उसके पीछे लग गया। उसने चुपचाप सारी बातें सुन ली थीं। इंसान को सोते देखकर उसने चुपचाप दाएं हाथ का घड़ा बायें हाथ में और बाएँ हाथ का घड़ा दाहिने हाथ में रख दिया और गायब हो गया।

इस बात का इंसान को कुछ भी न पता चल सका और वह सच को बेकार समझकर दिन-रात लुटाने लगा। थोड़े ही समय में सत्य और शील का घड़ा पूरी तरह खाली हो गया। अब उसके पास केवल सांसारिक सुख और सुविधाएँ ही रह गयीं। यही कारण है कि आज दुनिया में असत्य, कष्ट और क्रूरता का ही बोलबाला है। सत्य और शील ढूँढने से भी नहीं मिलते।

फिर खलील जिब्रान ने उस व्यक्ति से कहा, “जो आदमी धर्म, सत्य और शील को छोड़ देता है, उससे केवल मनुष्यता ही दूर नहीं चली जाती, बल्कि आनंद और शांति भी दूर चले जाते हैं। अपने लिये ज्यादा से ज्यादा सुख-सुविधाओं का जखीरा जुटाने में वह दूसरों की जिंदगियों तक को दाँव पर लगा देता है।

उन्हें सताने और कष्ट देने में सुख महसूस करता है। जब तक मनुष्य सत्य और शील का आश्रय लेकर अपने वास्तविक स्वरुप को नहीं जान लेता, तब तक न तो वह ही कभी सुख से रह पायेगा और न ही संसार से दुःख और अत्याचार का विनाश हो सकेगा।

Moral of Hindi Story: सद्ज्ञान और सत्कर्म – यह दो ईश्वरप्रदत्त पंख हैं, जिनके सहारे हम स्वर्ग तक उड़ सकते हैं।

 

5. Hindi Story About Happiness For Kids: सुख पर हिंदी कहानी

अपनी इच्छाएँ सीमित कीजिये

एपिरस के सम्राट पाईरस के दिल में साहस का तूफ़ान उमड़ रहा था। संसार को जीतने की इच्छा से जब वह सेना सजाकर चला, तो उसके बुद्धिमान मित्र साइनेस ने पूछा, “महाराज आप यह यात्रा किसलिए कर रहे हैं?”

“रोम को जीतने के लिए”, पाईरस ने गरजते हुए कहा, “मै शूरवीरों की इस नगरी को जीतूँगा।”

साइनेस के होठों पर एक मंद मुस्कान फ़ैल गयी और उसने पूछा “रोम को जीतने के बाद आप क्या करेंगे?”

“उसके बाद मै सारे इटली को अपनी सेना के बल पर रौंद डालूँगा,” पाईरस ने तलवार को लहराते हुए कहा।

“और उसके बाद आप क्या करेंगे?”

“सिसली मेरी अगली मंजिल होगी और उसे जीतना आसान होगा।”

“और अगर आप सिसली को भी जीत लेते हैं तो उसके बाद क्या करेंगे?” साइनेस ने पूछा।

“तब हम मेसेडोनिया, अफ्रीका और सीरिया पर जीत हासिल करेंगे!”

“अपनी इच्छानुसार सारे देशों को जीतने के बाद आप क्या करेंगे, सम्राट?”

“तब मै आराम से बैठ जाऊंगा और शान्तिपूर्वक प्रजा का पालन करूँगा।” – पाईरस ने जवाब दिया।

“अगर आप सुख-शांति से ही रहना चाहते हैं, तो क्या आप आज आराम से नहीं बैठे हैं।” – साइनेस ने गंभीरता से जवाब दिया। “यदि शांतिपूर्वक जीवन बिताना ही आपका अंतिम ध्येय है, तो आप क्यों युद्ध छेड़कर लोगों का खून बहाना चाहते हैं? अगर आप लोभ का त्याग करेंगे, तो हमेशा खुद को सुखी महसूस करेंगे और फिर आपको किसी दूसरे देश को जीतने की इच्छा न रहेगी।”

Moral of Hindi Story: वास्तव में अनियंत्रित और विवेकहीन महत्वाकांक्षा ही अशांति और दुःख की जड़ है। ख़ुशी मानव जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, पर सुख संतोष से प्राप्त होता है, इच्छाओं के पीछे भागने से नहीं।

 

