Famous Mahabharata Story in Hindi
– कन्फ़्यूशियस
यह घटना उस समय की है जब दुर्योधन ने छल से पांडवों का सारा राज्य छीन लिया था और वे बेचारे अज्ञातवास के कारण वन में मारे-मारे फिर रहे थे। इसी तरह दिन बिताते हुए एक दिन जब वे प्यास के कारण बहुत शिथिल हो गए, तो युधिष्ठिर ने अपने सबसे छोटे भाई सहदेव को पानी की खोज में भेजा। लेकिन उसके बहुत देर तक भी न लौटने पर फिर उन्होंने नकुल को भेजा।
लेकिन काफी देर बाद भी जब वह नहीं आया, तो उन्होंने फिर अर्जुन को और अंत में भीम को पानी लाने के लिए भेजा। पर जब चारों भाइयों में से कोई भी वापस नहीं लौटा तो धर्मराज को बहुत चिंता हुई और फिर वे भी शीघ्रता से उनकी खोज में चल पड़े। आगे जाने पर उन्हें स्वच्छ और निर्मल जल से भरा हुआ एक जलाशय दिखाई दिया, जिसके किनारे पर उनके चारों भाई निर्जीव पड़े हुए थे।
उन्हें इस अवस्था में देखकर धर्मराज को बहुत दुःख हुआ, लेकिन फिर यह सोचकर कि शायद प्यास के कारण ही उनकी यह दशा हुई हो, वे जल लेने के लिये जलाशय में उतर गए। पर जैसे ही उन्होंने पानी लेना चाहा, एक तेज और प्रभावशाली आवाज ने उन्हें यह चेतावनी देते हुए पानी लेने से रोक दिया -“हे युधिष्ठिर! तुम भी मेरी आज्ञा के बिना जल लेने का प्रयत्न मत करो।
यदि दुस्साहस करोगे तो तुम्हारी भी वही दशा होगी जो तुम्हारे इन भाइयों की हुई है। यदि तुम जल पीना चाहते हो तो पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो।” उस आवाज को सुनकर, पर अपने सामने किसी को भी न देखकर, उन्होंने उस अद्रश्य व्यक्ति से स्वयं को प्रकट करने की प्रार्थना की।धर्मराज के अनुरोध करने पर एक भयंकर यक्ष ने स्वयं को एक पेड़ के ऊपर प्रकट किया।
उसे अपने सामने देखकर युधिष्ठिर ने उसे प्रणाम किया और उससे अपने प्रश्न पूछने के लिए कहा। फिर यक्ष ने युधिष्ठिर से जो प्रश्न पूछे वे न केवल किसी व्यक्ति के ज्ञान और उसकी विद्वत्ता की पहचान करने की उच्च कसौटी ही हैं, बल्कि धर्म, कर्तव्य, सेवा और सद्गुण की जीवन में महत्ता बताने वाले उच्च्स्तरीय सूत्र भी हैं।
कहानी को छोटा रखने के उद्देश्य से हम केवल कुछ ही प्रश्न और उनके उत्तर दे रहे हैं। विस्तृत रूप से इस कहानी को पढने के लिए इस e-book को download करें –
यक्ष ने पूछा – ऐसा कौन पुरुष है जो इन्द्रियों के विषयों को अनुभव करते हुए, श्वास लेते हुए तथा बुद्धिमान, लोक में सम्मानित और सब प्राणियों का माननीय होने पर भी वास्तव में जीवित नहीं है?
युधिष्ठिर बोले – जो देवता, अतिथि, सेवक, माता-पिता और आत्मा का पोषण नहीं करता, वह वास्तव में साँस लेने पर भी जिन्दा नहीं है।
यक्ष ने पूछा – धरती से भी भारी क्या है? आकाश से भी ऊँचा क्या है? वायु से भी तेज चलने वाला क्या है? और तिनकों से भी अधिक संख्या में क्या है?
युधिष्ठिर बोले – माता भूमि से भी ज्यादा भारी(बढ़कर) है, पिता आकाश से भी ऊँचा(महान) है, मन वायु से भी तेज चलने वाला है और चिंता तिनकों से भी बढ़कर है।
यक्ष ने पूछा – सो जाने पर पलक कौन नहीं मूँदता? उत्पन्न होने पर भी चेष्टा कौन नहीं करता? ह्रदय किसमे नहीं है? और वेग से कौन बढ़ता है?
युधिष्ठिर बोले – मछली सोने पर भी पलक नहीं मूंदती, अंडा उत्पन्न होने पर भी चेष्टा नहीं करता, पत्थर में ह्रदय नहीं है और नदी वेग से आगे बढती है।
यक्ष ने पूछा – विदेश में जाने वाले का मित्र कौन है? घर में रहने वाले का मित्र कौन है? रोगी व्यक्ति का मित्र कौन है? और मृत्यु के निकट पहुँचे व्यक्ति का मित्र कौन है?
युधिष्ठिर बोले – साथ के यात्री विदेश में जानेवाले के मित्र हैं, स्त्री घर में रहने वाले की मित्र है, चिकित्सक रोगी का मित्र है और दान मरने वाले मनुष्य का मित्र है।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग Story of Yaksha Yudhisthira in Mahabharata in Hindi: यक्ष और युधिष्ठिर संवाद
– भगवद गीता
Comments: आशा है यह कहानी आपको पसंद आयी होगी। कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव देकर हमें यह बताने का कष्ट करें कि जीवनसूत्र को और भी ज्यादा बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? आपके सुझाव इस वेबसाईट को और भी अधिक उद्देश्यपूर्ण और सफल बनाने में सहायक होंगे। एक उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की शुभकामनाओं के साथ!