Famous Self Confidence Story in Hindi
– प्रेमचंद
गैलिलो झील के किनारे भीड़ लगी हुई थी। उस दिन मौसम कुछ ठीक नहीं था। कौन जाने तूफ़ान कब आ जाय, इसलिये सभी यात्रियों में पार जाने के लिये आप-धापी मची थी। ज्यादातर लोग डरे-सहमे से नाव में बैठे थे। अभी नावें झील के बीचोबीच ही पहुँच पाई थी कि अचानक तूफ़ान आ गया। भयभीत लोगों के प्राण कंठ में आ गये। कितने ही भगवान से पार लगाने की दुआ माँगने लगे।
पर ऐसा लगता था कि जैसे तूफ़ान उनके इस कार्य से और क्रोधित हो उठा हो। तूफ़ान का वेग निरंतर बढ़ता ही जा रहा था और अब तो झील का पानी भी कुलाँचे मारने लगा था। सभी नावें बुरी तरह थरथराने लगीं। धीरे-धीरे लहरों का वेग बढ़ता चला गया और अब पानी नावों के भीतर भी आने लग गया था। सभी यात्री अनहोनी की आशंका से भीतर तक काँप उठे।
औरतें और बच्चे रोने लग गये, कोई-कोई तो अपना अंतिम समय जानकर ईश्वर को याद करने लगे। इधर मल्लाह नाव को सँभालने में ही अपनी पूरी ताकत ख़त्म किये जा रहे थे पर नावें थी कि किसी भी तरह से मचलना बंद नहीं कर रही थी।कोई भी आदमी ऐसा न था जिसके उस खौफनाक मंजर को देखकर रोंगटे न खड़े हो गये हों।
पर उस घनघोर तूफ़ान और निराशा के निविड़ अंधकार के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जो नाव के एक कोने में बिलकुल शांत सोया पड़ा था।ऐसा प्रतीत होता था जैसे उसे दुनिया-जहान की कोई खबर ही न हो। सभी की आँखें एकटक उसे ही देखें जा रही थीं। पास बैठे लोगों ने उसे झिंझोड़कर जगाया और उससे सारा माजरा कहा।
सब सुनकर उसने लोगों से कहा, “तो फिर इसमें घबराने की बात क्या है? तूफ़ान तो अक्सर आते हैं, कभी-कभी नाव भी डूब जाया करती हैं और इंसान भी मरते ही हैं। तुम लोग इतना क्यों डर रहे हो? नाव पर बैठे सभी लोग उस विचित्र आदमी की बात सुनकर सन्न रह गये। किसी के मुँह से एक शब्द न निकला।
उन्हें बहुत डरा हुआ देखकर फिर उस अलमस्त यात्री ने कहा, “दोस्तों, तुम्हे आखिर किस बात का भय है? तुम क्यों इस बात पर यकीन नहीं करते कि यह तूफ़ान थोड़ी ही देर बाद शांत पड जायेगा। यकीनन तुम लोगों ने तूफ़ान की ताकत को विश्वास की ताकत से भी ज्यादा बड़ा मान लिया है। अगर तुम्हे यकीन है तो यह तूफ़ान इसी क्षण शांत हो जायेगा।”
डरे-सहमे लोग एकटक उसका मुँह निहार रहे थे और वह अदभुत यात्री बिलकुल शांत और अविचल खडा था। सहयात्रियों पर एक तीक्ष्ण दृष्टि डालकर उसने अपनी आँखे बंद कीं और अपने अंतस में उमड़ते विश्वास के सागर में उतारकर आदेश देते हुए कहा, “शांत हो जा ऐ अल्हड तूफ़ान!” और इसी के साथ एक महान आश्चर्य घटित हुआ।
वह भीषण तूफ़ान जिसकी गर्जना से झील का पानी बल्लियों उछल रहा था और जो सभी नावों को लील जाने को बेताब था, अब बिलकुल शांत पड गया था। नावें भी बिल्कुल स्थिर हो गयी थीं। सभी लोगों की जान में जान आ गई। उनकी मुखमुद्रा से ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे कि आज उन्हें एक नया जीवन मिला हो।
और इसके साथ-साथ उनके होंठों पर झलक रही थी उस अजनबी और अदभुत मुसाफिर के प्रति श्रद्धापूर्ण कृतज्ञता, जिसने आज उन्हें मझधार में डूबने से बचा लिया था। सभी लोगों के सोये हुए आत्मबल को जगाने के उद्देश्य से उस महापुरुष जीसस क्राइस्ट ने कहा, “भाइयों, कैसी भी मुश्किलें क्यों न आयें, जिंदगी में कभी हौंसला मत खोना।”
“हमेशा याद रखना, किसी भी तूफ़ान की ताकत तुम्हारे विश्वास की शक्ति से ज्यादा बढ़कर नहीं हो सकती। अपने दिल से हर तरह के डर को निकाल कर फेंक दो, तभी तुम आगे बढ़ सकते हो। सिर्फ तभी तुम खुद को जिन्दा रख सकते हो, वरना मुसीबतों के तूफ़ान तुम्हे कभी चैन से न जीने देंगे।
धैर्य रखो और विश्वास की प्रचंड शक्ति से उनका डट कर मुकाबला करो और फिर वे तुम्हारे देखते-देखते ऐसे ही गायब हो जायेंगे, जैसे अभी-अभी यह तूफ़ान शांत पड गया।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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