6. Hindi Story on Spirituality For Kids: अध्यात्म पर हिंदी कहानी

संसारी और आत्मज्ञानी में अंतर

महान सूफी संत शेख फरीद एक बार एक गांव में ठहरे हुए थे। प्रतिदिन अनेकों लोग उनके दर्शनों के लिए आते और अपनी जिज्ञासा का समाधान कराते। एक दिन एक आदमी ने उनसे एक सवाल किया, “शेख साहब! हमने सुना है कि जब ईसा मसीह को सूली दी जा रही थी, तो उनके चेहरे पर खुशी का नूर चमक रहा था, उन्हें सूली पर लटकाए जाने का जरा भी गम न था। यहाँ तक कि उन्होंने खुद पर जुल्म करने वाले शैतानो पर भी खुदा से रहम करने की अपील की थी।

उस शख्स ने आगे कहा, “हे खुदाबन्द फरीद! हमने यह भी सुना है कि जब मंसूर के हाथ-पैर काटे गए, उनकी आँखे निकलवा दी गईं, तो उसने आह तक न की और सब गमो-सितम हँसते-हँसते सहन कर लिया। क्या ऐसा भी कभी संभव हो सकता है कि जिस इंसान पर इतना जुल्म किया जाय वो आह तक न करे? मुझे तो इन सब बातों पर जरा भी यकीन नहीं होता।

शेख फरीद ने उसके सवालों को चुपचाप सुन लिया और अपने पास रखे एक कच्चे नारियल को उसे देते हुए कहा कि जरा इसे फोड़ो। उस व्यक्ति ने सोचा कि शेख शायद सवाल का जवाब नहीं दे पा रहें हैं, इसलिए वे उसका ध्यान दूसरी तरफ मोड़ना चाह रहे हैं। लेकिन वह आदमी भी पूरा हठधर्मी था। वह बोला, “शेख साहब आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?”

संत फरीद ने कहा, “पहले इस नारियल को तो फोड़ो, लेकिन ध्यान रखना कि नारियल की गरी पूरी तरह से अलग हो जाए।” यह कैसे हो सकता हैं शेख साहब! वह व्यक्ति बोला, “यह नारियल तो कच्चा है। इसकी गरी और खोल दोनों आपस में मजबूती से जुड़े हुए हैं। इसलिए गरी को खोल से अलग करके कैसे बाहर निकाला जा सकता है?”

तब फरीद साहब ने एक सूखा नारियल हाथ में लिया और उस व्यक्ति को देते हुए कहा, “ठीक है तो अब इसे फोड़कर इसकी गरी को बाहर निकालो।” तब उस व्यक्ति ने नारियल फोड़कर उसकी गरी बाहर निकालकर रख दी। शेख फरीद ने उससे सवाल किया- “तो अब तुम यह बताओं कि इसकी गरी कैसे बाहर निकल आई?”

उस आदमी ने जवाब दिया, “यह सूखी थी इसलिए खोल से अलग थी, इसी कारण यह बाहर निकल आई।” शेख फरीद ने कहा, “तुम्हारे सवाल का भी यही जवाब है। आम लोगों का शरीर खोल से जुडा होता है। इसलिए जब उनके शरीर को चोट पहुँचती हैं तो उनकी अंतरात्मा को भी चोट पहुँचती है, लेकिन ईसा और मंसूर जैसे पहुँचे हुए खुदा के बन्दे अपने शरीर को खोल से अलग रखते हैं।

इस वजह से बेइन्तहां जुल्म करने पर भी उन्हें न तो दर्द हुआ और न ही उसका कुछ रंज हुआ। लेकिन ऐसा लगता है कि तुम अभी ठीक तरह से पके नहीं हो। इसी वजह से तुम्हारे मन में यह ख्याल आया कि आखिर उन पर इतने जुल्मो-सितम का कोई असर क्यों नहीं हुआ? दुनियादारी में रचे-पचे लोगों का अंतरात्मा इतना कमज़ोर हो जाता है कि वे जरा सा भी दुःख बर्दाश्त नहीं कर सकते।

Moral of Hindi Story: अपने आप को अहं की चाहरदीवारी से मुक्त करने का प्रयास करो, फिर तुम भी उनके जैसे ही निर्लिप्त बन सकोगे और दुनिया के सारे गम मिलकर भी तुम पर कोई असर न डाल सकेंगे।

 

7. Zen Story In Hindi For Kids: हिंदी जेन कहानी

स्वर्ग और नरक का रास्ता

जापानी संत हाकुइन एक मशहूर जेन मास्टर थे। उनके आत्मसंयम, त्याग और तितिक्षा के कारण न केवल वहाँ की सारी जनता, बल्कि सम्राट तक उनका सम्मान करते थे। एक बार राजा का सेनापति उनका दर्शन करने आया। कुशल-क्षेम के पश्चात उसने संत से एक विचित्र प्रश्न किया। उसने पूछा, “महाराज, यह बताइये कि क्या स्वर्ग और नरक का अस्तित्व वास्तव में है, या वह केवल कल्पना मात्र और लोगों को डराने का ही एक साधन है?”

मास्टर हाकुइन पहले तो एकटक उसकी ओर देखते रहे फिर उन्होंने उससे प्रश्न किया, “अच्छा! पहले यह बताओ कि तुम क्या काम करते हो? सेनापति ने गर्व भरे स्वर में उत्तर दिया, “मै एक सेनापति हूँ।” संत हाकुइन से शांत स्वर में कहा, “क्या कहा, तुम एक सेनापति हो, पर शक्ल से तो तुम किसी भिखारी के जैसे लगते हो। जिसने भी तुम्हे सेनापति बनाया है वह परले दर्जे का बेवकूफ है।”

यह सुनते ही उस सेनापति की त्योरी चढ़ गयी। उग्र क्रोध में उसका हाथ सीधे तलवार की मूठ पर चला गया। उसे तलवार लेने को उद्धत देख भी संत विचलित नहीं हुए, बल्कि उसे बोध कराने के उद्देश्य से बोले, “अच्छा! तो तुम्हारे पास तलवार भी है, पर इसकी धार तो पैनी नहीं मालूम पड़ती फिर इससे मेरा सिर कैसे उड़ाओगे? तुम्हे कोई दूसरी तलवार लानी चाहिये।”

हाकुइन के इन शब्दों ने आग में घी का काम किया। सेनापति का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने झट से तलवार म्यान से बाहर निकाल ली। तभी संत प्रेम से बोले, “लो! अब नरक के द्वार खुल गये।” उनकी वाणी के अपूर्व तेज और निर्भीकता को देखकर वह नतमस्तक हो गया, उनकी बात पूरी होने से पहले ही उसने अपनी तलवार वापस म्यान में रख ली।

क्रोध की वह प्रचंड अग्नि जो अपमान से एकदम भड़क उठी थी, अब विवेक के शीतल जल से शांत हो गयी थी। सेनापति के तलवार म्यान में रखते ही संत हाकुइन बोले, “लो! अब स्वर्ग के द्वार खुल गये।” मास्टर हाकुइन के शब्दों में छिपा ज्वलंत सत्य उस सेनापति को अब समझ में आ चुका था। वास्तव में व्यक्ति जिस क्षण क्रोध की अवस्था में होता है, उस समय वह नारकीय स्थिति में ही होता है।

क्योंकि क्रोध में बुद्धि, विवेक कुंठित हो जाते हैं, सोचने-समझने की क्षमता नहीं रहती, कर्त्तव्य-अकर्तव्य का ध्यान नहीं रहता। बस एक प्रचंड अग्नि, हमारे संपूर्ण अस्तित्व को जलाने लगती है। क्रोध में हम दूसरों का जितना अहित करते हैं, उससे कहीं अधिक अहित स्वयं का कर बैठते हैं। यह एक नाग की तरह हमें ही डसता रहता है।

जिस समय हम क्रोध के राक्षस से पीछा छुडा लेते हैं, वही समय हमारे लिये परम शांतिदायक बन जाता है। और स्वर्ग आखिर है भी क्या? एक ऐसा स्थान जहाँ दुःख का कोई नामो-निशान नहीं, जो सदैव आनंदमय है। वास्तव में हमारा मन ही हमारे लिये स्वर्ग और नरक का निर्माण करता है।

Moral of Hindi Story: स्वर्ग और नरक और कुछ नहीं, बल्कि हमारी मनःस्थिति का ही दूसरा नाम हैं।

 

8. Funny Hindi Story on Wisdom For Kids: बुद्धिमानी पर हिंदी कहानी

यह कहानी जातक कथा से ली गयी है। जातक कथाओं में भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों का विवरण है। एक बार भगवान बुद्ध कोशल राज्य में भ्रमण कर रहे थे। एक गरीब की कुटिया पर पहुँचने पर गृहस्वामी ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन के पश्चात भगवान कुटिया के पास वाले बगीचे में टहलने लगे। अचानक उनकी नज़र ऐसे स्थान पर पड़ी, जहाँ न तो कोई पेड़ था और न किसी तरह की घास ही उगी थी।

पूछने पर माली ने बताया कि जब वृक्ष लगाये जा रहे थे, तब एक मूर्ख बालक ने पेड़ों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ें नाप-नाप कर पानी दिया था, जिससे सब पेड़ खत्म हो गए थे। भगवान ने हँसते हुए कहा, “मूर्ख लड़के ने पहली बार ही बाग़ नहीं उजाड़ा है। इसने पूर्वजन्म में भी ऐसा ही किया था।” जिज्ञासा प्रकट करने पर उन्होंने उसके पूर्वजन्म की कथा सुनाई।

काशी के राजा ब्रह्मादत्त के राज्य में एक बार नगर में बड़ा उत्सव हो रहा था। राजा के माली की भी इच्छा हुई कि वह भी नगर में जाकर उत्सव देखे, लेकिन उस पर पेड़ों को पानी देने का उत्तरदायित्व था। माली दुर्लभ और सुन्दर पेड़ों तथा लताओं से भरे बगीचे की रोज देखभाल किया करता था। उसके न रहने पर बगीचे और पेड़-पौधों की देखभाल कौन करेगा, इसका विचार करने पर उसे अपने बन्दर मित्र का ध्यान हो आया।

मूर्ख का उपकार भी दुःख देता है

वह बन्दर बगीचे में रहने वाले बंदरों का सरदार था। किसी तरह एक बार माली की बंदरों के सरदार से दोस्ती हो गयी थी। उसने बंदरों के सरदार के सामने अपनी समस्या रखी और उससे कहा, “मित्र क्या तुम एक दिन के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर इस बगीचे को सींच दोगे?”, मै एक जरूरी काम से बाहर जा रहा हूँ। बंदरों के सरदार ने प्रसन्नतापूर्वक यह काम करने का आश्वासन दे दिया।

जब माली चला गया, तो सरदार ने सब बंदरों को बुलाया और समझाया, “देखो दोस्तों, आज हमें एक परोपकार का काम करना है। बड़ी सावधानी और अक्लमंदी से सभी पेड़-पौधों को पानी देना है। कोई पेड़ प्यासा न रहे। जिस पेड़ को जितनी जरुरत हो, उतना ही पानी दिया जाये, लेकिन पानी बर्बाद न किया जाये। वरना पानी की परेशानी खड़ी हो जायेगी।”

बंदरों की समझ में नही आया कि पेड़-पौधों की प्यास कैसे नापी जायेगी? उन्होंने अपने सरदार से पूछा – तब उस बुद्धिमान बन्दर ने उत्तर दिया, “पेड़ जड़ों से पानी पीते हैं। किसी पेड़ की जड़ें छोटी होती हैं, तो किसी की बड़ी। अतः तुम लोग ऐसा करो कि प्रत्येक पौधे और लता को उखाड़कर उनकी जड़ों की गहराई को देख लो। जिसकी जड़ जितनी गहरी हो, उसे उतना ही पानी दो।

सरदार का आदेश पाकर, बन्दर बर्तन ले लेकर सिंचाई करने लगे। अब बन्दर तो बन्दर ही ठहरे। उन्होंने प्रत्येक पौधे को पहले उखाड़ कर उसकी जड़ें नापी और फिर उसे लगाकर उसी अंदाज़ से पानी पिलाया। जल्दी ही उन्होंने सारे छोटे-छोटे पेड़-पौधे और लताएँ उखाड डालीं। इस मेहनत के काम में बन्दर भी बिलकुल थक गए थे, पर उन्हें इस बात का संतोष था कि आज उन्होंने एक अच्छा काम किया है।

दूसरे दिन जब माली लौटकर आया और सारे बगीचे का विनाश देखा, तो सिर पीटकर गहरी सांस छोड़ते हुए कहा कि किसी ने सच ही कहा है, “मूर्ख दोस्त से समझदार दुश्मन ज्यादा अच्छा।” अकुशल और मूर्ख का उपकार भरा काम भी दुःख ही देता है। इस संसार रुपी बगीचे को भी एक अच्छा जीवन जीने लायक स्थान बनाने के लिए, अनगढ़ व्यक्तियों की नहीं, बल्कि श्रेष्ठ चिंतन से युक्त व्यक्तित्व की ही ज्यादा आवश्यकता है।

Moral of Hindi Story: उपकार करने में अकुशल व्यक्ति का उपकार भी सुखदायक नहीं होता। माली के बन्दर की तरह, मूर्ख व्यक्ति काम की हानि ही करता है।

 

9. Hindi Story About Vision For Kids: समझदारी पर हिंदी कहानी

Three Fishes Story in Hindi: तीन मछलियों की अक्लमंदी

पुराने समय की बात है, एक तालाब में तीन मछलियाँ रहती थीं। उनमे से एक का नाम था ‘एकबुद्धि’, दूसरी का ‘शतबुद्धि’ और तीसरी का ‘सहस्त्रबुद्धि’। तीनो मछलियों में अपनी-अपनी खूबियाँ थी, पर इसके साथ-साथ तीनों में पक्का याराना भी था। एक दिन तालाब पर कुछ मछुआरे आये और उसे मछलियों से भरा हुआ देखकर कहने लगे कि यहाँ पर तो बहुत ज्यादा मछलियाँ हैं, कल यही पर जाल डालेंगे। कुछ समय ठहरकर वे लोग वहाँ से चले गये।

मछुआरों की यें बातें उन तीनों मछलियों ने भी सुनी। ‘सहस्त्रबुद्धि’ ने कहा – यहीं रहने में भला है, कल ये लोग आयें, यह आवश्यक नहीं। ‘शतबुद्धि’ ने कहा – कल जब मछुआरे आयेंगे, उस समय के अनुसार निर्णय लिया जायेगा। तीसरी ‘एकबुद्धि’ बोली – भला इसी में है कि आज ही तालाब बदल दिया जाये और इतना कहकर वह दूसरे तालाब में चली गयी। अगले दिन मछुआरे आये और उन्होंने आते ही तालाब में जाल डाल दिया।

दूसरी मछलियों के साथ-साथ ‘सहस्त्रबुद्धि’ और ‘शतबुद्धि’ ये दोनों मछलियाँ भीं पकड़ी गयी। शतबुद्धि ने विपरीत परिस्थिति जानकर मरे होने का ढोंग रचा। उसे मरा हुआ समझ मछुआरों ने उसे जाल से बाहर निकाल दिया। वह उचककर गहरे पानी में तैरती हुई दूसरी तरफ चली गयी। ‘सहस्त्रबुद्धि’ पकड़ी गयी और अपनी किस्मत पर पछताती रही।

इस प्रकार दूरदर्शी, तुरंत निर्णय लेने वाले और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाले तीन तरह के लोग इस संसार में होते हैं। दूरदर्शी लोग आने वाले समय और परिस्थितियों का पहले ही अनुमान लगा लेते हैं, इसीलिए प्रायः वे मुसीबतों में नहीं फंसते और अवसरों का समझदारी से लाभ उठाते हुए जल्दी ही सफलता की बुलंदियों पर जा पहुँचते हैं। तुरंत निर्णय लेने वाले भी अक्सर मुसीबतें उठाने से बच जाते हैं, पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वाले पछताते ही रह जाते हैं।

Moral of Hindi Story: ईश्वर ने हम सभी को अनेकों विभूतियाँ प्रदान की हैं। उनमे से एक अत्यंत विकसित बुद्धि और मानवीय द्रष्टिकोण भी है। परन्तु इसका प्रयोग किस प्रकार करना है, इस बात का निर्णय उसने हम पर ही छोड़ दिया है।

 

10. Hindi Story on Duty For Kids: कर्त्तव्य पर हिंदी कहानी

सच्चे लोकसेवक का कर्तव्य कैसा हो

सूफी संतों में एक बड़े प्रसिद्ध संत हुए हैं हज़रत उमर, जिनका नाम आज भी मुस्लिम औलियों में बड़े आदर से लिया जाता है। यह घटना उस समय की है, जब वह बग़दाद के खलीफा हुआ करते थे। उन्होंने अपने राज्य के समस्त कर्मचारियों और सरदारों को सख्त हिदायतें दे रखी थीं कि जब भी कोई प्रजा अपनी फरियाद लेकर आये, तो उसका काम तुरंत ही कर दिया जाये। एक दिन इशरत नामक एक मंत्री के घर पर एक आदमी शुक्रवार के दिन आधी रात को आया।

जब उसने दरवाज़ा खटखटाया, तो मंत्री ने घर के अन्दर से ही कह दिया कि इतनी रात को वह बाहर आने में मजबूर है। मंत्री ने उससे इस बात के लिए माफी मांगी और प्रार्थना की कि वह दूसरे दिन किसी भी समय आ जाय। उस आदमी ने अगले दिन हज़रत उमर से मंत्री की शिकायत कर दी। खलीफा ने जब यह सुना, तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। उन्होंने उसी वक्त इशरत से जवाब-तलब किया।

मंत्री ने नम्रता से जवाब दिया, “हुजूर, अल्लाह गवाह है कि आज तक मैंने किसी भी व्यक्ति को मना नहीं किया था, मगर कल जुम्मे का दिन होने और अपनी मजबूरी की वजह से मुझे उसे वापस लौटाना पड़ा।” “जरा हमें भी तो पता चले, आखिरकार क्या मजबूरी थी तुम्हारी, जिसकी वजह से हमारी प्रजा को कष्ट उठाना पड़ा?” – खलीफा उमर ने कहा।

“मेरी मजबूरी को मुझ तक ही सीमित रहने दीजिये। अगर बताऊंगा, तो मेरी जिंदगी का एक ऐसा राज खुल जाएगा, जिसे मै किसी को बताना नहीं चाहता।” – इशरत ने जवाब दिया। खलीफा ने कहा – “तुम एक जिम्मेदार मंत्री हो और रिआया का ख्याल तुम्हे रखना ही चाहिए। रियासत के किसी भी मुलाजिम का राज, राज नहीं रहना चाहिये, उसे बयां करना ही चाहिये।”

खलीफा के बहुत जोर देने पर, मंत्री इशरत ने कहा- “हुजूर! हफ्ते के छह दिन मै काम में बड़ा मशरूफ रहता हूँ। केवल जुम्मे की रात को थोडा सा वक्त निकाल पाता हूँ। मेरे पास कपड़ों का केवल एक ही जोड़ा है और उसे मै जुम्मे की रात धोता हूँ। उस हालत में मै कैसे बाहर आ सकता हूँ? फिर इबादत भी करनी होती है, उसके लिए भी समय नहीं मिलता। मेरे उस समय काम न करने की वजह यही थी और यही मेरा ‘राज’ है।”

हज़रत उमर ने जब यह सुना, तो वे गदगद हो गये और उनकी आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने खुदा का शुक्रिया अदा किया कि उनकी रियासत में ऐसे भी मंत्री मौजूद हैं, जो अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते हैं। न तो वे जनता के प्रति गाफिल हैं और न ही खुदा को भूलते हैं। यहाँ तक कि सरकारी खजाने से एक पैसा तक लेना गुनाह समझते हैं।

सच्चा लोकसेवक तो वास्तव में वही है, जो स्वयं को जनता का सेवक समझकर हर समय उसकी सेवा करने के लिए तैयार रहता है। सभी शासकों को यह याद रखना चाहिये कि जिस सल्तनत में प्रजा के सुख-दुःख से कोई मतलब नहीं होता, वह विनाश के कगार पर खड़ी रहती है।

भ्रष्टाचार और पाखंड के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिये, जैसे कि आज है। वास्तव में सत्ता अपने आपमें भ्रष्ट नहीं होती है। इसे खोने के डर और कभी पूरी न हो सकने वाली लोभ की आग की वजह से ही भ्रष्टाचार पनपता है और सत्ता के चाबुक के डर से जनता भ्रष्टाचार को गले लगा लेती है।

Moral of Hindi Story: कर के रूप में प्राप्त की गयी जनता की गाढ़ी कमाई, केवल राज्य के समस्त निवासियों के कल्याण के लिए है। उन्हें एक सम्मानजनक जीवन जीने में सहायता देने के लिए है, शासकों के विलास के लिए नहीं।”

आशा है आपको यह हिंदी कहानियाँ (Hindi Stories For Kids) जरुर पसंद आयेंगी। वैसे तो यह कहानियाँ बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं, लेकिन हमें पूर्ण विश्वास है कि यह वयस्कों के लिए भी उतनी ही मददगार सिद्ध होंगी. और अधिक कहानियाँ पढने के लिए कृपया हमारे कहानी संग्रह में जायें।

“हमारी इच्छा खुद को जीतने की होनी चाहिए, दूसरों पर जय पाने की नहीं। क्योंकि खुद को जीतना ही सबसे बड़ी विजय है।”
– प्रेटो

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